मज़दूर आन्दोलन में मौजूद किन प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का लड़ना ज़रूरी है? – (बारहवीं क़िस्त)
अर्थवादियों की दिक़्क़त ही यही होती है कि अपनी राजनीतिक अंधता और सांगठनिक संकीर्णता के चलते उन्हे ये सारी बातें “जनता से काट देनेवाली” दिखलायी पड़ती हैं। जबकि जनता से सबसे घनिष्ठ रूप में सम्पर्क स्थापित करने के लिए क्रान्तिकारियों का यह कार्यभार है कि वे न सिर्फ़ शुद्ध आर्थिक संघर्षों से आगे बढ़ें और राजनीतिक प्रचार, उद्वेलन और भण्डाफोड़ की अनवरत कार्यवाई को बिना रुके बिना थके निरन्तरतापूर्वक चलायें बल्कि इसी प्रक्रिया में जनता से सीखते हुए उसे राजनीतिक तौर पर शिक्षित-प्रशिक्षित भी करें। इसलिए आज भारत के क्रान्तिकारी कार्यकर्ताओं और साथ ही आम मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए अर्थवाद के खिलाफ़ लेनिन के नेतृत्व मे चले इस विचारधारात्मक संघर्ष का इतिहास जानना बेहद आवश्यक है ताकि आज भी आन्दोलन में मौजूद इस हानिकारक प्रवृत्ति के विरुद्ध वैचारिक और व्यावहारिक जंग छेड़ी जा सके।