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‘महान अक्टूबर क्रान्ति और इक्कीसवीं सदी की नयी समाजवादी क्रान्तियाँ : निरन्तरता और परिवर्तन के तत्व’ पर नयी दिल्ली में व्याख्यान

अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों को रचने के लिए जहाँ अक्टूबर क्रान्ति की समस्याओं की समझ अनिवार्य है, वही आज के दिक् और काल में दुनिया के पूँजीवादी समीकरण को समझना भी बेहद ज़रूरी है। आज दुनियाभर के देशों में उपनिवेश, अर्धउपनिवेशों जैसी स्थिति नहीं है और इन देशों में राष्ट्रीय जनवादी क्रान्ति के कार्यभार भी सम्पन्न हो चुके हैं इसीलिए आज के युग की क्रान्तियाँ चीन की नवजनवादी क्रान्ति जैसी नहीं होंगी। साथ ही, आज की क्रान्तियाँ अक्टूबर क्रान्ति की हु-ब-हु कार्बन कॉपी या नक़ल भी नहीं हो सकतीं।

गीत – समर तो शेष है / शशि प्रकाश

पराजय आज का सच है
समर तो शेष है फिर भी
उठो ओ सर्जको !
नवजागरण के सूत्र रचने का समय फिर आ रहा है
कि जीवन को चटख गुलनार करने का समय फिर आ रहा है।

ज़िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो

ज़िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम रचो,
तुम रचो, तुम रचो
तुम रचो हवा, पहाड़, रौशनी नयी
ज़िन्‍दगी नयी महान आत्‍मा नयी
सांस-सांस भर उठे अमिट सुगन्‍ध से
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।

गीत – तस्वीर बदल दो दुनिया की / शशि प्रकाश

ये चौबारे महल उठाये हैं तूने
सुख के सब सामान जुटाये हैं तूने
फिर क्यों बच्चों ने तेरे
हर दम आधी रोटी खायी
उठ जाओ मज़लूमो और जवानो

कविता – फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे / शशिप्रकाश

सत्ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी ।
मानवात्‍मा के शिल्पी बनकर आवाज़ उठानी होगी ।
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी ।
आशाओं के रण-राग हमें रचने होंगे ।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।