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न्यूनतम वेतन क़ानून के ज़रिये केजरीवाल की नयी नौटंकी का पर्दाफ़ाश करो! संगठित होकर अपने हक़ हासिल करो!!

 अगर सरकार की सही मायने में यह मंशा होती कि यह क़ानून लागू किया जाये तो सबसे पहले तो यही सवाल बनता है कि दिल्ली की आप सरकार ने पुराने क़ानूनों को ही कितना लागू किया है? अगर सही मायने में केजरीवाल सरकार की यह मंशा होती तो वह सबसे पहले हर फ़ैक्टरी में मौजूदा श्रम क़ानूनों को लागू करवाने का प्रयास करती, परन्तु पंगु बनाये गये श्रम विभाग के ज़रिये यह सम्भव ही नहीं है। कैग की रिपोर्ट इनकी हक़ीक़त सामने ला देती है। इस रिपोर्ट के अनुसार कारख़ाना अधिनियम, 1948 (Factories Act, 1948) का भी पालन दिल्ली सरकार के विभागों द्वारा नहीं किया जा रहा है। वर्ष 2011 से लेकर 2015 के बीच केवल 11-25% पंजीकृत कारख़ानों का निरीक्षण किया गया। निश्चित ही  इस क़ानून से जिसको थोडा-बहुत फ़ायदा पहुँचेगा, वह सरकारी कर्मचारियों और संगठित क्षेत्र का छोटा-सा हिस्सा है, परन्तु यह लगातार सिकुड़ रहा है।

‘ऑड-इवेन’ जैसे फ़ॉर्मूलों से महानगरों की हवा में घुलता ज़हर ख़त्म नहीं होगा

कुछ लोग अकसर इस भ्रम का शिकार रहते है कि कानूनों को सही तरीके से लागू करके पूँजीपतियों पर लगाम कसी जा सकती है और वे अपनी बात के समर्थन में प्राय: यूरोप और अमेरिका का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हालाँकि हालिया घटनाक्रम उनके इस भ्रम को तोड़ने के लिए काफी है। ‘वॉक्सवैगन’ नाम की कम्पनी ने यूरोप में उत्सर्जन कानूनों से बच निकलने के लिए गाडियों में ऐसे साफ्टवेयर लगाये जो प्रदूषण जाँच के दौरान तो उत्सर्जन को सामान्य स्तर पर दिखलाता था पर वास्तव मे बाकी समय उन गाडि़यों का उत्सर्जन स्थापित मानकों से 40 गुणा अधिक होता था। पूँजीपति वर्ग जब अपने मुनाफ़े पर ख़तरा मंडराता देखता है तब अपनी ही राज्य व्यवस्था द्वारा बनाये गए कानूनों की धज्जियां उड़ाने में उसे ज़रा भी हिचक नहीं होती है।

केजरीवाल सरकार का “आम आदमी” चेहरा एक बार फिर बेनकाब

चुनाव से पहले खुद अरविन्द केजरीवाल दूसरी पार्टियों पर ये आरोप लगाते थे कि अपना वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर ये सभी एकमत को जाते हैं पर लोकपल पर इनकी सहमति नहीं बनती है। इन्होंने घोषणा की थी कि ये आम आदमी की तरह जीवन बितायेंगेे, 25 हज़ार से ज्यादा कोई वेतन नहीं लेगा, कोई बड़ा बंगला नहीं लेंगे, ज़रूरत पड़ने पर छोटा सरकारी घर लेंगे, कोई पुलिस सुरक्षा नहीं लेंगे, सादा जीवन बिताएंगे आदि-आदि। हमेशा की तरह अपनी बात से पलटी खा कर ये “स्वराज” के पुजारी बाकी नेताओं की ही तरह जनता के पैसे पर जम कर आइयाशी कर रहे है।

आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष के आगे झुकी केजरीवाल सरकार!

अपनी दीर्घकालिक मांगों जैसे कि सरकारी कर्मचारी का दर्जा पाने, न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई. व पी.एफ­. आदि के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। मगर जैसा तमाम सरकारे करती हैं वैसा ही कुछ केजरीवाल सरकार ने भी किया। 3 दिन का समय बीत जाने के बाद भी सभी कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान नहीं किया गया जिसके चलते 9 अगस्त को जंतर मंतर पर दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों की एक आम सभा बुलाकर फिर से सरकार पर दबाव बनाने और आगे की रणनीति पर बातचीत की। इसके बाद 16 अगस्त को फिर से जंतर मंतर पर महाजुटान आयोजित कर केजरीवाल सरकार से उनके द्वारा स्वीकार की गयी तात्कालिक मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की गयी। साथ ही यूनियन की सदस्यता का विस्तार भी किया जा रहा है। मात्र 2 हफ्तों के भीतर 2500 लोगों ने यिूनयन की सदस्यता हासिल की है। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जायज हकों के लिए संघर्षरत है। अपनी मिली इस जीत आंगनवाड़ी कर्मचारियों में उत्साह और जोश है और सभी अपनी दीर्घकालिक मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष करने के लिए तत्पर है।

आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने किया दिल्‍ली विधान सभा का घेराव

इस चेतावनी रैली के ज़रिये आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने केजरीवाल सरकार के समक्ष यह साफ़ कर दिया है कि जब तक उनकी माँगों को स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। बिगुल मज़दूर दस्ता आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों के इस संघर्ष में लगातार उनका समर्थन कर रहा है। ज्ञात हो कि 14 जुलाई को केजरीवाल सरकार का एक प्रतिनिधिमण्डल हड़तालकर्मियों से मिला था, पर सरकार के इन नुमाइन्दों ने दिलासा देने के अलावा कोई ठोस आश्वासन देना ज़रूरी नहीं समझा, जिसके बाद कर्मचारियों ने एकमत से यह तय किया कि वह एक चेतावनी रैली निकालकर केजरीवाल सरकार को यह चेता देंगे कि उन्हें कोरे दिलासे नहीं बल्कि ठोस कार्यवाही और अपनी माँगों की स्वीकृति चाहिए। आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने आज यह घोषणा की कि अगर सरकार जल्द से जल्द उनकी माँगों की सुनवाई नहीं करती है तो अगली बार वह दिल्ली सचिवालय का घेराव करेंगे।

25 मार्च की घटना के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में आम आदमी पार्टी के विरोध में प्रदर्शन

25 मार्च की घटना के विरोध दिल्ली, पटना, मुम्बई और लखनऊ में विरोध प्रदर्शन हुए। 1 अप्रैल को दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और इलाके के आप विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। लखनऊ में भी 28 मार्च के दिन कई जनसंगठनों ने मिलकर जीपीओ पर प्रदर्शन किया और केजरीवाल सरकार की निन्दा की। पटना में 5 अप्रैल को नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने केजरीवाल का पुतला दहन किया और 25 मार्च की घटना के लिए लिखित माफ़ी की माँग की। मुम्बई में भी इसी दिन दादर स्टेशन के बाहर यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी व नौजवान भारत सभा ने मिलकर प्रदर्शन किया और केजरीवाल सरकार के प्रति भर्त्सना प्रस्ताव पास किया। सूरतगढ़ में भी नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में लोगों ने केजरीवाल सरकार का पुतला फूँका और विरोध प्रदर्शन किया।

मज़दूर वर्ग का नया शत्रु और पूँजीवाद का नया दलाल – अरविन्द केजरीवाल

अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति और विचारधारा और साथ ही उसकी सरकार के मज़दूर-विरोधी चरित्र को हर क़दम पर बेनक़ाब करना होगा और स्पष्ट करना होगा कि अरविन्द केजरीवाल पूँजीवाद का नया दलाल है और मज़दूर वर्ग और आम मेहनतक़श जनता के साथ इसका कुछ भी साझा नहीं है। दिल्ली की मेहनतक़श जनता को बार-बार उसकी ठोस माँगों और ‘आप’ सरकार के वायदों की पूर्ति के प्रश्न पर जागृत, गोलबन्द और संगठित करना होगा। यह समझने की ज़रूरत है कि अरविन्द केजरीवाल और ‘आम आदमी पार्टी’ एक अलग तौर पर पूँजीवाद की आख़ि‍री सुरक्षा पंक्तियों में से एक है। आख़ि‍री पंक्ति की भूमिका में संसदीय वामपंथ देश के पैमाने पर अस्थायी रूप से थोड़ा अप्रासंगिक हो गया है। व्यवस्था को एक नयी सुरक्षा पंक्ति की ज़रूरत थी और ‘आम आदमी पार्टी’ ने कम-से-कम अस्थायी तौर पर पूँजीवादी व्यवस्था की इस ज़रूरत को पूरा किया है और जनता का भ्रम व्यवस्था में बनाये रखने का काम किया है।

केजरीवाल सरकार को वादों की याद दिलाने दिल्ली सचिवालय पहुँचे ठेका मज़दूरों पर पुलिस का बुरी तरह लाठीचार्ज

शांतिपूर्वक अपनी बात को मुख्यमन्त्री तक ले जाने के इरादे से आये दिल्ली भर के मज़दूरों और आम मेहनतकश जनता को वहशी तरीक़े से पीटा गया। पुलिस के पुरुष कर्मियों ने महिलाओं को बुरी तरह पीटा जिसके कारण अनेक महिलाओं को गंभीर चोटें आयी, एक युवा महिला कार्यकर्ता की टांग टूट गयी और बहुत से लोगों के सर फूट गये। इतने पर भी दिल्ली पुलिस को चैन नहीं आया, रैपिड एक्शन फोर्स और दिल्ली पिुलस ने मिलकर मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, आँसू गैस के गोले बारिश की तरह बरसाए गये। प्रदर्शन में महिलायें व बच्चे भी शामिल थे मगर पुलिस ने उन्हें भी नहीं बक्शा।