महँगाई की बढ़ती मार! चुप क्यों है मोदी सरकार!!
रसोई गैस के दाम और पेट्रोल-डीज़ल पर कर बढ़ाकर मोदी सरकार का जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका!
सनी
मोदी सरकार ने 9 अप्रैल से रसोई गैस के दाम 50 रुपये बढ़ा दिये हैं और पेट्रोल और डीज़ल के करों में भी 2 रुपये की बढ़ोत्तरी की है। इसका क्या असर होगा, यह हम मेहनतकश समझ सकते हैं। इसके कारण, समूची महँगाई में ही बढोत्तरी होगी क्योंकि ये वे उत्पाद हैं, जिनकी क़ीमत बढ़ने के कारण उन सभी वस्तुओं और सेवाओं की क़ीमत बढ़ेगी जिनके उत्पादन में ईंधन व सहायक सामग्री के तौर पर इनका इस्तेमाल होता है। नतीजा होगा सरकार द्वारा इन उत्पादों पर अप्रत्यक्ष कर बढ़ाये जाने के फलस्वरूप इनकी क़ीमतों में बढ़ोत्तरी और आम तौर पर मेहनतकश आबादी के लिए महँगाई में बढ़ोत्तरी।
यह वही भाजपा है जिसने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ख़ुद को ग़रीब-हितैषी दिखाने की कोशिश में झुग्गी के बदले पक्का मकान और फ्री एलपीजी सिलिण्डर देने का वायदा किया था। भाजपा शीश-महल विरोधी होने और दिल्ली में अमृत काल के शुरू होने की बात कर रही थी। यह वही भाजपा है जिसकी नेता स्मृति ईरानी सिलेण्डर की क़ीमत के बढ़ने पर सड़कों पर आकर सिलिण्डर-नृत्य करना शुरू कर देती थी। लेकिन अब भालू की तरह शीतनिद्रा में चुप्पी साधे बैठी हैं! भाजपा के स्वर्ण-काल की पहली सौगात यही है कि अब ग़रीबों के लिए खाने-पीने से लेकर हर वस्तु और महँगी हो जायेगी।
भाजपा का झूठ: ग़रीबों पर बढ़ता करों का बोझ और अमीरों को खूली छूट!
गैस सिलिण्डर के दाम आईपीपी (import parity price (IPP)) यानी आयात समता क़ीमत से तय होते हैं और यह भी अन्ततः कच्चे तेल की क़ीमत से ही निर्धारित होता है। जब अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत कम हुई हैं तो गैस सिलिण्डर के दाम यह कहकर बढ़ाना कि अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमतें अधिक हैं, जनता से सफ़ेद झूठ बोलना है!
दूसरी तरफ़ पेट्रोल-डीज़ल पर मोदी सरकार द्वारा एक्साइज़ ड्यूटी में बढ़ोतरी की गयी है। पेट्रोल पम्प पर क़ीमत में फ़िलहाल यह बढ़ोत्तरी नहीं दिखेगी क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत कम हुई है लेकिन यह हर हमेशा नहीं रहेगा और जैसे ही क़ीमतें बढेंगी इसका बोझ जनता के सर पर ही पड़ने वाला है। भाजपा के मन्त्री कह रहे हैं कि दरअसल सरकारी पेट्रोलियम कम्पनियाँ लम्बे समय से नुक़सान झेल रही थीं, इसलिए ही क़ीमतें बढायी गयी हैं! सरकार बता रही है कि कम्पनियों को क़रीब 32 हज़ार करोड़ का नुक़सान हो रहा था! लेकिन क्या यह पूरा सच है? नहीं!
पूरा सच यह है कि पिछले साल सरकारी पेट्रोलियम उपक्रमों को 86 हज़ार करोड़ का फ़ायदा हुआ और देश के सभी सरकारी उपक्रमों को कुल मिलाकर 5.6 लाख करोड़ का मुनाफ़ा हुआ तो सरकार ने इस मुनाफ़े की वजह से पेट्रोल, डीज़ल और सिलेण्डर के दाम कम नहीं किये! क्या इस मुनाफ़े का इस्तेमाल जनता पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ कम करने में हुआ? क्या इस मुनाफ़े को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं पर ख़र्च किया गया? नहीं! दरअसल सरकारी उपक्रमों का मुनाफ़ा इस देश की जनता की गाढ़ी कमाई का ही हिस्सा है, जिसे नॉन टैक्स रेवेन्यू कहा जाता है और इसका इस्तेमाल सरकार पूँजीपतियों की सेवा में ही करती है! यानी यह राजस्व सीधे तौर पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों से नहीं, बल्कि मुनाफ़ा देने वाले सरकारी उपक्रमों के ज़रिये आ रहा होता है। भाजपा के मन्त्री हरदीपसिंह पुरी ने सिद्ध कर दिया है कि उन्हें असल में चिन्ता तो इस देश के कॉरपोरेट घरानों, पूँजीपतियों, धन्नासेठों और पेट्रोलियम उपक्रमों के मुनाफ़े की है और इसके लिए आम जनता का ख़ून चूसकर भी इस मुनाफ़े को बढाया जायेगा!
सरकार कहने के लिए हमसे अप्रत्यक्ष कर इसलिए ही वसूलती है ताकि हमें तमाम सुविधाएँ जैसे अस्पताल, आवास, शिक्षा और राशन मुहैया करा सके। लेकिन यहाँ सरकार हमसे कह रही है कि वह हमसे अप्रत्यक्ष कर भी वसूलेगी और सरकारी उपक्रम के नुक़सान की भरपाई भी इस वसूली से की जायेगी! सरकार जनता से करों का एक बड़ा हिस्सा पेट्रोल और डीज़ल से ही वसूलती है! मोदी सरकार को आयात किया गया कच्चा तेल बेहद सस्ते दामों पर मिलता है। डीलर को मिलने वाला हिस्सा ही पेट्रोल की क़ीमत का 36 प्रतिशत होता है, जो कि सरकार ने पेट्रोल पम्प मालिकों, बिचौलियों आदि को लाभ पहुँचाने के लिए ही रखा है। ऊपर से, केन्द्र सरकार इस पर 37 प्रतिशत टैक्स वसूलती है और क़रीब 23 प्रतिशत वैट राज्य सरकारें लगाती हैं। शेष 3-4 प्रतिशत डीलर का कमीशन, ढुलाई ख़र्च आदि होता है। यानी ये सरकारी टैक्स ही हैं जो पेट्रोल की क़ीमतों को 90 के पार (और कहीं-कहीं तो 100 के पार) पहुँचा दे रहे हैं। आज अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 63 डॉलर प्रति बैरल है, यानी 159 लीटर की क़ीमत 63 डॉलर। यानी, प्रति लीटर पेट्रोल की अन्तरराष्ट्रीय क़ीमत है 0.396 डॉलर। भारतीय रुपयों में प्रति लीटर कच्चे तेल की अन्तरराष्ट्रीय क़ीमत है मात्र 34.11 रुपये। कच्चे तेल के एक लीटर के परिशोधन (refining) का ख़र्च है लगभग 3 रुपये। यानी, उपयोग योग्य प्रति लीटर पेट्रोल पर सरकार को ख़र्च करने पड़ते हैं कुल लगभग 37.11 रुपये। पेट्रोल की असल क़ीमत से 169 प्रतिशत ज़्यादा टैक्स हमसे वसूला जा रहा है यानी अपनी क़ीमत से दो गुने से थोड़ा कम!
करों का यह बोझ लगभग हर वस्तु को महँगा करने के लिए भी ज़िम्मेदार होता है क्योंकि पेट्रोल-डीज़ल के महँगे होने की वजह से लगभग हर वस्तु महँगी हो जाती है. यही हाल लगभग हर उस वस्तु का है जिसे मज़दूर और मेहनतकश जनता इस्तेमाल करती है. सच तो यह है कि मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद से महँगाई बेतहाशा बढ़ी है! आटा, चावल, चीनी, वनस्पति तेल, अण्डा, दाल से लेकर कमरे का किराया, बस का किराया, मेट्रो का किराया 2014 के मुक़ाबले कई गुना बढ़े हैं! यह महँगाई किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नहीं बल्कि मोदी सरकार के द्वारा जनता के ऊपर थोपे गये अप्रत्यक्ष करों के बोझ के कारण बढ़ रही है. वही अप्रत्यक्ष कर जी.एस.टी. और पेट्रोल-डीज़ल पर वसूले जाने वाली एक्साइज ड्यूटी के रूप में लगाया गया है।
जनता का जीना बेहाल, अमीर होते मालामाल!
एक तरफ़ तमाम चीज़ों के दाम बढ़ते जा रहे हैं और दूसरी तरफ़ आम मेहनतकश आबादी की वास्तविक आय में या तो गिरावट आयी है या फिर वह लगभग स्थिर है। क्योंकि आम आबादी की ख़रीदने की क्षमता पहले से कम हुई है। वैसे तो तमाम पार्टियों की सरकारें पूँजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमिटी का काम करती रही हैं, लेकिन मोदी सरकार ने पूँजीपति वर्ग की सेवा में पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये और नंगे रूप में बड़ी पूँजी की सेवा में संलग्न रही है, और हम इसपर कुछ कर न पायें इसलिए ही भाजपा सरकार, संघ और गोदी मीडिया बताता है कि इस देश में सबसे बड़ा ख़तरा मुसलमानों से है! साम्प्रदायिक ज़हर बोकर हिन्दू और मुसलामानों के झगड़े करवाकर सरकार हमारी लूट-खसोट को सम्भव बनाती है! आम जन इस मुद्दे पर कोई सवाल ना उठा सके इसलिए ही मोदी सरकार और संघ परिवार द्वारा जनता को धर्म-जाति-क्षेत्र-भाषा आदि में बाँटा जाता रहा है।
हमें यह पहचानना होगा कि हमारी दुश्मन यह मोदी सरकार है जो अमीरों की सेवा में संलग्न है। सरकार लगातार कॉरपोरेट कर और उच्च मध्य वर्ग पर लगने वाले आयकर को घटा रही है और इसकी भरपाई आम जनता की जेबों से कर रही है। भारत में मुख्यत: आम मेहनतकश जनता द्वारा दिया जाने वाला अप्रत्यक्ष कर, जिसमें जीएसटी, वैट, सरकारी एक्साइज़ शुल्क, आदि शामिल हैं, सरकारी खज़ाने का क़रीब 60 प्रतिशत बैठता है। यह वह टैक्स है जो सभी वस्तुओं और सेवाओं ख़रीदने पर आप देते हैं, जिनके ऊपर ही लिखा रहता है ‘सभी करों समेत’। इसके अलावा, सरकार बड़े मालिकों, धन्नासेठों, कम्पनियों आदि से प्रत्यक्ष कर लेती है, जो कि 1990 के दशक तक आमदनी का 50 प्रतिशत तक हुआ करता था, और जिसे अब घटाकर 30 प्रतिशत तक कर दिया गया है। यह कॉरपोरेट और धन्नासेठों पर लगातार प्रत्यक्ष करों को घटाया जाना है, जिसके कारण सरकार को घाटा हो रहा है। दूसरी वजह है इन बड़ी-बड़ी कम्पनियों को टैक्स से छूट, फ़्री बिजली, फ़्री पानी, कौड़ियों के दाम ज़मीन दिया जाना, घाटा होने पर सरकारी ख़र्चों से इन्हें बचाया जाना और सरकारी बैंकों में जनता के जमा धन से इन्हें बेहद कम ब्याज दरों पर ऋण दिया जाना, उन ऋणों को भी माफ़ कर दिया जाना या बट्टेखाते में, यानी एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) बोलकर इन धन्नासेठों को फोकट में सौंप दिया जाना। अब अमीरों को दी जाने वाली इन फोकट सौगातों से सरकारी ख़ज़ाने को जो नुक़सान होता है, उसकी भरपाई आपके और हमारे ऊपर टैक्सों का बोझ लादकर मोदी सरकार कर रही है।
आज यह ज़रूरत है कि जनता को उनके असली मुद्दों पर एकजुट किया जाये और साम्प्रदायिक और फ़िरकापरस्त सरकार और उसके समर्थकों का असली ‘चाल-चरित्र-चेहरा’ सामने लाया जाये। महँगाई को भी सरकार ख़त्म कर सकती है. किस तरह? जनता से वसूले जाने वाले अप्रत्यक्ष कर को ख़त्म करे और अमीरों से इसकी भरपाई करे! हम माँग करते हैं कि:
1) सभी वस्तुओ व सेवाओं पर सभी अप्रत्यक्ष करों को तत्काल समाप्त किया जाये और प्रगतिशील कराधान तन्त्र के ज़रिये अमीर वर्गों पर कॉरपोरेट टैक्स, इनकम टैक्स, प्रॉपर्टी व उत्तराधिकार टैक्स के रूप में प्रत्यक्ष कर लगाकर सरकारी राजस्व एकत्र किया जाये। यह क़ीमतों के स्तर को सीधे आधा कर देगा।
2) महँगाई पर नियन्त्रण के लिए जमाख़ोरी, वायदा व्यापार (फ्यूचर्स ट्रेड) व सट्टेबाज़ी पर रोक लगाने के लिए सख्त़ क़ानून बनाया जाये, जिसके तहत इन्हें दण्डनीय अपराध घोषित किया जाये।
3) बुनियादी वस्तुओं व सेवाओं के वितरण की व्यवस्था का राष्ट्रीकरण किया जाये और सरकार उसे पूर्णतः अपने हाथों में ले।
4) सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाकर सभी नागरिकों को भोजन मुहैया कराया जाये।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2025
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन