Category Archives: महँगाई

रसोई गैस के दाम और पेट्रोल-डीज़ल पर कर बढ़ाकर मोदी सरकार का जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका!

सरकार लगातार कॉरपोरेट कर और उच्च मध्य वर्ग पर लगने वाले आयकर को घटा रही है और इसकी भरपाई आम जनता की जेबों से कर रही है। भारत में मुख्‍यत: आम मेहनतकश जनता द्वारा दिया जाने वाला अप्रत्‍यक्ष कर, जिसमें जीएसटी, वैट, सरकारी एक्‍साइज़ शुल्‍क, आदि शामिल हैं, सरकारी खज़ाने का क़रीब 60 प्रतिशत बैठता है। यह वह टैक्‍स है जो सभी वस्तुओं और सेवाओं ख़रीदने पर आप देते हैं, जिनके ऊपर ही लिखा रहता है ‘सभी करों समेत’। इसके अलावा, सरकार बड़े मालिकों, धन्‍नासेठों, कम्‍पनियों आदि से प्रत्‍यक्ष कर लेती है, जो कि 1990 के दशक तक आमदनी का 50 प्रतिशत तक हुआ करता था, और जिसे अब घटाकर 30 प्रतिशत तक कर दिया गया है। यह कॉरपोरेट और धन्‍नासेठों पर लगातार प्रत्‍यक्ष करों को घटाया जाना है, जिसके कारण सरकार को घाटा हो रहा है। दूसरी वजह है इन बड़ी-बड़ी कम्‍पनियों को टैक्‍स से छूट, फ़्री बिजली, फ़्री पानी, कौड़ियों के दाम ज़मीन दिया जाना, घाटा होने पर सरकारी ख़र्चों से इन्‍हें बचाया जाना और सरकारी बैंकों में जनता के जमा धन से इन्‍हें बेहद कम ब्याज दरों पर ऋण दिया जाना, उन ऋणों को भी माफ़ कर दिया जाना या बट्टेखाते में, यानी एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) बोलकर इन धन्‍नासेठों को फोकट में सौंप दिया जाना। अब अमीरों को दी जाने वाली इन फोकट सौगातों से सरकारी ख़ज़ाने को जो नुक़सान होता है, उसकी भरपाई आपके और हमारे ऊपर टैक्‍सों का बोझ लादकर मोदी सरकार कर रही है।

‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण : समाहार रपट

3 मार्च को दिल्ली में यात्रा के समापन के तौर पर होने वाले विशाल प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया, बवाना औद्योगिक क्षेत्र में यात्रा के समर्थन में हुई हड़ताल को कुचलने के लिए गिरफ्तारियाँ और हिरासत में यातना तक का सहारा लिया, जन्तर-मन्तर से कई लहरों में हज़ारों लोगों को बार-बार हिरासत में लिया और शहर में जगह-जगह जत्थों में आ रहे मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं को रोकने की कोशिश की और जन्तर-मन्तर पर कई दफ़ा लाठी चार्ज तक किया। लेकिन इससे भी वह प्रदर्शन को रोकने में कामयाब नहीं हो पायी। जन्तर-मन्तर पर तो बार-बार प्रदर्शन हुए ही, दिल्ली के करीब आधा दर्जन पुलिस थानों में भी प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शन का सन्देश सीमित होने के बजाय पूरे शहर में और भी ज़्यादा व्यापकता के साथ फैला।

चुनाव नज़दीक आते ही मोदी सरकार द्वारा रसोई गैस की क़ीमत घटाने के मायने

मोदी सरकार के नौ सालों में जनता ने कमरतोड़ महँगाई का सामना किया है। बढ़ती क़ीमतों ने देश की मेहनतकश आबादी का जीना दूभर कर दिया है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं मोदी सरकार द्वारा जनता का “हितैषी” बनने का ढोंग शुरू हो गया है। पिछले नौ सालों में जनता के मुद्दों के हर मोर्चे पर बुरी तरह विफल रहने के बाद, फ़ासीवादी मोदी सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में हार का भूत अभी से डराने लगा है। इसका ताज़ा उदाहरण अभी मोदी सरकार द्वारा 2024 के चुनाव से ठीक पहले रसोई गैस की क़ीमत में दो सौ रूपए की “कटौती” करना है।

बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ फ़्रांस की जनता उतरी सड़कों पर

अक्टूबर महीने में फ़्रांस ने मज़दूरों की कई हड़तालें देखीं। अनुपात में ये हड़तालें इसी साल हुई मार्च और जनवरी की हड़तालों से कई गुना बड़ी थीं। इन हड़तालों की वजह फ़्रांस में लगातार बढ़ती महँगाई है जिसने एक तरफ़ तो वहाँ के पूँजीपति वर्ग को अकूत मुनाफ़ा कूटने का अवसर दिया है वहीं दूसरी तरफ़ मेहनतकश जनता की कमर तोड़ रखी है। फ़्रांस की मेहनतकश आबादी भयानक महँगाई से जूझ रही है, जो कि लगातार तीव्र हो रहे पूँजीवादी संकट का ही नतीजा है, जिसे ब्रुसेल्स की नौकरशाही की नीतियाँ और भी तीखा करने का काम कर रही हैं जो यूक्रेन में रूस के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के असफल आर्थिक और छद्म सैन्य युद्ध को तेज़ करने पर तुली हुई है।

आज़ादी का (अ)मृत महोत्सव : अडानियों-अम्बानियों की बढ़ती सम्पत्ति, आम जनता की बेहाल स्थिति

मेहनतकश साथियों, इस साल हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर बार की तरह मोदीजी फिर इस बार लाल क़िले पर चढ़कर लम्बे-लम्बे भाषण देंगे। बड़े-बड़े वायदे करेंगे, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले। इसका कारण भी है क्योंकि मोदी जी के लिए देश का मतलब आम जनता नहीं बल्कि देश के पूँजीपति हैं, इसलिए धन्नासेठों से किये सारे वायदे पूरे होते हैं और जनता को दिये जाते हैं बस जुमले। इस बार ये सरकार आज़ादी का मृत महोत्सव, माफ़ कीजिएगा, “अमृत महोत्सव” मना रही है। पर सवाल है किसके लिए आज़ादी?

रसोई गैस के बढ़ते दाम : आम जनता बेहाल-परेशान!

8 साल पहले जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी तब उनके प्रमुख नारों में से एक नारा था “बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार”, लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में उपरोक्त नारे की असलियत सबके सामने नंगी हो चुकी है। पिछले कुछ सालों में जीवन जीने के लिए ज़रूरी रोज़मर्रा की बुनियादी वस्तुओं में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। पेट्रोल, डीज़ल से लेकर सरसों तेल और रसोई गैस तक के दामों में आये उछाल ने आम जनजीवन को बेहद प्रभावित किया है। बढ़ती महँगाई की वजह से मेहनतकश जनता जीवन जीने के लिए ज़रूरी वस्तुओं को जुटा पाने तक में अक्षम होती जा रही है।

आटा-चावल, दाल-तेल-सब्ज़ियों की क़ीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ का जुमला उछालकर सत्ता में आने वाली मोदी सरकार के आने के बाद जनता ने कभी महँगाई कम होती तो नहीं देखी, पर अपनी थाली में खाने की चीज़ें कम होती ज़रूर देखी हैं। 2014 के बाद पहले से जारी लूट को ही मोदी सरकार ने बढ़ाते हुए महँगाई की रफ़्तार को और भी तेज़ कर दिया। अब आलम यह आ गया है कि आटा, चावल, दाल, तेल पर भी जीएसटी लगाकर यह सरकार जनता की जेब पर डाका डालने की तैयारी में है।

बढ़ती महँगाई और मज़दूरों के हालात

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ याद कीजिए ये नारा 2014 में खूब प्रचलित हुआ था। आज इस मोदी सरकार को आए 7 साल से अधिक हो गए। जहां एक तरफ बढ़ती महँगाई से पूँजीपति अकूत मुनाफ़ा बना रहा हैं, जिसमें मोदी सरकार उनका भरपूर साथ दे रही है, जहां बीते एक वर्ष में महँगाई बेरोज़गारी ने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है, वहीं मोदी के चहेते अदानी की संपत्ति बीते एक साल में 57 अरब डॉलर बढ़ी है। साल 2022 में अब तक कमाई के मामलें में गौतम अडानी टॉप पर हैं।

बढ़ती महँगाई का असली कारण

अपनी सरकार के आठ साल बीतते-बीतते आखिरकार नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता को “अच्छे दिन” दिखला ही दिये! थोक महँगाई दर मई 2022 में 15.08 प्रतिशत पहुँच चुकी थी और खुदरा महँगाई दर इसी दौर में 7.8 प्रतिशत पहुँच चुकी थी। थोक कीमतों का सूचकांक उत्पादन के स्थान पर थोक में होने वाली ख़रीद की दरों से तय होता है, जबकि खुदरा कीमतों का सूचकांक महँगाई की अपेक्षाकृत वास्तविक तस्वीर पेश करता है, यानी वे कीमतें जिन पर हम आम तौर पर बाज़ार में अपने ज़रूरत के सामान ख़रीदते हैं। बढ़ते थोक व खुदरा कीमत सूचकांक का नतीजा यह है कि मई 2021 से मई 2022 के बीच ही आटा की कीमत में 13 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

डीज़ल, पेट्रोल और गैस से मोदी सरकार ने की बेहिसाब कमाई

पिछले क़रीब सात साल के अपने कार्यकाल में मोदी सरकार ने पेट्रोलियम के उत्पादों से सरकारी ख़ज़ाने में में क़रीब पच्चीस लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की कमाई की है। मगर उसके बाद भी उसका ख़जा़ना ख़ाली ही रह रहा है। सरकारी घाटा पूरा करने के नाम पर न केवल मुनाफ़ा देने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को औने-पौने दामों पर बेचकर हज़ारों करोड़ रुपये और बटोरे जा रहे हैं, बल्कि ओएनजीसी, एचएएल जैसी अनेक सरकारी कम्पनियों को लूटकर भीतर से खोखला कर द‍िया गया है।