आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों को बेगार खटवाकर “महिला सशक्तिकरण” को बढ़ावा देने में जुटी केजरीवाल सरकार!

– प्रियम्वदा

बीते 25 मार्च को दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक नया ऑर्डर जारी किया है। इसके मुताबिक़ दिल्ली में 500 आँगनवाड़ी हब बनाने का फ़ैसला लिया गया है। इन हब केन्द्रों में आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को अब दो अलग-अलग परियोजनाएँ सम्भालनी होंगी। सुबह के चार घण्टे आँगनवाड़ी का कार्यभार निभाने के बाद तीन घण्टे ‘सहेली समन्वय केन्द्र’ में “स्वयंसेविकाओं” को अपना फ़र्ज़ अदा करना होगा। इन केन्द्रों में समेकित बाल विकास परियोजना के कार्यभारों के अतिरिक्त अब महिला मण्डल, महिला सहायता प्रकोष्ठ, क्रेच सुविधाओं, साप्ताहिक बैठकी के अलावा छोटे स्तर के उद्योग चलाने की भी ट्रेनिंग दी जायेगी। फ़िलहाल 21 आँगनवाड़ी हब केन्द्रों में 1 अप्रैल से ही आरम्भिक परियोजना के तहत ‘सहेली समन्वय केन्द्र’ की शुरुआत कर दी जायेगी। इस नये आदेश के अनुसार अगर आँगनवाड़ी के ये 500 हब सेण्टर्स सफल होते हैं तो इन्हें जल्द ही दिल्ली के बाक़ी सेण्टर्स पर लागू कर दिया जायेगा। मतलब साफ़ है कि केजरीवाल सरकार महिला सशक्तिकरण के खोल में महिलाओं को लूटने की तैयारी कर चुकी है।

आँगनवाड़ी हब सेण्टर्स : किसको फ़ायदा, किसका नुक़सान?

आँगनवाड़ी के तीन या उससे अधिक केन्द्रों को मिलाकर एक हब केन्द्र तैयार किया जाता है। आँगनवाड़ी में पढ़ने और पोषण के लिए आने वाले बच्चों के लिए इस हब केन्द्र में पहुँचना मुश्किल होता है क्योंकि पहले की तुलना में लाभार्थियों के घर से इसकी दूरी बढ़ जाती है। गर्भवती महिलाओं के सामने भी यही समस्या आती है। कई बार लाभार्थी पोषाहार तक के लिए समय पर केन्द्रों पर नहीं पहुँच पाते हैं। वहीं दूसरी तरफ़, आँगनवाड़ीकर्मियों पर भी अतिरिक्त काम का बोझ बढ़ेगा। सुबह 9 से शाम 4 तक काम करने वाली इन “स्वयंसेविकाओं” को श्रम क़ानूनों के दायरे में लाने का ख़्याल कभी भी केजरीवाल या मोदी सरकार को आता ही नहीं है। महिलाओं के श्रम की लूट में दोनों एक-दूसरे के पक्के यार हैं।
यह बात साफ़ है कि आँगनवाड़ियों को मिलाकर हब बनाने से आम जनता का फ़ायदा नहीं बल्कि नुक़सान है।

‘सहेली समन्वय केन्द्र’ : महिला सशक्तिकरण या महिलाओं से बेगार खटवाने की योजना?

दिल्ली सरकार ने यूँ तो महिला सशक्तिकरण के नाम पर अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने का काम लम्बे समय से जारी रखा हुआ है। अब इस नयी परियोजना का भार जिनके कन्धे पर थोपा जायेगा उनके श्रम की लूट पर आँखें मूंदी हुई है। ज़ाहिरा तौर पर सहेली समन्वय केन्द्रों में कार्यरत आँगनवाड़ीकर्मियों को उसी मानदेय पर अब ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। मतलब –  आँगनवाड़ीकर्मियों को अब बेगार खटना पड़ेगा। केजरीवाल सरकार ने आँगनवाड़ीकर्मियों की 2017 की हड़ताल के बाद मानदेय बढ़ोत्तरी कर जो “उपकार” किया है, उसे जताने में कभी सरकार पीछे नहीं हटी। उस मानदेय बढ़ोत्तरी के बाद दिल्ली सरकार ने आँगनवाड़ीकर्मियों की मेहनत को लूटने का एक मौक़ा भी नहीं छोड़ा। अब सरकार चाहती है कि उसी मामूली मानदेय में आँगनवाड़ी महिलाकर्मी 7 घण्टे खटें। दूसरी ओर केन्द्र सरकार की इस लूट में भागीदारी करने की अलग तैयारी है। नयी शिक्षा नीति के नाम पर आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों पर प्री-स्कूलिंग की ज़िम्मेदारी और आँगनवाड़ी केन्द्रों को स्कूलों से जोड़ने का फ़रमान कोविड-19 महामारी के दौरान ही जारी कर दिया था। वैसे केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच कितने भी बनावटी अन्तरविरोध क्यों न हों, महिलाकर्मियों को बेगार खटवाने के लिए दोनों रज़ामन्द हो जाते हैं।
ताज्जुब तो यह है कि आज अचानक सरकार को महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक हालात सुधारने की इतनी फ़िक्र क्यों हो गयी? इसलिए क्योंकि आज बाज़ार में उद्योगपतियों और मालिकों को सस्ते श्रम की आवश्यकता है और इसके लिए इनके पास महिलाओं से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं है।
इसलिए अन्य महिलाओं के “उद्धार” से पहले केजरीवाल महोदय आँगनवाड़ीकर्मियों के मानदेय बढ़ोत्तरी का ही क़दम उठा लें, तो बेहतर हो। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों से समेकित बाल विकास परियोजना के कामों के अलावा जानवरों इत्यादि के सर्वे, गोदभराई, अन्नप्राशन, बीएलओ की ड्यूटी भी करवायी जाती है। लेकिन श्रम-क़ानून और अधिकारों की बात उठते ही तमाम सरकारें इनके ‘स्वयंसेविका’ होने का राग अलापने लगती हैं। जिस केजरीवाल सरकार के पास हमारी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ाने की शक्ति हो, उसके पास हमारा मानदेय बढ़ाने की शक्ति नहीं है? केजरीवाल और केन्द्र सरकार द्वारा बेगार करवाने के नये-नये फ़़रमान का दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाकर्मी विरोध करती हैं। साथ ही, पक्के रोज़गार और न्यूनतम वेतन के अपने वाजिब हक़ के लिए संघर्ष का नारा बुलन्द करती हैं।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2021


 

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