1मई (अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस) को मज़दूर हकों के लिए मज़दूर पंचायत में शामिल हों!

एक कहानी…

may dayहाँ! यह एक कहानी है! मज़दूरों के संघर्ष की एक सच्ची कहानी! लेकिन यह हर किसी के लिए नहीं है! यह कहानी सिर्फ़ उनके लिए है जो ज़िन्दगी से प्यार करते हैं; उनके लिए जो आज़ाद इंसान की तरह जीना चाहते हैं, गुलामों की तरह नहीं! यह कहानी उनके लिए है जो अन्याय और दमन से नफ़रत करते हैं; उनके लिए जो भुखमरी, ग़रीबी, कुपोषण और बेघरी में जानवरों की तरह नहीं जीना चाहते हैं; यह कहानी उन लोगों के लिए है जो हर रोज़ 12-14 घण्टे खटने, पेट का गड्ढा भरने और फिर शराब के नशे में अपनी निराशा-हताशा को डुबाकर सो जाने को ही ज़िन्दगी नहीं मानते हैं! यह कहानी उनके लिए है जो बराबरी, इंसाफ़ और इज़्ज़त भरी ज़िन्दगी जीना चाहते हैं! अगर आप उनमें से हैं तो यह कहानी आपके लिए ही है।

क्या आपको टी-वी-, रेडियो, अखबारों या स्कूलों ने कभी यह बताया?

क्या आपको टी.वी. चैनलों, रेडियो, अखबारों ने यह बताया कि मई दिवस क्या है? अगर आपको शिक्षित होने का मौका मिला है तो क्या आपकी स्कूल की किताबों में कभी बताया गया कि मज़दूर वर्ग के अपने मई दिवस की कहानी क्या है? क्या आपको किसी चुनावी पार्टी के टट्टू या दलाल ने बताया कि हम दुनिया भर के मज़दूर मई दिवस के दिन क्यों सड़कों पर उतरते हैं और अपनी एकजुटता जाहिर करते हैं?

शायद नहीं। वे बताएँगे भी नहीं। क्योंकि यह उनके भय और हमारी हुंकार का दिन है! यह मज़दूर वर्ग के गाण्डीव की टंकार का दिन है! इसलिए इसकी कहानी हम एक बार फिर बयान करेंगे!

मई दिवस क्या है?

मज़दूरों की एकजुटता से बड़ी ताक़त कोई नहीं!

मज़दूरों की एकजुटता से बड़ी ताक़त कोई नहीं!

आज से करीब 128 वर्ष पहले अमेरिका के शिकागो शहर के मज़दूरों ने इंसान की तरह जीने के हक़ के लिए एक जंग छेड़ी थी। उनका नारा था ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन’। इस संघर्ष के शुरू होने के पहले अमेरिका में एक विशाल मज़दूर वर्ग पैदा हुआ था। इन मज़दूरों ने अपने बलिष्ठ हाथों से अमेरिका के शहरों को खड़ा किया, रेल पटरियों का जाल बिछाया, नदियों को बाँधा, गगनचुम्बी इमारतों को बनाया, और पूँजीपतियों के लिए दुनिया भर के ऐशो-आराम खड़े किये। उस समय अमेरिका में मज़दूरों को 12 से 18 घण्टे तक खटाया जाता था। बच्चों और महिलाओं का 18 घण्टों तक काम करना आम बात थी। अधिकांश युवा मज़दूर अपने जीवन के 40 साल भी नहीं देख पाते थे। अगर मज़दूर इसके खि़लाफ़ कोई भी आवाज़ उठाते थे तो उन पर निजी गुण्डों, पुलिस और सेना से हमले करवाये जाते थे! लेकिन इन सबसे अमेरिका के जाँबाज़ मज़दूर दबने वाले नहीं थे! उनके जीवन और मृत्यु में वैसे भी कोई फ़र्क नहीं था इसलिए उन्होंने लड़ने का फैसला किया! 1877 से 1886 तक मज़दूरों ने अमेरिका भर में अपने आपको आठ घण्टे के कार्यदिवस के लिए एकजुट और संगठित करना शुरू किया। 1886 में अमेरिका भर में मज़दूरों ने ‘आठ घण्टा समितियाँ’ बनायीं। शिकागो में मज़दूरों का आन्दोलन सबसे अधिक ताक़तवर था। वहाँ पर मज़दूरों के संगठनों ने तय किया कि 1 मई के दिन सभी मज़दूर अपने औज़ार रखकर सड़कों पर उतरेंगे और आठ घण्टे का कार्यदिवस के नारे को बुलन्द करेंगे। 1 मई के दिन शिकागो शहर में लाखों की संख्या में सभी पेशों के मज़दूर सड़कों पर एकजुट होकर उतरे। इसके दो दिनों बाद ही डरे हुए मालिकों ने अपने भाड़े के टट्टुओं से मज़दूरों की एक जनसभा पर हमला करवाया और इसमें छह मज़दूरों की हत्या कर दी गयी। अगले दिन शिकागो के हेमार्केट बाज़ार में मज़दूरों ने जब इस हत्याकाण्ड के विरोध में प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। इसी दौरान

हेमार्केट में पूँजीपतियों का साज़ि‍शाना बम काण्ड

हेमार्केट में पूँजीपतियों का साज़ि‍शाना बम काण्ड

पूँजीपतियों ने बम फिंकवा दिया जिसमें कुछ मज़दूर और पुलिस वाले मारे गये। इस बम काण्ड का आरोप चार मज़दूर नेताओं ऑगस्ट स्पाइस, एंजेल्स, फिशर और पार्संस पर डाल दिया गया।

इस झूठे आरोप में ही उन्हें फाँसी दे दी गयी, जबकि मुकदमे में उनके खि़लाफ़ सुबूत नहीं मिला था।

हमारे महान मज़दूर नेताओं का बलिदान जो व्यर्थ नहीं गया!

जब स्पाइस फाँसी के तख़्ते पर पहुँचे तो उन्होंने मालिकों के पूरे वर्ग को चुनौती देते हुए कहा, “एक ऐसा समय आयेगा जब हमारी ख़ामोशी उन आवाज़ों से अधिक ताक़तवर होगी जिनका आज तुम गला घोंट रहे हो।” पार्संस के सामने पुलिस वालों ने पेशकश की कि अगर वह अपने मज़दूर साथियों के साथ ग़द्दारी करे तो वह फाँसी से बच सकता है, लेकिन पार्संस ने ग़द्दार कहलाने की बजाय शान से फाँसी का फन्दा चूमना मंजूर किया! 1 मई 1886 के शानदार मज़दूर संघर्ष को अमेरिका के हत्यारे मालिकों ने खून में डुबो दिया! लेकिन जो सिंहगर्जना उस दिन शिकागो के मज़दूरों ने आकाश तक उठायी थी वह देखते ही देखते पूरी दुनिया में फैल गयी और आठ घण्टे के कार्यदिवस की माँग पूरी दुनिया के मज़दूरों की माँग बन गयी! अन्ततः, मज़दूरों ने यह माँग जीत ली। दुनिया के सभी देशों में पूँजीपतियों की सरकारों को कम-से-कम कानूनी तौर पर आठ घण्टे का कार्यदिवस देने को मजबूर होना पड़ा। लेकिन आज पूरी दुनिया में मज़दूरों से यह हक़ छीना जा चुका है। भारत में आठ घण्टे के कार्य दिवस का कानून किताबों में सड़ रहा है और मज़दूर कारखानों में 12 से 14 घण्टों तक खटते हैं! श्रम विभाग और पुलिस अच्छी तरह से जानती है कि सभी मालिक और ठेकेदार इस कानून को खुलेआम अपने कदमों तले रौंदते हैं, लेकिन वे बिके हुए हैं!

शिकागो के अमर शहीद

शिकागो के अमर शहीद

आठ घण्टे काम का हक़ जीने का हक़ है!

साथियो! आठ घण्टे के कार्यदिवस की माँग वेतन बढ़ाने जैसी आर्थिक माँगों से बढ़कर है। यह एक मज़दूर के लिए इंसानों जैसी ज़िन्दगी जीने की माँग है! यह इंसान होने का हक़ है! यह जीने का हक़ है! अगर हम पशुओं की तरह नहीं जीना चाहते, अगर हम अपने बच्चों को यह नर्क जैसा जीवन नहीं देना चाहते तो हमें अपनी मानवीय गरिमा और सम्मान के लिए फिर से जंग छेड़नी होगी! हमें भी हक़ है कि हम अपने बच्चों, अपने जीवन साथी और परिवार के साथ समय बिता सकें! हमें भी हक़ है कि हम पढ़ सकें, खेल सकें, मनोरंजन कर सकें! कोल्हू में बैल खटता है, इंसान नहीं! और हम इंसान हैं! अगर हम ही खुद को जानवर मान लेंगे तो दुनिया भी हमसे जानवरों जैसा ही बर्ताव करेगी! इसलिए, आइये! इस मई दिवस को अपने इंसान की तरह जीने के हक़ के संघर्ष का दिन बना दें!

इस मई दिवस को हम मज़दूरों को क्या करना होगा?

साथियो! पिछले 128 वर्ष से हर मई दिवस पर मज़दूर अपने हक़ों के लिए सड़क पर उतरते हैं! देश की सबसे बड़ी ताकत होने के बावजूद देश की तक़दीर तय करने में मज़दूर वर्ग की कोई भूमिका नहीं है। मज़दूर तो खुद अपनी जिन्दगी का फैसला भी नहीं कर सकता। अपने हक़ों के लिए लड़ने में, कुर्बानियाँ देने में मज़दूर वर्ग कभी पीछे नहीं हटा है। आज़ादी से लेकर अभी तक हजारों-हजार मज़दूर सरकार की गोलियों के शिकार हुए हैं। लेकिन मज़दूर आन्दोलन के नेतृत्व पर काबिज दलाल और गद्दार ट्रेड यूनियन ने संघर्षों को महज़ दुआन्नी-चवन्नी आर्थिक माँगों में उलझाये रखा और कदम-कदम पर उसे कमजोर करते चला गया। साफ है संसद के सुअरबाड़े में लोट लगाने वाले नकली “कम्युनिस्टों” के लिए यह महज़ एक रस्म-अदायगी है! मज़दूर वर्ग के ये ग़द्दार हर साल दिखावटी कवायदें करके मई दिवस को कलंकित और बदनाम करते हैं। लेकिन हम मज़दूरों के लिए यह अपने सम्मान के लिए लड़ने और एकजुट होने का दिन है। आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन का बैनर

1882 में शिकागो में मई दिवस पर हज़ारों मज़दूरों सड़कों पर उमड़ पड़े

1882 में शिकागो में मई दिवस पर हज़ारों मज़दूरों सड़कों पर उमड़ पड़े

वही दूसरी ओर देश में पूँजीवाद जनतंत्र में चुनाव की 30 हजार करोड़ वाली महानौंकटी जारी हैं जिसमें कोई भी जीते, मेहनतकश आबादी की हार तय है। क्योंकि सभी चुनावबाज पार्टियों की आर्थिक नीतियाँ एक – पूँजीपतियों को पूजो आबाद करो! जनता को लूटो बर्बाद करो!- ऐसे में हमें अपना विकल्प चुनना होगा। क्योंकि इतिहास  का यह सबक है कि मज़दूर वर्ग ट्रेड यूनियनों में संगठित होकर वेतन-भत्ते-सुविधाओं के लिए लड़ते हुए वर्ग-संघर्ष की केवल शुरुआती शिक्षा ही  हासिल करता है। पूँजीवादी लूटतंत्र का नाश करके मेहनतकशों का राज यानी समाजवाद कायम करना मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन है। क्रान्तिकारी प्रचार और आन्दोलनों की कार्रवाईयों के द्वारा मज़दूरों के सबसे अगुवा हिस्सा इस विचार को सबसे पहले अपनाता है और निरन्तर ट्रेड यूनियन संघर्षों, सांस्कृतिक आन्दोलनों और आम राजनीतिक मुद्दों पर मेहनकश आबादी को संगठित करता हैं  और साथ ही मज़दूर वर्ग को पूँजीवादी चुनाव के मायाजाल से बाहर निकलता है कि हर पांच साल चुनाव में पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी यानी सरकारें बदलती है लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था की सेवा करने वाला राज्यतंत्र (पुलिस,फौज,जज-अफसर)वही रहता है! इसलिए जब तक मुट्ठीभर मुनाफाखोरों की व्यवस्था को क्रान्ति के ज़रिये ध्वंस नहीं किया जाता, तब तक पूँजीवाद का बाल भी बाँका नहीं होने वाला! जाहिर है इसके लिए मज़दूर वर्ग का अपना सबसे फौलादी हथियार यानी एक क्रान्तिकारी पार्टी और क्रान्तिकारी विचाराधारा को गढ़ना होगा। साथ ही हमें जमीनी स्तर पर एकजुट होने, राजनीतिक फैसले लेने के लिए अपने को मज़दूर बस्तियों, औद्योगिक क्षेत्रें, गाँवों में अपनी लोकस्वराज्य पंचायते खड़ी करनी होंगी जोकि आने वाले मज़दूर राज में जन-सत्ता का काम करेगी। क्योंकि हमें आज से ही मज़दूर वर्ग में ये विश्वास पैदा करना है कि जब हम दुनिया की सुई से लेकर हवाईजहाज तक सब  बना भी सकते हैं तो हम सामूहिक मालिकाने की व्यवस्था में शासन की बागडोर सँभाल और चला भी सकते हैं।

यानी इंकलाबी पार्टी और क्रान्तिकारी लोकस्वराज्य पंचायतों के साथ ही,आज हमें एक नये क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन आन्दोलन को खून से सींचकर बोना है नये ट्रेड यूनियन के संघर्षों को एक कारखाने या कुछ कारखानों की चौहद्दी से तोड़कर पूरे औद्योगिक क्षेत्र के कारखानों और बस्तियों तक ले जाना होगा। क्योंकि मज़दूर वर्ग की लड़ाई एक फैक्टरी मालिक से नहीं बल्कि पूरे मालिक वर्ग से है जो हमारे इंसानी जीवन को पुशओं से भी बदतर हालात में धकेलता जा रहा है इसलिए मई दिवस हमारा प्रतिशोध दिवस होना चाहिए -आज घोषणा करने का दिन, हम भी है इंसान हमें चाहिए बेहतर दुनिया करते हैं ऐलान! घृणित दासता किसी रूप में, नहीं हमें स्वीकार, मुक्ति हमारा अमिट स्वप्न है, मुक्ति हमारा गान!!

1 मई मज़दूर पंचायत में शामिल हो

match-girls-1888इसलिए साथियो! इस 1 मई को ‘मज़दूर पंचायत’ में शामिल हों! अगर आप अपने आपको जानवर नहीं मान बैठे हैं, अगर आप अब भी जीवन से प्यार करते हैं, अगर आप अपने बच्चों को एक बेहतर जीवन देना चाहते हैं; तो आज ही युद्ध का बिगुल फूँकना होगा! ‘मज़दूर पंचायत रैली’ इसी संघर्ष की शुरुआत का एलान है! हम दिल्ली के मज़दूर जिन्होंने दिल्ली को बनाया है और जो दिल्ली को चलाते हैं, वे अपने जीवन, गरिमा, अधिकार, न्याय और समानता के लिए एक दिन के लिए अपने औज़ार छोड़ सड़कों पर उतरेंगे!आइये हम यह संकल्प लें कि शोषण-उत्पीड़न-अत्याचार की नारकीय जिन्दगी से मज़दूर वर्ग को आज़ाद कराने के लिए लड़ने का ठेका दूसरों को देने के बजाय अपनी और पूरे समाज की मुक्ति का परचम हम खुद अपने हाथों में थामने के लिए आगे बढ़ेंगे। इसलिए मज़दूर पंचायत में अधिक से अधिक संख्या में हिस्सेदारी कीजिऐ।

मज़दूर पंचायत  (क्रान्तिकारी गीत, नाटक व फिल्म शो)

समय- 1 मई, गुरुवार, शाम- 5 बजे, 2014-

न्यू सभापुर, सरकारी स्कूल के पास, करावल नगर

  • दिल्ली मज़दूर यूनियन
  • बिगुल मज़दूर दस्ता
  • करावल नगर मज़दूर यूनियन
  • उद्योगनगर मज़दूर  यूनियन
  • मंगोलपुरी मज़दूर यूनियन
  • वजीरपुर कारखाना मज़दूर यूनियन

सम्पर्क-64623928,9540436262,9711736435,8750045975,9873358124,9971158783,9289498250,9136546088


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments