आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष के आगे झुकी केजरीवाल सरकार!
दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में आंगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष को मिली शानदार जीत!

सिमरन

दिल्ली में आई.सी.डी.एस. स्कीम के तहत काम कर रही आंगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स के 23 दिन लम्बे चले जुझारू संघर्ष के आगे केजरीवाल सरकार को अपने घुटने टेकने पड़े। अपनी मांगों को लेकर 7 दिनों तक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की सारी तात्कालिक मांगों को केजरीवाल सरकार को बिना किसी शर्त के मानने को मज़बूर होना पड़ा। आंगनवाड़ी कर्मचारियों को यह जीत दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में हासिल हुई।

यह पूरा आंदोलन 7 जुलाई से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के स्वतःस्फूर्त विरोध से जन्मा था। 7 जुलाई से दिल्ली के सिविल लाइन्स स्थित अरविन्द केजरीवाल के आवास पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएँ अपने पिछले 8-9 महीनों के मानदेय का भुगतान न होने को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। मगर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के संघर्ष को सही दिशा और गति देने का काम दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने किया।

aanganvadi 1आंगनवाड़ी केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित 6 साल तक के बच्चों की देखभाल के केन्द्र होते हैं। इनकी शुरुआत 1975 में एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (आई.सी.डी.एस.) कार्यक्रम के तहत बच्चों में भूख और कुपोषण दूर करने के लिए की गयी थी। करीब 1000 की आबादी पर एक आंगनवाड़ी केन्द्र होता है जिसकी व्यवस्था आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा की जाती है। उन्हें स्वास्थ्य, पोषण और बच्चों की देखभाल के लिए चार महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है। 20 से 25 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर एक सुपरवाइज़र होती है जिसे मुख्य सेविका कहते हैं। 4 मुख्यसेविकाओं पर एक बाल विकास परियोजना अधिकारी (सी.डी.पी.ओ.) होता है। देश में लगभग साढ़े दस लाख आंगनवाड़ी केन्द्र हैं जिनमें करीब 18 लाख मुख्यतः महिला कार्यकर्ता और सहायिकाएँ काम करती हैं। वे ग़रीब परिवारों को टीकाकरण, स्वस्थ भोजन, स्वच्छ पानी जैसी सुविधाओं के साथ ही शिशुओं और छोटे बच्चों तथा गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं की देखभाल भी करती हैं। मगर ग़रीबों की बात करने वाली तमाम सरकारें इन लाखों महिलाओं के अधिकारों की लगातार अनदेखी करती रही हैं। दिल्ली में भी 10 हज़ार से अधिक कार्यकर्ता और सहायिकाएँ हैं जो मज़दूरों और ग़रीबों की बस्तियों में बच्चों का ध्यान रखती हैं।

आंगनबाडी कार्यकर्ता लगातार 7 जुलाई से अरविन्द केजरीवाल के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। पर न तो केजरीवाल सरकार ने आंगनवाड़ी की इन महिलाओं की परेशानियों को जानने की कोई कोशिश की और न ही उनसे बात करने तक की ज़हमत उठाई। बिगुल मज़दूर दस्ता शुरुआत से ही आंगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष का समर्थन कर रहा था। स्वतःस्फूर्त खड़े हुए इस आंदोलन में हिस्सा ले रही आंगनवाड़ी कर्मचारियों के बीच से उनकी अपनी क्रान्तिकारी यूनियन का जन्म हुआ, जिसमे ट्रेड यूनियन जनवाद के सिद्धान्तों के तहत चुने हुए प्रतिनिधियों की एक कमिटी का गठन किया गया। जिसके बाद इस पूरे आंदोलन को क्रांतिकारी चेतना के साथ आगे बढ़ाया गया। शुरआती मांगों में आंगनवाड़ी के कर्मचारियों की मांग थी की उन्हें स्थायी किया जाये, उनकी आय की श्रेणी सुनिश्चित की जाये और प्रोहत्साहन राशि की बजाय वेतन दिया जाये और इस वेतन का भुगतान हर महीने सुनिश्चित समय तक किया जाये साथ ही सभी कर्मचारियों को पहचान पत्र दिया जाए, शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश दिये जायें।

अपनी इन्ही सभी मांगों को लेकर आंगनवाड़ी कर्मचारी अरविन्द केजरीवाल के घर के आगे प्रदर्शन कर रहे थे। मगर सरकार ने प्रदर्शनकर्मियों की मांगों की कोई सुध नहीं ली। अपनी बात को सरकार तक पहुचाने के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने 16 जुलाई को सिविल लाइन्स से लेकर विधान सभा तक एक चेतावनी रैली निकली और अगले दिन यानी 17 जुलाई को आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने दिल्ली सचिवालय पर एक विशाल प्रदर्शन का आयोजन करके केजरीवाल सरकार को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। मगर इतने पर भी सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई करना तो दूर आंगनवाड़ी कर्मचारियों को कोई आश्वासन तक नहीं दिया गया। लेकिन अपने संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने 18 जुलाई से क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठने का निर्णय लिया और साथ ही अपनी ताकत का सही आकलन लगाते हुए यूनियन और आंगनवाड़ी कर्मचारियों की आम सहमति से ये तय किया गया कि जब तक अपनी यूनियन का विस्तार नहीं किया जाता और अपनी ताकत को और नहीं बढ़ाया जाता तब तक स्थायी होने की मांग को मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालना मुश्किल होगा। यही से इस आंदोलन में स्थायी होने की दीर्घकालिक मांगों के साथ साथ तात्कालिक मांगें जोड़ दी गयी जिनको लेकर हड़तालकर्मी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे। यह क्रमिक भूख हड़ताल 5 दिन चली। इस दौरान पर्चे निकाल कर केवल आंगनवाड़ियों में ही नहीं बल्कि दिल्ली की आम जनता, विश्वविद्यालयों के छात्रों व अध्यापकों के बीच भी आंगनवाड़ी के कर्मचारियों के संघर्ष का समर्थन करने और उनके इस संघर्ष में हर संभव मदद करने की अपील की गयी। पर्चों और पोस्टरों के ज़रिये आंगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष को व्यापक जनता तक ले जाया गया।

हर बीतते दिन के साथ हड़ताल स्थल यानी केजरीवाल के आवास के बाहर आंगनवाड़ी कर्मचारियों की संख्या बढ़ती जा रही थी मगर इस के बावजूद केजरीवाल सरकार ने हड़तालकर्मियों की कोई सुध नहीं ली। अपने संघर्ष को अगले चरण में लेकर जाते हुए और निर्णायक फैसला करते हुए 23 जुलाई से आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने की घोषणा की। लगातार केजरीवाल सरकार तक अपनी बात पहँुचाने के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने दिल्ली सचिवालय, विधान सभा से लेकर केजरीवाल के घर पर लगने वाले जनता दरबार तक में अपने ज्ञापन सौपे। मगर जब हर जगह अपनी बात को लेकर जाने के बावजूद सरकार के उदासीन रवैये में कोई फर्क नहीं आया तब आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने केजरीवाल के घर के आगे ही अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठना मुनासिब समझा।

इस आंदोलन में भी आंगनवाड़ी कर्मचारियों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहला खतरा तो इस आंदोलन को भितरघातियों और सीटू, एस.यू.सी.आई. जैसे तमाम दलालों से था, जो लम्बी चल रही हड़ताल को तुड़वाने के लिए लगातार यू‍नि‍यन के खि़लाफ़ कुत्साप्रचार कर रहे थे। गौरतलब बात यह है कि आंगनवाड़ी कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन सीटू से सम्बद्ध है। इसके बावजूद आंगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष को मज़बूत करने की बात करने की बजाय सीटू के दलालों ने आंगनवाड़ी कर्मचारियों से हड़ताल तोड़ने को कहा। सीटू के दलाल बार-बार कर्मचारियों के बीच जाकर 2 सितम्बर को होने वाली अपनी रस्मी कवायद के दिन प्रदर्शन करने की गुहार लगा रहे थे। इन दलालों ने कुछ आंगनवाड़ी कर्मचारियों को अपना मोहरा बनाकर हड़ताल को तोड़ने की हर मुमकिन कोशिश की। लेकिन आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने इन तमाम विजातीय तत्वों को खदेड़कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। भरसक प्रयास करने के बाद भी इन दलालों और लफ्ऱफ़ाज़ों की कोई चाल काम नहीं आई और आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने इन्हें इनकी असली औकात दिखाकर बाहर कर दिया। वही दूसरी ओर हड़ताली कर्मियों को परेशान करने और आंदोलन को कमजोर करने के लिए सरकार सुपरवाइजरों और सी.डी.पी.ओ. से लगातार दबाव बनवा रही थी कि अगर हड़ताल में शामिल होगे तो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। अलग-अलग केन्द्रों पर पुलिस की धमकियों से लेकर तमाम तरह से दबाव कर्मचारियों पर बनाये जा रहे थे। हड़ताल स्थल पर शौचालय की व्यवस्था न करवाना, पानी के टैंकर को हटवा देने, तबियत बिगड़ने पर डॉक्टरी सहायता न पहुँचाने और पुलिस को भेज हड़ताली कर्मियों के तम्बू को उखड़वाने जैसी तमाम कोशिशों के बावजूद न तो दलाल और न ही सरकार आंगनवाड़ी के संघर्ष को तोड़ पाये। आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने अपनी परेशानियों को दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग के सामने भी रखा मगर नजीब जंग ने आंगनवाड़ी कर्मचारियों को सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव से जाकर मिलने की सलाह दी। 7 दिन लम्बी चली अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल और जनता द्वारा पैदा किये गए दबाव के कारण केजरीवाल सरकार को आंगनवाड़ी कर्मचारियों के आगे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा। जो सरकार 22 दिनों से आंगनवाड़ी कर्मचारियों की मांगों को अनसुना कर रही थी उसी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने खुद आंगनवाड़ी कर्मचारियों के एक प्रतिनिधि मंडल को 29 जुलाई को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। यह वही सरकार थी जिसके महिला एवं बाल विकास विभाग के मंत्री संदीप कुमार और सेक्रेटरी आंगनवाड़ी कर्मचारियों से मिलने के लिए समय निकालने को तैयार नहीं थे मगर जनता की एकता और आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष को देख कर न केवल संदीप कुमार आंगनवाड़ी कर्मचारियों से मिले बल्कि खुद अरविन्द केजरीवाल ने आंगनवाड़ी कर्मचारियों की सभी तात्कालिक मांगों को बिना किसी शर्त स्वीकार करते हुए उनके ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। और साथ ही प्रतिनिधि मंडल में मौजूद कर्मचारियों को यह भरोसा दिलाया कि वह जल्द से जल्द सभी मांगों को लागू भी कर देंगे।

अपनी जीत की खुशी मनाते हुए आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने सिविल लाइन्स से विधान सभा तक एक विजय जुलूस निकाला जिसमे 3000 से भी ज्यादा आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। विजय जुलुस के बाद सिविल लाइन्स के धरना स्थल पर हुई सभा में  तात्कालिक मांगों को माने जाने के मायनों और आगे के संघर्ष के बारे में बात की गयी। महिला एवं बाल विकास विभाग के मंत्री संदीप कुमार और डिप्टी डायरेक्टर सौम्या ने सभा में आकर आंगनवाड़ी कर्मचारियों से बात की और साथ ही वार्ता के बाद तैयार किये गये आर्डर की एक कॉपी को दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनि‍यन के प्रतिनिधियों को सौंपा।

दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन की सदस्य शिवानी ने बताया कि अभी सरकार ने केवल हमारी तात्कालिक मांगें जिनमें पिछले 8-9 महीनों के बकाये मानदेय के तुरंत भुगतान, पहचान पत्र देने, हर महीने की 10 तारीख तक भुगतान करने, सबला स्कीम के भत्ते के भुगतान और बीमा की मांगें मानी है। और साथ ही वेतन बढ़ोतरी की बात भी अरविन्द केजरीवाल ने कही है। अपनी दीर्घकालिक मांगों जैसे कि सरकारी कर्मचारी का दर्जा पाने, न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई. व पी.एफ­. आदि के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। मगर जैसा तमाम सरकारे करती हैं वैसा ही कुछ केजरीवाल सरकार ने भी किया। 3 दिन का समय बीत जाने के बाद भी सभी कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान नहीं किया गया जिसके चलते 9 अगस्त को जंतर मंतर पर दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों की एक आम सभा बुलाकर फिर से सरकार पर दबाव बनाने और आगे की रणनीति पर बातचीत की। इसके बाद 16 अगस्त को फिर से जंतर मंतर पर महाजुटान आयोजित कर केजरीवाल सरकार से उनके द्वारा स्वीकार की गयी तात्कालिक मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की गयी। साथ ही यूनियन की सदस्यता का विस्तार भी किया जा रहा है। मात्र 2 हफ्तों के भीतर 2500 लोगों ने यिूनयन की सदस्यता हासिल की है। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जायज हकों के लिए संघर्षरत है। अपनी मिली इस जीत आंगनवाड़ी कर्मचारियों में उत्साह और जोश है और सभी अपनी दीर्घकालिक मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष करने के लिए तत्पर है।

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2015


 

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