बादल सरकार का महज़ एक नया ड्रामा ‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’

लखविन्दर

पंजाब सरकार ने ‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’ का गठन किया है और सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल (बादल) के नेता और कार्यकर्ता इस बोर्ड के गठन को पंजाब सरकार का एक महान क़दम बताते हुए इसका गुणगान कर रहे हैं। ये लोग ढोल पीट रहे हैं कि बादल सरकार ने ‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’ का गठन करके पंजाब में रह रहे ‘प्रवासियों’ के कल्याण के लिए बहुत ही अच्छा क़दम उठाया है। उनके मुताबिक जो काम आज तक देश के किसी भी राज्य की सरकार ने नहीं किया वह उनकी महान बादल सरकार ने कर दिखाया। वे बड़ी-बड़ी हाँक रहे हैं कि अब ‘प्रवासियों’ की हर समस्या की सुनवाई होगी।

असल में पंजाब की बादल सरकार ने पंजाब में अन्य राज्यों से आकर रह रहे मज़दूरों को लुभाने के लिए ही यह नया ढोंग रचा है। पिछले वर्ष दिसम्बर के पहले सप्ताह के दौरान हुए लुधियाना के ढण्डारी काण्ड ने पंजाब के ग़रीब मज़दूरों ख़ासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, तथा अन्य राज्यों से आकर बसे मज़दूरों के जीवन की भयानक परिस्थितियों को, उनके साथ हो रहे पल-पल के लूट, शोषण, अन्याय और अपमान को जगजाहिर कर दिया था। लुधियाना काण्ड के चलते पंजाब सरकार की चारों ओर थू-थू हुई। ‘प्रवासियों’ की हितैषी होने का दिखावा करने के लिए बादल सरकार ने तुरन्त पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड का गठन कर डाला।

ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि किसी राज्य की सरकार ने अपने ही देश के अन्य राज्य से आये लोगों के ‘कल्याण’ के लिए अलग से कोई बोर्ड गठित किया है। वह भी उसे प्रवासी कहते हुए। भला अपने ही देश में कोई प्रवासी कैसे हो सकता है? प्रवासी शब्द का इस्तेमाल लोगों के क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों का फ़ायदा उठाने के लिए किया गया है। इससे पंजाब में अन्य राज्यों से आकर बसे लोगों का कोई कल्याण तो होने वाला तो है नहीं, बल्कि इसकी जगह इस तरह के बोर्ड का अलग से गठन लोगों के क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों को और मज़बूत ही बनायेगा। इससे पंजाब में पहले से रह रहे लोगों और अन्य राज्यों से आये लोगों के बीच दूरियाँ कम होने के बजाय और बढ़ेंगी क्योंकि इस बोर्ड के गठन के ज़रिये लोगों में इस पूर्वाग्रह को और मज़बूती ही मिलती है कि पंजाब में पहले से रह रहे लोगों के लिए अन्य राज्यों से आये लोग अपने नहीं पराये हैं। इससे पंजाब में अन्य राज्यों से आये लोगों के लिए समस्याएँ बढे़ंगी ही।

लुधियाना काण्ड से पैदा हुए माहौल से घबराकर बड़ी संख्या में मज़दूरों ने लुधियाना से पलायन कर लिया था। कारखाना मालिकों को मज़दूरों की बेहद कमी होने लगी थी। इसलिए उद्योगपतियों ने भी पंजाब सरकार को काफ़ी कोसा था। उनका कहना था कि पंजाब में लेबर की इतनी भारी कमी तो खालिस्तानी आतंकवाद के दौर में भी महसूस नहीं हुई थी जितनी कि दिसम्बर के लुधियाना काण्ड के बाद हुई है। पूँजीपति चाहते थे कि बादल सरकार मज़दूरों के बड़े स्तर पर हो रहे पलायन को रोकने के लिए कोई क़दम उठाये। ‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’ का गठन पूँजीपतियों को यह भरोसा देने के लिए भी किया गया है कि पंजाब सरकार ‘प्रवासी’ मज़दूरों में ‘विश्वास’ बहाल करने के लिए कुछ न कुछ कर रही है। ग़ौरतलब है कि ‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’ का अध्यक्ष अमृतसर के एक उद्योगपति आर.सी. यादव को बनाया गया है। अन्य पदाधिकारी भी बेहद भ्रष्ट किस्म के व्यक्ति हैं जिन्हें ‘अपने’ ‘प्रवासी’ लोगों की समस्याएँ हल करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उदाहरण के तौर पर, बोर्ड का उपाध्यक्ष ठाकुर विश्वनाथ प्रताप सिंह को बनाया गया है।

अगर पंजाब सरकार सचमुच में पंजाब में अन्य राज्यों से आये लोगों की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहती तो उसे कोई अलग बोर्ड बनाने की ज़रूरत नहीं थी। उदाहरण के लिए, पंजाब के कारख़ानों की ही हालत देख ली जाये। पंजाब के कारख़ानों में अधिकतर अन्य राज्यों से आये मज़दूर काम करते हैं। कारखानों में काम करने वाले सारे मज़दूर – चाहे वे पंजाब में पहले से रह रहे हों, चाहे अन्य राज्यों से आये हों – सभी नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। वे 12-14 घण्टे खटते हैं लेकिन बेहद ग़रीबी में जी रहे हैं। कारख़ानों में कोई श्रम क़ानून लागू नहीं हैं। आठ घण्टे दिहाड़ी के क़ानून की कारख़ाना मालिक खुलेआम धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। वहाँ न तो मज़दूरों के पहचान पत्र बनते हैं, न ई.एस.आई. कार्ड। अधिकतर के नाम पक्के रजिस्टर पर नहीं होते, उनके पक्के हाज़िरी कार्ड नहीं बनते। कारख़ाने में मज़दूरों की सुरक्षा के उचित इन्तज़ाम नहीं होते। अकसर होने वाले हादसों में मज़दूर अपने हाथ-पैर कटवाते रहते हैं, और मरते रहते हैं। कारखाना मालिकों के अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है। उनके हाथों लूट-शोषण के शिकार मज़दूरों की कहानी बहुत दर्दनाक है। कारख़ाना मालिकों के ये अपराध और मज़दूरों की दर्दनाक हालत न तो सरकार से छिपी है, न श्रम विभाग से, न पुलिस से, न प्रशासन से। ग़रीबों के अन्य हक, अधिकारों, ज़रूरतों की तो बात ही छोड़िये अगर सिर्फ़ कारख़ानों में आधे श्रम क़ानून भी लागू हो जायें तो पंजाब में अन्य राज्यों से आये मज़दूरों सहित सभी मज़दूरों की ज़िन्दगी में अभूतपूर्व बेहतरी आ सकती है। लेकिन क़ानून लागू करवाने वाले अपने ही आक़ाओं के विरुद्ध कार्रवाई कैसे कर सकते हैं?

‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’ के ज़रिये पंजाब सरकार कुछ न कुछ ड्रामे करती रहेगी। लेकिन इससे मज़दूरों के जीवन में कोई बेहतरी नहीं आने वाली है। ऊँट के मुँह में ज़ीरे के समान फ़ण्ड जारी होते रहेंगे जिसमें अधिकतर बोर्ड वाले ही खाते रहेंगे। असल में फ़ण्ड जारी भी इसी लिए होते हैं। लुधियाना काण्ड के पीड़ितों के लिए भी इस बोर्ड के ज़रिये सिर्फ़ 17 लाख रुपये देने का ऐलान किया गया है।

मज़दूरों के पास पंजाबी-प्रवासी के पूर्वाग्रहों से पीछा छुड़ाकर और एकजुट होकर अपने हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। सिर्फ़ दिखावे के लिए बनाये जाने वाले श्रम विभागों, श्रम मन्त्रालयों, कागज़ी क़ानूनों, कल्याण बोर्डों आदि से मज़दूरों का कोई कल्याण नहीं होने वाला है।

 

 

बिगुल, जनवरी-फरवरी 2010

 


 

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