Tag Archives: निराला

कविता – जल्द -जल्द पैर बढ़ाओ ,आओ ,आओ ! / सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

आज अमीरों की हवेली
किसानों की होगी पाठशाला,
धोबी, पासी, चमार, तेली
खोलेंगे अंधरे का ताला,
एक पाठ पढेंगे, टाट बिछाओ|

कविता – तोड़ती पत्थर / सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्रायः हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर।

कविता – राजे ने अपनी रखवाली की / सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

राजे ने अपनी रखवाली की;
किला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं ।
चापलूस कितने सामन्त आए ।