डोम्बिवली फैक्टरी विस्फोट : मुनाफे़ की हवस व सरकारी लापरवाही ने लील ली कई जानें

नितेश

बीती 26 मई को मुम्बई के उपनगर डोंबिवली के एमआईडीसी स्थित आचार्य कैमिकल्स ग्रुप की प्रोबेस इंटरप्राइजे़ज़ कम्पनी में बॉयलर में विस्फोट हुआ। विस्फोट इतना ज़बर्दस्त था कि पल भर में 3 मंजिल की इमारत मलबे में तब्दील हो गयी और विस्फोट की जगह पर 15 फुट का गड्ढा हो गया। धमाके की आवाज़ 5 किलोमीटर तक सुनाई दी और 2 किलोमीटर तक के क्षेत्र के करीब 600 घरों को क्षति पहुँची। प्रशासन के अनुसार बॉयलर पर काम कर रहे दो मज़दूर धमाके में ही मारे गये और 12 अन्य भीषण रूप से घायल हुए जिसमें से य‍ह रिपोर्ट लिखे जाने तक 9 की मौत हो चुकी है। 150 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं जो अस्पतालों में भर्ती हैं। 20 फीट ऊँचाई और 50 टन वज़न के बॉयलर के फटने से निकले उसके बड़े-बड़े टुकड़ों ने काफी दूरी तक क्षति पहुँचाई। विस्‍फोट के ऐसे ही एक बडे़ टुकड़े की चपेट में आने से धमाके की जगह से करीब एक किलोमीटर दूर एक कार के ड्राइवर की भी मौत हो गयी। धमाके के बाद लगी भीषण आग पर 3 घंटे बाद ही काबू पाया जा सका। अभी भी पूरे इलाक़े के लोग ख़ौफ में जी रहे हैं। प्रशासन द्वारा मृतकों की संख्या के ये आँकड़े भी झूठे प्रतीत होते हैं। विस्‍फोट के दिन पुलिस ने किसी भी स्थानीय व्यक्ति को उस इलाक़े में प्रवेश नहीं करने दिया। विस्‍फोट की भयावहता देखते हुए व स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर मृतकों की संख्या 50 से ज़्यादा होने के आसार हैं।

dombivaliधमाके के बाद मीडिया में दो-तीन दिनों तक यह भयानक घटना दिखायी जाती रही और इस पर तमाम बहसें होती रहीं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने भी घटनास्थल का दौरा किया और जाँच का आदेश दिया। उद्योग मंत्री ने कहा कि ऐसे कदम उठाये जायेंगे कि ऐसी दुर्घटनाएँ भविष्‍य में ना हों। इसके साथ ही इन कैमिकल फैक्ट्रियों को रिहायशी इलाक़े से दूर ले जाने की भी व्यवस्था की जायेगी। वैसे ये पहली बार नहीं है जब ऐसे आश्‍वासन दिये गये हों या मुख्यमंत्री ने जाँच का आदेश दिया हो। जाँच का आदेश तब भी दिया गया था जब 7 दिसम्बर 2013 को गायकर कम्पाउंड की एक कैमिकल कम्पनी में बॉयलर विस्फोट से 3 मज़दूरों की मौत हो गयी और 2 जख़्मी हुए थे। जाँच का आदेश तब भी दिया गया था जब 14 मई 2014 में केमस्टार कम्पनी की डिस्टिलेशन यूनिट में आग लगने से एक मज़दूर की मौत हो गयी और 3 जख़्मी हुए। जाँच के आदेश तब भी दिये गये थे जब 2015 में भिवंडी के शफीक कम्पाउंड में भयंकर आग लगने से 3 लोगों की मौत हो गयी थी और कई घायल हुए थे। इसके अतिरिक्त पिछले पाँच सालों के दौरान हुए 30 से ज़्यादा हादसों के बाद भी ऐसे ही जाँच के आदेश और आश्‍वासन दिये गये होंगे। पर ना तो ये जाँचें कभी खत्म हुईं और ना ही ऐसे हादसे और मौतों में कोई कमी आयी।

मीडिया ने जो कुछ भी दिखाया वो मामले को सुलझाने से ज़्यादा लोगों को भ्रम में डालने वाला था कि आखिर ग़लती किसकी थी? हम यहाँ ख़ुद देखेंगे कि कौन इस भयानक घटना का ज़िम्मेदार है।

महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल (एमआईडीसी) के डोंबिवली क्षेत्र में 450 से ज़्यादा कारख़ाने हैं। इनमें से 125 कारख़ाने कैमिकल कम्पनियों के हैं। किसी भी कारख़ाने में सुरक्षा के लिए नियम और क़ानून बने हुए हैं जिनकी निगरानी औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग करता है। किसी बॉयलर वाले प्लांट में ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बॉयलर रिएक्टर को उचित जगह लगाया जाये, ख़तरनाक या ज्वलनशील कैमिकल्स के सही रखरखाव की व्यवस्था की जाये, रिएक्टर एक खुली जगह में रखा हो, फैक्ट्री में बचाव कार्य के लिए मार्जिन एरिया हो, आग या आपात से बचने के सुरक्षा इन्तज़ाम हों। इसके अतिरिक्त कारख़ाने द्वारा एक सुरक्षा अधिकारी को नियुक्त किया जाये जो कारख़ाने में चल रही हर गतिविधि में सुरक्षा का ध्यान रखे। कारख़ाने में सुरक्षा नियमों का पालन हो रहा है कि नहीं इसके लिए समय-समय पर  सरकार द्वारा या किसी तीसरी एजेंसी द्वारा कारख़ाने की सुरक्षा जाँच होती रहनी चाहिए। पर वास्तव में होता कुछ और ही है। कारख़ाने के मालिक जिनके जीवन का परम ध्येय किसी भी तरह ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाना है, इन सारे नियमों को ताक पर रखकर काम करते हैं। उनके लिए तो सुरक्षा पर इतना पैसा खर्च करने की बजाय सुरक्षा की निगरानी करने वाले फैक्ट्री इंस्पेक्टर या अधिकारी को ही खिला-पिला कर चुप कराना बेहतर होता है। और जहाँ तक कामगारों के जीवन के लिए ख़तरे की बात है, उन लोगों की ज़िन्दगी की क़ीमत कारख़ाना मालिक की नज़र में है ही क्या। ऐसे में ये कारख़ाने बिना किसी सुरक्षा के धड़ल्ले से चलते रहते हैं जिनमें कभी भी दुर्घटना हो सकती है। एक संस्था ‘वनशक्ति’ के एक सर्वे के अनुसार डोंबिवली एमआईडीसी क्षेत्र एक टिक-टिक करते टाइम बम की तरह है जहाँ 99.99 प्रतिशत कम्पनियों में औद्योगिक सुरक्षा नियमों का पालन नहीं होता। इन कारख़ानों में छोटी-मोटी घटनाएँ तो अक्सर होती रहती हैं पर ये छोटे-मोटे मामले कारख़ाने के गेट के बाहर पहुँच ही नहीं पाते। लोगों को पता तभी चलता है जब ऐसी बड़ी दुर्घटनाएँ हो जाती हैं।

अगर सरकार की भूमिका की बात करें तो ऐसा लगता है कि मौत के इस खेल में सारी सरकारें और नौकरशाही शामिल हैं। असल बात तो ये है कि सरकार ख़ुद इन सुरक्षा नियमों को दफ़नाने में लगी है। और ये सब निवेश को बढ़ावा देने के नाम पर हो रहा है। एक ओर कारख़ानों को नियमों के पालन से छूट दी जा रही है, तो दूसरी ओर नियमों की निगरानी करने वाले विभागों में कारख़ाना इंस्पेक्टरों और अधिकारियों की संख्या को बहुत कम किया जा रहा है। डोंबिवली एमआईडीसी क्षेत्र में ही 450 कारख़ानों पर बस एक फैक्ट्री इंस्पेक्टर है। कल्याण औद्यौगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संचालनालय के अन्तर्गत डोंबिवली, अंबरनाथ, बदलापुर, भिवंडी, शहापुर, वाडा, मोखाडा आदि इलाक़ों की करीब 1000 से ज़्यादा कम्पनियाँ आती हैं मगर इन कम्पनियों की निगरानी संचालनालय के केवल 4 अधिकारी करते हैं। इससे समझा जा सकता है कि वह निगरानी कैसी होती होगी और कितने समय में एक बार होती होगी। ज़्यादातर पद खाली पड़े हुए हैं। स्टाफ़ की कमी की वजह से कम्पनियों का सुरक्षा ऑडिट भी न तो विभाग की तरफ से होता है और न ही किसी तीसरी एजेंसी से कराया जाता है। ज़्यादातर कम्पनियों के मालिक ख़ुद ही सुरक्षा ऑडिट कर के भेज देते हैं। यानि चोर ख़ुद जाँच करके रिपोर्ट दे देता है कि सबकुछ ठीकठाक है। जहाँ तक उद्योग मंत्री द्वारा इन कारख़ानों को रिहायशी इलाक़े से बाहर ले जाने की बात है, तो इससे उलट उन्हीं की सरकार ने कुछ समय पहले ही 40 हेक्टेयर से बड़े औद्योगिक इलाक़ों में 40 प्रतिशत क्षेत्र में रिहायशी और व्यावसायिक इमारतें बनाने की छूट दे दी है जो पहले क़ानूनी तौर पर नहीं थी। इस प्रकार इस जानलेवा खेल में कम्पनी मालिकों और अधिकारियों के साथ सरकार भी शामिल है। सरकार द्वारा सुरक्षा नियमों और निगरानी विभागों को कमज़ोर करने और मालिकों द्वारा उस कमज़ोर विभाग का मुँह भी पैसे से बन्द करके असुरक्षित तरीके से काम कराने की वजह से ही ऐसी भयानक दुर्घनाएँ होती हैं। अब ये मामला शान्त हो रहा है। कुछ दिनों में सबकुछ पहले जैसा ही चलने लगेगा। फिर कोई दुर्घटना होगी और मज़दूर अपनी जानें गँवायेंगे। एक बार फिर मीडिया वाले हेडलाइन बनायेंगे, बहसें चलायी जायेंगी और एक बार फिर मुख्यमंत्री जाँच के आदेश देंगे।

मज़दूर बिगुल, जून 2016


 

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