Category Archives: धर्म

(अर्द्ध)कुम्भ : भ्रष्टाचार की गटरगंगा और हिन्दुत्ववादी फ़ासीवाद के संगम में डुबकी मारकर जनता के सभी बुनियादी मुद्दों का तर्पण करने की कोशिश

कुम्भ के नाम पर पूरे इलाहाबाद का भगवाकरण कर दिया गया है। भारतीय संस्कृति (जिसमें कबीर, दादू, रैदास, आदि शामिल नहीं हैं) को पुनर्जागृत करने के नाम पर गंजेड़ी-नशेेड़ी नागा बाबाओं, सामन्ती सामाजिक सम्बन्धों को गौरवान्वित करती हुई तस्वीरों और संघ से जुड़े तमाम फ़ासिस्टों की तस्वीरों से पूरे इलाहाबाद को रंग दिया गया है, जो आम जनता के बीच इस बात को स्थापित कर रहा है कि हर समस्या का समाधान अतीत में और हिन्दुत्व में है और अपने इस मिशन में संघी एक हद तक सफल भी हो रहे हैं।

सनातन संस्था की असली जन्म कुंडली : बम धमाकों से महाराष्ट्र को कौन दहलाना चाहता था?

इन चारों से पूछताछ में यह सामने आया कि ये लोग महाराष्ट्र के छह शहरों मुंबई, पुणे के सनबर्न फेस्टिवल, सतारा, सांगली, सोलापुर आदि जगहों पर बम विस्फोट करने वाले थे। इसका उद्देश्य यही था कि इसमें मुस्लिमों का नाम आये और उनके प्रति नफरत पैदा की जा सके। इन्होंने कुछ पत्रकारों और लेखकों पर हमले की भी योजना बनाई थी। साथ ही इन्होंने कहा कि पद्मावत फ़िल्म की रिलीज के समय इन्होंने मुम्बई के कुछ सिनेमाघरों के सामने पेट्रोल बम फेंका था। 

अगर हम अब भी फासीवादी गुण्‍डई का मुकाबला करने सड़कों पर नहीं उतरे तो…कोई नहीं बचेगा!

78 वर्षीय आर्यसमाजी सन्‍त पर हमले ने इनके इस झूठ को उजागर कर दिया है कि भाजपा और संघ परिवार हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के संरक्षक हैं। अगर संघ परिवार और भाजपा का हिन्दू धर्म से लेना देना होता तो ये संघी स्वामी अग्निवेश पर हमला क्यों करते? अगर इनका हिन्दू आबादी से लेना देना होता तो क्या इस देश के 84 प्रतिशत हिन्दुओं की ज़िन्दगी की हालत में सुधार नहीं होता? क्यों इस देश की बहुतायत हिन्दू आबादी बेरोज़गारी, गरीबी और बदहाली में जी रही है? इनका गौरक्षा से भी कोई लेना देना नहीं है! अगर इनका मकसद गाय की सेवा होता गाय के नाम पर सड़कों पर लोगों की हत्या करने के बाद बजरंग दल और भाजपा के लोग क्यों बीफ़ सप्लाई करने वाली अल दुआ कंपनी के मालिक संगीत सोम को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुख्य नेता बनाते? वे क्यों देश के सबसे बड़े बूचडखानों से चंदा लेते?

पंचकूला हिंसा और राम रहीम परिघटना : एक विश्लेषण

डेरा सच्चा सौदा पहले हरियाणा और पंजाब की राजनीति में कांग्रेस का पक्षधर माना जाता था। फिर कांग्रेस के पराभव के साथ ही इस डेरे ने अपने अन्य राजनीतिक विकल्पों की तलाश और सौदेबाज़ी भी शुरू कर दी। उल्लेखनीय है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने अकाली दल उम्मीदवार और सुखवीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरन कौर की जीत में अहम भूमिका निभायी थी। इन चुनावों के दौरान और हरियाणा के विधान सभा चुनावों के दौरान डेरा सच्चा सौदा ने पर्दे के पीछे से अपना पूरा समर्थन भाजपा को दिया था।

भगतसिंह की बात सुनो!

बात यह है कि क्या धर्म घर में रखते हुए भी, लोगों के दिलों में भेदभाव नहीं बढ़ाता? क्या उसका देश के पूर्ण स्वतन्त्रता हासिल करने तक पहुँचने में कोई असर नहीं पड़ता? इस समय पूर्ण स्वतन्त्रता के उपासक सज्जन धर्म को दिमाग़ी ग़ुलामी का नाम देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि बच्चे से यह कहना कि – ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, मनुष्य कुछ भी नहीं, मिट्टी का पुतला है – बच्चे को हमेशा के लिए कमज़ोर बनाना है। उसके दिल की ताक़़त और उसके आत्मविश्वास की भावना को ही नष्ट कर देना है। लेकिन इस बात पर बहस न भी करें और सीधे अपने सामने रखे दो प्रश्नों पर ही विचार करें तो भी हमें नज़र आता है कि धर्म हमारे रास्ते में एक रोड़ा है।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन के धर्म के बारे में दो उद्धरण

आधुनिक पूँजीवादी देशों में धर्म की ये जड़ें मुख्यतः सामाजिक हैं। आज धर्म की सबसे गहरी जड़ मेहनतकश अवाम की सामाजिक रूप से पददलित स्थिति और पूँजीवाद की अन्धी शक्तियों के समक्ष उसकी प्रकटतः पूर्ण असहाय स्थिति है, जो हर रोज़ और हर घण्टे सामान्य मेहनतकश जनता को सर्वाधिक भयंकर कष्टों और सर्वाधिक असभ्य अत्याचारों से संत्रस्त करती है, और ये कष्ट और अत्याचार असामान्य घटनाओं–जैसे युद्धों, भूचालों, आदि–से उत्पन्न कष्टों से हज़ारों गुना अधिक कठोर हैं। “भ्‍य ने देवताओं को जन्म दिया।” पूँजी की अन्धी शक्तियों का भय–अन्धी इसलिए कि उन्हें सर्वसाधारण अवाम सामान्यतः देख नहीं पाता–एक ऐसी शक्ति है जो सर्वहारा वर्ग और छोटे मालिकों की ज़िन्दगी में हर क़दम पर “अचानक”, “अप्रत्याशित”, “आकस्मिक”, तबाही, बरबादी, गरीबी, वेश्यावृत्ति, भूख से मृत्यु का ख़तरा ही नहीं उत्पन्न करती, बल्कि इनसे अभिशप्त भी करती है। ऐसा है आधुनिक धर्म का मूल जिसे प्रत्येक भौतिकवादी को सबसे पहले ध्यान में रखना चाहिए, यदि वह बच्चों के स्कूल का भौतिकवादी नहीं बना रहना चाहता। जनता के दिमाग से, जो कठोर पूँजीवादी श्रम द्वारा दबी-पिसी रहती है और जो पूँजीवाद की अन्धी– विनाशकारी शक्तियों की दया पर आश्रित रहती है, शिक्षा देने वाली कोई भी किताब धर्म का प्रभाव तब तक नहीं मिटा सकती, जब तक कि जनता धर्म के इस मूल से स्वयं संघर्ष करना, पूँजी के शासन के सभी रूपों के ख़िलाफ़ ऐक्यबद्ध, संगठित, सुनियोजित और सचेत ढंग से संघर्ष करना नहीं सीख लेती।

हिन्दुत्ववादी फासिस्टों द्वारा दंगा कराने के हथकण्डों का भण्डाफोड़

15 अगस्त की घटना का माहौल संघ परिवार द्वारा काफी पहले से ही बनाया जा रहा था। उस दिन वहाँ भीड़ जुटाने के लिए शाहाबाद डेरी, बवाना, नरेला आदि निकटवर्ती क्षेत्रों के संघ कार्यकर्ताओं को पहले से ही मुस्तैद कर दिया गया था। संघ परिवार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से यह सबकुछ किये जाने के मुस्लिम समुदाय के आरोप के जवाब में संघ के प्रांत प्रचार-प्रमुख राजीव तुली ने मीडिया को बताया, ‘‘ये सभी आरोप आधारहीन हैं। स्थानीय मुस्लिम मस्जिद के सामने की जगह को क़ब्ज़ा करने की फ़ि‍राक में हैं। मस्जिद अनधिकृत है। दरअसल ये लोग हमारे राष्ट्रीय झण्डे का अनादर करते हैं।” बाहरी दिल्ली के डी.सी.पी. विक्रमजीत सिंह ने भी संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि मस्जिद सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करके बना है। सच्चाई तो यह है कि होलम्बी कलां फ़ेज-2 में मौजूद कुल 28 मन्दिर भी सरकारी ज़मीन पर बिना किसी अलॉटमेण्ट या अनुमति के ही बने हुए हैं और तीन और ऐसे मन्दिर निर्माणाधीन हैं, फिर इस एक मस्जिद को ही मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है।

बाबाओं का मायाजाल और ज़िन्दगी बदलने की लड़ाई के ज़रूरी सवाल

कहीं निर्मल बाबा तो कहीं कृपालु महाराज, कहीं मोरारी बापू तो कहीं भीमानन्द, कहीं सारथी बाबा तो कहीं प्रेमानन्द, कहीं बिन्दू बाबा तो कहीं नित्यानन्द; कहने की जरूरत नहीं है कि आपको अपने साम्राज्य बसाये, दन्द-फन्द और गन्द में लोट लगाते इतने बाबा मिल जायेंगे कि जिनके परिचय मात्रा से सैकड़ों पन्ने काले किये जा सकते हैं। बस कसर रह गयी थी एक राधे माँ की! खुद को दुर्गा का अवतार बताने वाली ये मोहतरमा फ़ि‍ल्मी गानों की धुन पर छोटे-छोटे कपड़ों में अश्लील किस्म का नृत्य करते हुए अपने असली रूप में भी अपने भक्तों को दर्शन देती रहती हैं। विभिन्न आरोप व छोटे-मोटे मुकदमे लगने के बाद इनके सितारे आजकल थोड़ा गर्दिश में चले गये हैं लेकिन इनके भक्तों की श्रद्धा-भक्ति-विश्वास की भावना आज भी देखते ही बनती है

तर्कवादी चिन्तक कलबुर्गी की हत्या – धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों की एक और कायरतापूर्ण हरकत

प्रसिद्ध साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके प्रोफेसर कलबुर्गी धारवाड़ स्थिति कर्नाटक विश्वविद्यालय में कन्नड़ विभाग के विभागाध्यक्ष रहे व बाद में हम्पी स्थित कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। एक मुखर बुद्धिजीवी और तर्कवादी के रूप में कलबुर्गी का जीवन धार्मिक कुरीतियों, अन्धविश्वास, जाति-प्रथा, आडम्बरों और सड़ी-गली पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं के विरुद्ध बहादुराना संघर्ष की मिसाल रहा। इस दौरान कट्टरपंथी संगठनों की तरफ से उन्हें लगातार धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा पर इन धमकियों और हमलों को मुंह चिढ़ाते हुए कलबुर्गी अपने शोध-कार्य और उसके प्रचार-प्रसार में सदा मग्न रहे। प्रोफेसर कलबुर्गी एक ऐसे शोधकर्ता और इतिहासकार थे जिनकी इतिहास के अध्ययन, शोध और उद्देश्य को लेकर समझ यथास्थितिवाद के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करती थी। साथ ही कलबुर्गी अपने शोध कार्यों को अकादमिक गलियारों से बाहर नाटक, कहानियों, बहस-मुहाबसों के रूप में व्यवहार में लाने को हमेशा तत्पर रहते थे और यथास्थितिवाद के संरक्षकों, धार्मिक कट्टरपंथियों को उनकी यही बात सबसे ज्यादा असहज करती थी और इसीलिए उनकी कायरतापूर्ण हत्या कर दी गई

‘धर्म की उत्पत्ति व विकास, वर्ग समाज में इसकी भूमिका’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

इस विचार संगोष्ठी में का. कश्मीर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखी। उन्होंने विस्तार से बात रखते हुए साबित किया कि समाज के वर्गों में बँटने, यानी शोषकों व शोषितों में बँटने, के साथ ही संगठित धर्म अस्तित्व में आया। उत्पादन शक्तियों के विकास के कारण समाज वर्गों में बँटा, आदिम साम्यवादी समाज की जगह गुलामदारी व्यवस्था ने ली और इसी समय धर्म अस्तित्व में आया।