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आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों के संघर्ष ने तमाम पूँजीवादी पार्टियों के मज़दूर-मेहनतकश विरोधी चेहरे को बेपर्द किया!

दिल्ली में 31 जनवरी 2022 से शुरू हुआ आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों का संघर्ष दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश के मज़दूर आन्दोलन के इतिहास में एक आगे बढ़ा हुआ क़दम है। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन की रहनुमाई में 38 दिनों तक चली ये हड़ताल हर आने वाले दिन के साथ नया इतिहास रचते हुए और अधिक मज़बूत होती रही। अपनी हड़ताल और रैलियों के माध्यम से सड़कों पर उतरे महिलाओं के सैलाब ने न सिर्फ़ दिल्ली में और केन्द्र में बैठे हुक्मरानों की कुर्सियाँ हिला दी थीं, उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था और उनकी असलियत को उजागर किया बल्कि इस समूची पूँजीवादी-पितृसत्तात्मक व्यवस्था को भी चुनौती दी।

दिल्ली के शाहाबाद डेरी में मज़दूर बस्तियों के बगल में बनाये गये श्मशान को हटाने का संघर्ष और सरकारी तंत्र का मकड़जाल!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान सरकार की बदइंतज़ामी ने हजारों लोगों की असमय जान ली। मरने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि लाशों के लिए जगह कम पड़ गयी। कहीं लाशों को नदियों में बहाया गया तो कहीं नये-नये शमशान खोले जा रहे थे। ऐसा ही एक श्मशान अप्रैल महीने में उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के शाहाबाद डेरी के रिहायशी इलाक़े में बनाया गया। तब दिल्ली में कोविड से मरने वालों की संख्या 4 से 5 हज़ार तक बतायी जा रही थी (ज़मीनी हकीकत इससे कहीं अधिक बदतर थी)।

“महाशक्ति” बनते देश में ऑक्सीजन, दवा, बेड की कमी से दम तोड़ते लोग!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर भयावह रूप धारण कर चुकी है। इस दौरान विश्वगुरु भारत की चिकित्सा व्यवस्था के हालात भी खुलकर हमारे सामने आ गये हैं। देश में कोविड से होने वाली मौतों का आँकड़ा 2,38,270 पार कर चुका है। हर रोज़ 4.01 लाख से अधिक कोरोना पॉज़िटिव मामले दर्ज किये जा रहे हैं वहीं 4,187 मौतें आये दिन हो रही हैं। असल में संक्रमित लोगों और कोरोना से होने वाली मौतों के आँकड़े इससे कहीं अधिक हैं जिन्हें सरकार व मीडिया द्वारा लगातार दबाया जा रहा है।

आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों को बेगार खटवाकर “महिला सशक्तिकरण” को बढ़ावा देने में जुटी केजरीवाल सरकार!

बीते 25 मार्च को दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक नया ऑर्डर जारी किया है। इसके मुताबिक़ दिल्ली में 500 आँगनवाड़ी हब बनाने का फ़ैसला लिया गया है। इन हब केन्द्रों में आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को अब दो अलग-अलग परियोजनाएँ सम्भालनी होंगी।