केवल सत्ता से ही नहीं, पूरे समाज से फ़ासीवादी दानव को खदेड़ने का संकल्प लो!
खस्ताहाल अर्थव्यवस्था का सीधा असर इस देश की मेहनतकश आबादी की ज़िन्दगी पर पड़ रहा है जिसका नतीजा छँटनी, महँगाई, बेरोज़गारी और भुखमरी के रूप में सामने आ रहा है। हर साल की ही तरह पिछले साल भी मज़दूरों की ज़िन्दगी की परेशानियाँ बढ़ती गयीं। पक्का काम मिलने की सम्भावना तो पहले ही ख़त्म होती जा रही थी, अब ठेके वाले काम मिलने भी मुश्किल होते जा रहे हैं जिसकी वजह से मज़दूरों की आय लगातार कम होती जा रही है। नरेन्द्र मोदी द्वारा नये रोज़गार पैदा करने का वायदा तो बहुत पहले ही जुमला साबित हो चुका था, लेकिन पिछले साल यह ख़ौफ़नाक सच्चाई सामने आयी कि रोज़गार के अवसर बढ़ना तो दूर कम हो रहे हैं।