मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन में मज़दूरों की बढ़ती भागीदारी से घबराये मालिकान घटिया हथकण्डों और तिकड़मों पर उतारू
बिगुल संवादाता
गोरखपुर। बरगदवा क्षेत्र में दो वर्ष पहले शुरू हुए मज़दूरों के आन्दोलन की ख़बरों से ‘बिगुल’ के पाठक परिचित होंगे। उद्योगपतियों, स्थानीय सांसद और पुलिस-प्रशासन के गँठजोड़ की तमाम कोशिशों और दमन-उत्पीड़न के बावजूद दो वर्ष पहले इस क्षेत्र के अनेक कारख़ानों के मज़दूरों ने न केवल अपने संघर्ष में कई सफलताएँ हासिल कीं बल्कि अपना मज़बूत संगठन खड़ा करने और व्यापक स्तर पर मज़दूरों की एकजुटता क़ायम करने की दिशा में भी क़दम बढ़ाये। बरगदवा के साथ ही सहजनवा स्थित ‘गीडा’ (गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण) के अनेक कारख़ानों में भी मज़दूरों ने एकजुट और संगठित होने की शुरुआत कर दी। इससे सारे उद्योगपति बौखलाये हुए हैं और किसी भी क़ीमत पर मज़दूरों की एकता को तोड़ने और उन्हें कमज़ोर करने की तिकड़मों में लगे हुए हैं।
जब से गोरखपुर के मज़दूरों के बीच ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन’ से जुड़ने की लहर चली है तब से उनकी नींद और भी हराम हो गयी है। उन्हें लग रहा है कि अगर मज़दूर देश के पैमाने पर चल रहे इस आन्दोलन से जुड़ेंगे तो उनकी एकता तथा लड़ाकू क्षमता और भी बढ़ जायेगी तथा उनका मनमाना शोषण करना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए वे तरह-तरह की घटिया चालें चलकर मज़दूरों को इस नयी मुहिम से जुड़ने से रोकने तथा 1 मई के प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इन कोशिशों में उन्हें गोरखपुर के स्थानीय सांसद की पूरी सरपरस्ती मिली हुई है। पाठकों को ध्यान होगा कि दो वर्ष पहले गोरखपुर में चले लम्बे मज़दूर आन्दोलन के दौरान सांसद योगी आदित्यनाथ खुलकर उद्योगपतियों के पक्ष में आ गये थे और आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इसे ”माओवादियों द्वारा तथा चर्च के पैसे से चलने वाला” आन्दोलन घोषित कर दिया था।
पुलिस प्रशासन और उद्योगपतियों का गठजोड़ इस कोशिश में किस हद तक जा सकता है इसका उदाहरण 10 अप्रैल को देखने को मिला जब थाना चिलुआताल पुलिस ने वी.एन.डायर्स प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड, स्पिनिंग डिवीज़न के 18 मज़दूरों और उनके प्रतिनिधियों तपीश मैन्दोला, प्रमोद कुमार तथा प्रशान्त को उठवा लिया। ये मज़दूर मालिकान द्वारा बिजली सप्लाई कटवाकर चलते हुए प्लाण्ट को बन्द करवाकर मिल में जबरन तालाबन्दी का विरोध कर रहे थे। मज़ेदार बात यह रही कि कम्पनी मैनेजमेंट दो बजे से पहले ही मज़दूरों द्वारा अधिकारियों से मारपीट करने तथा पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की बात कर रहा है जबकि थाना चिलुआताल की जी.डी. में गिरफ्तारी का समय शाम 4 बजकर दस मिनट दर्ज है। उसी दिन आनन-फानन में सैकड़ों की संख्या में मज़दूरों द्वारा थाने का घेराव करने और फिर ज़िलाधिकारी कार्यालय की ओर मज़दूरों के कूच कर देने से घबराये प्रशासन को मजबूर होकर गिरफ़्तार मज़दूरों तथा मज़दूर प्रतिनिधियों को छोड़ना पड़ा। लेकिन गिरफ़्तार किये गये मज़दूरों में से आठ पर धरा 147, 148, 323, 504, 506, 336 आईपीसी और 7 क्रिमिनल अमेन्डमेंट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। दस अन्य मज़दूरों पर धारा 151 के तहत कार्रवाई की गयी है।
भगवापुर स्थित यह फैक्ट्री पिछले छह साल से चल रही है जिसमें 400 से अधिक मज़दूर काम करते हैं। इस कम्पनी का स्टैण्डिंग आर्डर अभी तक रजिस्टर्ड नहीं है। यहाँ मज़दूरों ने लम्बे और कठिन संघर्षों से कुछ श्रम कानून लागू कराये लेकिन अभी भी करीब डेढ़ सौ मज़दूरों को ईएसआई और पीएफ की सुविधा नहीं मिलती। यहाँ चार सौ में से मात्र 12 मज़दूरों को ही कुशल मज़दूर का वेतन मिलता है जबकि अधिकांश मज़दूर आधुनिक मशीनों पर कुशलतापूर्वक काम करते हैं। ट्रेनी मज़दूरों को मात्र 110 रुपये की दिहाड़ी पर भर्ती किया जाता है और उनके कार्ड पर नियुक्ति की तिथि तक दर्ज नहीं की जाती है जबकि उनसे सारा काम कराया जाता है। पिछले माह कम्पनी ने मात्र 75 मज़दूरों को ही सीएल दिया गया। आवाज़ उठाने वाले मज़दूरों को सरेआम गुण्डों से पिटवाना, जबरिया इस्तीफा लिखवाना, यहाँ तक कि दुर्घटना के कारण बुरी तरह घायल मज़दूरों को अस्पताल तक न पहुँचाना या फिर बायलर में झुकवा देना कम्पनी की स्थापित कार्यशैली बन चुकी है।
मालिकान के लिए दिनों रात खटने वाले ये 400 मज़दूर दस रुपया किलो के भाव से मिलने रूओं को 24 घण्टों में 16 टन धागे में बदल देते है। यह धागा बाजार में 200-250 रुपया प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। टैक्स सहित परिचलन के सभी खर्च काटकर, जिसमें मज़दूरी भी शामिल है, कम्पनी को प्रतिमाह 56 लाख 70 हज़ार रुपये का शुद्ध मुनाफा होता है। मज़दूर यदि 2 घण्टा प्रतिदिन काम कर ले तो उसकी मज़दूरी का सारा खर्च निकल आता है। इस तरह ये चार सौ मज़दूर प्रतिदिन छह घण्टा बिना कोई मेहनताना लिये काम करते रहते हैं। ज़ाहिर है कि छह घण्टे का यह अतिरिक्त श्रम मालिक का मुनाफा, सरकार का टैक्स, बैंक का ब्याज, अफसरों की रिश्वत, राजनीतिक दलों के चन्दे, काले धन के जखीरे और विभिन्न रूपों में समाज के शासक-शोषक तबकों के बीच बाँटा जाता है। यही वजह है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन, श्रम विभाग, स्थानीय नेता सभी मज़दूरों के ख़िलाफ गोलबन्द हो जाते हैं।
मज़दूरों ने बिगुल मज़दूर दस्ता और संयुक्त मज़दूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के नेतृत्व में लम्बी लड़ाई की योजना बना ली है। गाँवों में घूम-घूमकर मज़दूर गेहूँ, आलू, प्याज़, सरसों का तेल, नमक, जलावन के लिए गोइठा आदि इकट्ठा कर रहे हैं। इलाके की दूसरी फैक्ट्रियों के मज़दूर संघर्ष भत्ते के लिए अपनी दो-दो दिहाड़ी प्रति माह देने के लिए तैयार हैं। वी.एन. डायर्स के मज़दूरों की यह माँग है कि बिना शर्त तालाबन्दी खत्म की जाये। फर्ज़ी मुक़दमे वापस लिये जायें। झूठी तहरीर देने वाले मालिकान के ख़िलाफ मुक़दमा दायर हो और थानाध्यक्ष चिलुआताल की भूमिका की जाँच कराकर दोषी पाये जाने पर दण्डित किया जाये।
स्थानीय पैमाने पर संघर्ष की तैयारी के साथ ही बरगदवा और गीडा के मज़दूर भारी तादाद में मई दिवस को दिल्ली जाने की भी तैयारियों में लगे हैं।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2011
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन