मज़दूर आन्दोलन में मौजूद किन प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का लड़ना ज़रूरी है? – (सातवीं क़िस्त)
“व्यवहार” पर इस प्रकार का ग़ैर-द्वंद्वात्मक ज़ोर दरअसल अपनी सैद्धान्तिक व विचारधारात्मक कमज़ोरियों को ही छिपाने का एक तरीक़ा होता है। कारण यह है कि क्रान्तिकारी सिद्धान्त भी किसी एक व्यक्ति या ग्रुप के व्यवहार से पैदा नहीं होता है। क्रान्तिकारी सिद्धान्त वर्ग संघर्ष के ऐतिहासिक अनुभवों के वैज्ञानिक अमूर्तन, सामान्यीकरण और समाहार के आधार पर अस्तित्व में आता है। यानी क्रान्तिकारी सिद्धान्त मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता द्वारा सदियों से जारी वर्ग संघर्ष के ऐतिहासिक अनुभवों के समाहार से निकलता है। दूसरी अहम बात यह है कि क्रान्तिकारी सिद्धान्त को सही तरीक़े से समझना, सीखना और लागू करना सीखना स्वयं क्रान्तिकारी व्यवहार का ही अंग है, कोई शुद्ध सिद्धान्तवाद नहीं। इसलिए ऐसे लोगों का यह शुद्ध “व्यवहारवाद” उनके विचारधारात्मक दिवालियापन का परिचायक है और अर्थवादी प्रवृत्ति की ही एक अभिव्यक्ति है।