Category Archives: मई दिवस

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विश्वभर में गूँजी मज़दूर मुक्ति की आवाज़

इस वर्ष भी विश्वभर में करोड़ों मज़दूरों न पूँजीवादी लूट के खिलाफ़ जोरदार आवाज़ बुलन्द की है। आयोजन चाहे क्रान्तिकारी ताकतों की पहलीकदमी पर हुए हों या चाहे पूँजीपरस्त नेताओं/संगठनों की पहलकदमी पर हुए हों, अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर मज़दूरों द्वारा दिखाया जोश यह दिखाता है कि वे मौजूदा लुटेरी व्यवस्था से किस कदर दुखी हैं, कि वे पूँजीपक्षधर नेताओं के लक्ष्यों से अगली कार्रवाई चाहते हैं, कि वे गुलामी वाली परिस्थितियों से छुटकारा चाहते हैं। अनेक स्थानों पर क्रान्तिकारी व मज़दूर पक्षधर ताकतों के नेतृत्व में आयोजन हुए जिनके दौरान मज़दूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई जारी रखने, पूँजीवादी व्यवस्था को जड़ से मिटाने, पूँजीपति वर्ग के मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों के खिलाफ़ तीखे हो रहे हमलों के खिलाफ़ संघर्ष तेज़ करने के संकल्प लिए गये।

मई दिवस के अवसर पर मज़दूर शहीदों को याद किया, पूँजी की गुलामी के ख़ि‍लाफ़ संघर्ष आगे बढ़ाने का संकल्प लिया

विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि आठ घण्टे काम दिहाड़ी का क़ानून बनवाने के लिए पूरे विश्व के मज़दूरों ने संघर्ष किया है। उन्नीसवीं सदी में अमेरिकी औद्योगिक मज़दूरों ने ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन’ के नारे के तहत बेहद शानदार, कुर्बानियों से भरा जुझारू संघर्ष किया था। पहली मई 1886 को अमेरिकी मज़दूरों ने देशव्यापी हड़ताल की थी जिसका अमेरिकी हाकिमों ने दमन किया था। दमन द्वारा मज़दूरों की आवाज़ को दबाया नहीं जा सका। आगे चलकर पूरे विश्व में आठ घण्टे काम दिहाड़ी, जायज़ मज़दूरी और अन्य अनेकों अधिकारों के लिए मज़दूरों के संघर्ष आगे बढ़े और विश्व भर की सरकारों को मज़दूरों को संवैधानिक अधिकार देने पड़े। रूस, चीन जैसे देशों में मज़दूर हुक़ूमतें स्थापित हुईं जिनके द्वारा मानवता ने शानदार उपलब्धियाँ हासिल कीं।

मई दिवस के महान शहीद आगस्‍ट स्‍पाइस के दो उद्धरण

सच बोलने की सज़ा अगर मौत है तो गर्व के साथ निडर होकर वह महँगी क़ीमत मैं चुका दूँगा। बुलाइये अपने जल्लाद को! सुकरात, ईसा मसीह, जिआदर्नो ब्रुनो, हसऊ, गेलिलियो के वध के ज़रिये जिस सच को सूली चढ़ाया गया वह अभी ज़िन्दा है। ये सब महापुरुष और इन जैसे अनेक लोगों ने हमारे से पहले सच कहने के रास्ते पर चलते हुए मौत को गले लगाकर यह क़ीमत चुकाई है। हम भी उसी रास्ते पर चलने को तैयार हैं

मई दिवस के अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्‍ता, मुम्‍बई द्वारा जारी पर्चा

आज मज़दूरों की 93 फ़ीसदी (लगभग 56 करोड़) आबादी ठेका, दिहाड़ी व पीस रेट पर काम करती है जहाँ 12 से 14 घण्टे काम करना पड़ता है और श्रम क़ानूनों का कोई मतलब नहीं होता। जहाँ आए दिन मालिकों की गाली-गलौज का शिकार होना पड़ता है। इतनी हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी हम अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के सपने नहीं देख सकते। वास्तव में हमारा और हमारे बच्चों का भविष्य इस व्यवस्था में बेहतर हो भी नहीं सकता है। आज ज़रूरत है कि हम मज़दूर जो चाहे किसी भी पेशे में लगे हुए हैं, अपनी एकता बनायें। आज हम ज्यादातर अलग-अलग मालिकों के यहाँ काम करते हैं इसलिए आज ये बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी इलाकाई यूनियनें भी बनायें। अपनी आज़ादी के लिए, अपने बच्चों के भविष्य के लिए, इन्सानों की तरह जीने के लिए और ये दिखाने के लिए कि हम हारे नहीं हैं, हमें एकजुट होने की शुरुआत करनी ही होगी।

श्रीलंका में मई दिवस और मज़दूर आन्दोलन के नये उभार के सकारात्मक संकेत

श्रीलंका का मज़दूर वर्ग यदि स्वयं अपने अनुभव से संसदवाद, अर्थवाद और ट्रेडयूनियनवाद से लड़ते हुए नवउदारवादी नीतियों और राज्यसत्ता के विरुद्ध एकजुट संघर्ष की ज़रूरत महसूस कर रहा है तो कालान्तर में उसकी हरावल पार्टी के पुनस्संगठित होने की प्रक्रिया भी अवश्य गति पकड़ेगी, क्योंकि श्रीलंका की ज़मीन पर मार्क्सवादी विचारधारा के जो बीज बिखरे हुए हैं, उन सभी के अंकुरण-पल्लवन-पुष्पन को कोई ताक़त रोक नहीं सकेगी। यदि कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की एक पीढ़ी अपना दायित्व नहीं पूरा कर पायेगी, तो दूसरी पीढ़ी इतिहास के रंगमंच पर उसका स्थान ले लेगी।

चुप्पी तोड़ो, आगे आओ! मई दिवस की अलख जगाओ!!

मई दिवस का इतिहास पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ देने के लिए उठ खड़े हुए मज़दूरों के ख़ून से लिखा गया है। जब तक पूँजी की ग़ुलामी बनी रहेगी, संघर्ष और क़ुर्बानी की उस महान विरासत को दिलों में सँजोये हुए मेहनतकश लड़ते रहेंगे। हमारी लड़ाई में कुछ हारें और कुछ समय के उलटाव-ठहराव तो आये हैं लेकिन इससे पूँजीवादी ग़ुलामी से आज़ादी का हमारा जज्ब़ा और जोश क़त्तई टूट नहीं सकता। करोड़ों मेहनतकश हाथों में तने हथौड़े एक बार फिर उठेंगे और पूँजी की ख़ूनी सत्ता को चकनाचूर कर देंगे। इसी संकल्प को लेकर दिल्ली, लुधियाना और गोरखपुर में मज़दूरों के मई दिवस के आयोजनों में बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने शिरकत की और इन आयोजनों को क्रान्तिकारी धार और जुझारू तेवर देने में अपनी भूमिका निभायी।

चुप्पी तोड़ो, आगे आओ! मई दिवस की अलख जगाओ!!

मई दिवस का इतिहास पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ देने के लिए उठ खड़े हुए मज़दूरों के ख़ून से लिखा गया है। जबतक पूँजी की ग़ुलामी बनी रहेगी, संघर्ष और कुर्बानी की उस महान विरासत को दिलों में सँजोये हुए मेहनतक़श लड़ते रहेंगे। पूँजीवादी ग़ुलामी से आज़ादी के जज़्बे और जोश को कुछ हारें और कुछ समय के उलटाव-ठहराव कत्तई तोड़ नहीं सकते। करोड़ों मेहनतक़श हाथों में तने हथौड़े एक बार फिर उठेंगे और पूँजी की ख़ूनी सत्ता को चकनाचूर कर देंगे।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर जारी पर्चा

यह कहानी सिर्फ़ उनके लिए है जो ज़िन्दगी से प्यार करते हैं; उनके लिए जो आज़ाद इंसान की तरह जीना चाहते हैं, गुलामों की तरह नहीं! यह कहानी उनके लिए है जो अन्याय और दमन से नफ़रत करते हैं; उनके लिए जो भुखमरी, ग़रीबी, कुपोषण और बेघरी में जानवरों की तरह नहीं जीना चाहते हैं; यह कहानी उन लोगों के लिए है जो हर रोज़ 12-14 घण्टे खटने, पेट का गड्ढा भरने और फिर शराब के नशे में अपनी निराशा-हताशा को डुबाकर सो जाने को ही ज़िन्दगी नहीं मानते हैं! यह कहानी उनके लिए है जो बराबरी, इंसाफ़ और इज़्ज़त भरी ज़िन्दगी जीना चाहते हैं! अगर आप उनमें से हैं तो यह कहानी आपके लिए ही है।

मई दिवस की क्रान्तिकारी विरासत से प्रेरणा लो!

आज के दौर में औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूर वर्ग के काम के जो हालात हैं और पूँजीपतियों का समूचा गिरोह, उनकी सरकारें और पुलिस-क़ानून-अदालतें जिस तरह उसके ऊपर एकजुट होकर हमले कर रही हैं उससे मज़दूर वर्ग स्वयं यह सीखता जा रहा है कि उसकी लड़ाई अलग-अलग पूँजीपतियों से नहीं बल्कि समूची व्यवस्था से है। यह ज़मीनी सच्चाई अर्थवाद के आधार को अपनेआप ही कमज़ोर बना रही है और मज़दूर वर्ग की राजनीतिक चेतना के उन्नत होने के लिए अनुकूल ज़मीन मुहैया करा रही है। इसकी सही पहचान करना और इस आधार पर मज़दूर आबादी के बीच घनीभूत एवं व्यापक राजनीतिक प्रचार की कार्रवाइयाँ संचालित करना ज़रूरी है। मज़दूरों की व्यापक आबादी को यह भी बताया जाना चाहिए कि असेम्बली लाइन का बिखराव आज भले ही मज़दूरों को संगठित करने में बाधक है लेकिन दूरगामी तौर पर यह फ़ायदेमन्द है।

मज़दूर आन्दोलन के क्रान्तिकारी पुनर्जागरण के लिए आगे बढ़ो! टुकड़ों-रियायतों के लिए नहीं, समूची आज़ादी के लिए लड़ो!

मज़दूर वर्ग को संगठित करने की तमाम वस्तुगत नयी चुनौतियों के साथ-साथ क्रान्तिकारी हरावलों के सामने एक मनोगत चुनौती भी आम तौर पर सामने आती है। मज़दूरों के बीच जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनकर्ता, जो शुरुआती दौरों में अधिकांशत: मध्यवर्गीय सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं, अपने वर्गीय विचारधारात्मक विचलनों-भटकावों का शिकार होकर अर्थवाद, उदारतावाद और लोकरंजकतावाद के गड्ढे में जा गिरते हैं। उनके वर्गीय जड़-संस्कारों के चलते मज़दूरों की तात्कालिक आर्थिक लड़ाइयाँ या ट्रेड यूनियन क़वायदें राजनीतिक कार्य का स्थानापन्न बन जाती हैं। ये संगठनकर्ता भूल जाते हैं कि वे मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी हरावल हैं और आम मज़दूरों के तात्कालिक आर्थिक हितों के दबावों के आगे घुटने टेक देते हैं। उनका सर्वहारा मानवतावाद बुर्जुआ मानवतावाद में बदल जाता है और क्रान्तिकारी राजनीतिक कार्यों का स्थान अर्थवादी-सुधारवादी कदमताल ले लेते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे संगठनकर्ता अपनी इस रूटीनी कवायदों में इस क़दर मगन हो जाते हैं उन्हें यही मज़दूरों के बीच असली क्रान्तिकारी कार्य लगने लगता है और क्रान्तिकारी राजनीतिक कार्य लफ्फ़ाज़ी लगने लगती है। इस आत्मगत चुनौती को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। देश का क्रान्तिकारी मज़दूर आन्दोलन आज जिस शुरुआती मुकाम पर खड़ा है वहाँ इन भटकावों के लिए बेहद अनुकूल ज़मीन मौजूद है। मज़दूरों के क्रान्तिकारी हिरावलों का जो समूह इस चुनौती की भी ठीक से पहचान कर पायेगा और सही क्रान्तिकारी सांगठनिक पद्धति से उसका मुकाबला करेगा वही मज़दूर वर्ग के बीच क्रान्तिकारी राजनीतिक कार्य को आगे बढ़ाते हुए व्‍यावहारिक रूप से संगठित कर पायेगा।