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कश्मीरी क़ौमी संघर्ष समर्थन कमेटी, पंजाब के आह्वान पर पंजाब में हज़ारों लोग कश्मीरी जनता के हक़ में सड़कों पर उतरे

15 सितम्बर को पंजाब में कश्मीरी कौम के हक़ में इतनी ज़ोरदार आवाज़ उठी कि 40 दिनों से बहरे बने बैठे पूँजीवादी मीडिया को भी सुननी पड़ गई। ‘‘कश्मीर कश्मीरी लोगों का, नहीं हिन्द-पाक की जोकों का’’ और ‘‘पंजाब से उठी आवाज, कश्मीरी संघर्ष ज़ि‍न्दाबाद’’ के नारों के साथ पंजाब के हज़ारों मज़दूरों, किसानों, छात्रों, नौजवानों व बुद्धिजीवियों के जब 15 सितम्बर की सुबह चण्डीगढ़/मोहाली की तरफ काफ़ि‍ले जाने शुरू हुए तो इस आवाज़ ने हुक्मरानों के लिए खौफ़ खड़ा कर दिया। पंजाब में उठी यह आवाज़ दमन और प्रतिरोध की आग में तप रहे कश्मीरी जनता के लिए हवा के ठण्डे झोंके की तरह है। कश्मीरी जनता के लिए इस तरह ज़ोरदार आवाज़ बुलन्द करके पंजाब के जनवादी जनान्दोलन ने अपनी जनवादी व जुझारू रवायतों को बरकरार रखा है।

पंजाब सरकार एक और काला कानून ‘पकोका’ लाने की तैयारी में

सरकार असुरक्षा के डर से भविष्य की तैयारी के लिए लोगों की सरकार खिलाफ आवाज़ को दबाने के लिए सीधा लोगों को ही अपराधी करार देकर उनकी आवाज़ हमेशा के लिए बंद करने वाले काले कानून को लोगों पर सुरक्षा के नाम से थोपना चाहती है। इसलिए हमें अपने जनवादी हकों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा विचारे जा रहे इस काले कानून का डट कर विरोध करना चाहिए।

पंजाब की जनता का काला क़ानून विरोधी संघर्ष जारी

इस क़ानून के मुताबिक़ किसी भी प्रकार के आन्दोलन, धरना, प्रदर्शन, रैली, हड़ताल, जुलूस, आदि के दौरान अगर सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है (इसमें घाटा में शामिल किया गया है, यानी हड़ताल-टूल डाऊन आदि करने पर भी जेल जाना होगा) तो संघर्ष में किसी भी प्रकार से शामिल, मार्गदर्शन करने वालों, सलाह देने वालों, किसी भी प्रकार की मदद करने वालों आदि को दोषी माना जायेगा। हवलदार तुरन्त गिरफ़्तारी कर सकता है। इस क़ानून के तहत किया गया ‘अपराध’ ग़ैरजमानती है। नुक़सान भरपाई के लिए ज़मीन जब्त की जायेगी। जुर्माने अलग से लगेंगे। एक से पाँच वर्ष तक की क़ैद की सज़ा होगी। वीडियो को पक्के सबूत के तौर पर माना जायेगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस क़ानून का इस्तेमाल हक़, सच, इंसाफ़ के लिए संघर्ष करने वालों के ख़िलाफ़ ही होगा। हुक़्मरानों की घोर जनविरोधी नीतियों के चलते जनता में बढ़ते आक्रोश के माहौल में पहले से मौजूद दमनकारी काले क़ानूनों और राजकीय ढाँचे से अब इनका काम नहीं चलने वाला। जनआवाज़ को दबाने के लिए जुल्मी हुक़्मरानों को दमनतन्त्र के दाँत तीखे करने की ज़रूरत पड़ रही है। इसी का नतीजा है पंजाब का यह नया काला क़ानून। लेकिन जनता हुक़्मरानों के काले क़ानूनों से डरकर चुप नहीं बैठती। पंजाब की जनता का संघर्ष इसका गवाह है।

पंजाब सरकार द्वारा ”इंस्पेक्टर राज” के ख़ात्मे का ऐलान — पूँजीपतियों के हित में मज़दूरों-मेहनतकशों के हकों पर डाका

मौजूदा समय में जब पूरी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था में आर्थिक संकट के बादल छाये हुए हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ा रही है, मुनाफे सिकुड़ रहे हैं, सकल घरेलू गतिरोधव गिरावट का शिकार है, तब भारत के पूँजीवादी हुक्मरान देसी -विदेशी पूँजी के लिए भारत में साजगार माहौल के निर्माण की कोशिश में लगे हुए हैं। आर्थिक सुधारों में बेहद तेज़ी भारतीय पूँजीवादी हुक्मरानों की इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है। ‘’इंस्पेक्टर राज’’ के ख़ात्मे की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का भी यही कारण है। आज मज़दूरों द्वारा भी पूँजीपति वर्ग के इस हमले के ख़िलाफ़ ज़ोरदार हल्ला बोलने की ज़रूरत है। ज़रूरत तो इस बात की है कि पहले से मौजूदा श्रम अधिकारों को तुरंत लागू किया जाये, श्रम अधिकारों को विशाल स्तर पर और बढ़ाया जाये। ज़रूरत इसकी है कि पूँजीपतियों पर बड़े टेक्स बढ़ाकर सरकार द्वारा जनता को बड़े स्तर पर सहूलतें मिलें। ज़रूरत इस बात की है कि पूँजीपतियों द्वारा मज़दूरों-मेहनतकशों की मेहनत की लूट पर लगाम कसने के लिए कानून सख़्त किए जाएँ। इन कानूनों के पालन के लिए अपेक्षित ढाँचा बनाया जाए। परन्तु पूँजीपतियों की सरकारों से जो उम्मीद की जा सकती है वह वही कर रही हैं – पूँजीपति वर्ग की सेवा। मज़दूर वर्ग यदि आज पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर कुछ थोड़ी-बहुत भी राहत हासिल करना चाहता है तो उसको मज़दूरों के विशाल एकजुट आन्दोलन का निर्माण करना होगा। पूँजीपति वर्ग द्वारा मज़दूर वर्ग पर बड़े एकजुट हमलों का मुकाबला मज़दूर वर्ग द्वारा जवाबी बड़े एकजुट हमले द्वारा ही किया जा सकता है।

दमनकारी पंजाब सरकार ने जनता पर थोपा काला कानून

22 जुलाई 2014 को पंजाब विधान सभा में पारित किया गया फासीवादी काला कानून ‘पंजाब (सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति नुक़सान रोकथाम) कानून-2104’ आखिर केन्द्र सरकार द्वारा पारित कर दिया गया है। कुछ दिन पहले राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए है। बढ़ते आर्थिक व राजनीतिक संकट व जनाक्रोश के इस वक्त में पंजाब के हुक्मरानों को हकों के लिए जूझ रहे लोगों पर दमन का कहर ढाने के लिए एक और जबरदस्त हथियार मिल गया है।

मज़दूर पंचायत का आयोजन

लुधियाना के पुडा मैदान में 16 अगस्त को टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन द्वारा मज़दूर पंचायत का आयोजन किया गया। पंचायत में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन की कार्यकारिणी समिती द्वारा प्रस्तावित एक मांग पत्र पर चर्चा की गई। मांग पत्र को अंतिम रूप दिया गया और इसे टेक्सटाइल और हौज़री मालिकों को देने का फैसला किया गया। इस मांग पत्र में 25 प्रतिशत वेतन वृद्धि, ई.एस.आई., पी.एफ., पहचान पत्र, हौज़री, बोनस, छुट्टियां, हादसों और बीमारियों से सुरक्षा के प्रबंध आदि सभी श्रम कानून लागू करने, कारखानों में मज़दूरों से मालिकों द्वारा मारपीट, गालीगलौच, बदसलूकी बंद करने आदि मांगें की गई है। मज़दूर पंचायत ने ऐलान किया कि यह मांगें पूरी करवाने के लिए संघर्ष तेज किया जायेगा।

लुधियाना में गुण्डागर्दी के ख़िलाफ़ मज़दूरों का संघर्ष

टिब्बा रोड मामले के ये दोषी व इनके साथियों से इस इलाके के लोग खासकर मज़दूर काफी परेशान हैं। मज़दूरों से मारपीट करना, उनसे पैसे-मोबाइल छीन लेना, लड़कियाँ छेड़ना आदि इनका रोज़मर्रा का काम है। पुलिस के पास शिकायतें होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब फिर पुलिस इस लूट-मार की घटना को आपसी झगड़े का मामला बताकर इन गुण्डों को बचाने में लगी है। इलाके का एक अकाली नेता व कुछ अन्य व्यक्ति गुण्डों की मदद कर रहे हैं। मज़दूरों के अलावा बाकी स्थानीय आबादी गुण्डों के ख़िलाफ़ खुलकर सामने नहीं आ रही लेकिन गुण्डागर्दी के ख़िलाफ़ मज़दूरों के संघर्ष से लोग काफी खुश हैं।

लुधियाना में भारती डाइंग मिल में हादसे में मज़दूरों की मौत और इंसाफ़ के लिए मजदूरों का एकजुट संघर्ष

मजदूरों की मौत होने के बाद भी मालिक ने अमानवीय रुख नहीं त्यागा। मालिक ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने से साफ़ इनकार कर दिया। निरंजन के रिश्तेदारों को मालिक ने अपने घर बुलाकर बेइज्ज़त किया। मुआवजे के नाम पर वह दोनों परिवारों को 25-25 हजार देने तक ही तैयार हुआ। पीड़ित परिवारों ने मालिक को कहा कि उन्हें भीख नहीं चाहिए बल्कि अपना हक चाहिए। मालिक ने उचित मुआवजा देने से देने से साफ मना कर दिया। सुरेश का परिवार कहाँ गया, उसका इलाज कब और कहाँ किया गया इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। निरंजन का परिवार उत्तर प्रदेश से काफी देर से 30 को ही लुधियाना पहुँचा। जान-पहचान वाले अन्य मजदूरों ने पुलिस के पास जाकर इंसाफ़ लेने की सोची।

ऑर्बिट बस काण्ड और बसों में बढ़ती गुण्डागर्दी के विरोध में पूरे पंजाब में विरोध प्रदर्शन

ऑर्बिट बस काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी, पंजाब ने माँग की है कि ऑर्बिट बस कम्पनी के मालिकों पर आपराधिक केस दर्ज हो, ऑर्बिट बस कम्पनी के सारे रूट रद्द कर पंजाब रोडवेज को दिये जायें, पंजाब का गृहमन्त्री सुखबीर बादल जो ऑर्बिट कम्पनी के मालिकों में भी शामिल है इस्तीफ़ा दे, इस मसले पर संसद में झूठा बयान देने वाली केन्द्रीय मन्त्री हरसिमरत कौर बादल भी इस्तीफ़ा दे, समूचे बादल परिवार की जायदाद की जाँच सुप्रीम कोर्ट के जज से करवायी जाये। प्राइवेट बस कम्पनियों द्वारा स्टाफ़ के नाम पर गुण्डे भर्ती करने पर रोक लगाने, बसों की सवारियों ख़ासकर स्त्रियों की सुरक्षा की गारण्टी करने के लिए काले शीशे और पर्दों पर पाबन्दी लगाने, अश्लील गीत, अश्लील फ़िल्में, ऊँचे हॉर्न से होने वाले ध्‍वनि प्रदूषण पर रोक लगाने आदि माँगें भी उठायी गयीं। इसके साथ ही फरीदकोट में ऑर्बिट बस काण्ड के खि़लाफ़ प्रदर्शन कर रहे नौजवान-छात्रों पर लाठीचार्ज व उन्हें हत्या के प्रयास के झूठे आरोपों में जेल में ठूँसने की सख्त निन्दा करते हुए ये केस रद्द करने व जेल में बन्द नौजवानों-छात्रों को रिहा करने की माँग उठायी गयी।

मोगा ऑर्बिट बस काण्ड: राजनीतिक सरपरस्ती तले पल-बढ़ रही गुण्डागर्दी का नतीजा

बादल परिवार ने पंजाब में जो गुण्डागर्दी का माहौल बनाया है उसके कारण रोज़ाना पता नहीं कितनी ही दुखदाई घटनाएँ घटती हैं। इनमें से कुछ ही सामने आती हैं और इनमें से भी कुछेक ही जनता में चर्चा का विषय बनती हैं। 30 अप्रैल को मोगा में घटित हुआ ऑर्बिट बस काण्ड न सिर्फ़ जनता में चर्चा का विषय बना बल्कि इस पर लोगों का गुस्सा भी फूटा और लोग सड़कों पर आये। मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, छात्रों, सरकारी मुलाजिमों के संगठनों ने समय की ज़रूरत को समझते हुए इस घटना के आधार पर बादल परिवार की गुण्डागर्दी समेत समूची गुण्डागर्दी, सार्वजनिक बस परिवहन के निजीकरण के खि़लाफ़ काबिले-तारीफ़ संघर्ष छेड़ा है।