मुम्बई के ग़रीबों के फेफड़ों में ज़हर घोल रहे बायोवेस्ट ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट को बन्द करवाने के लिए शुरू हुआ संघर्ष

 सत्यनारायण

मुम्बई, देश की आर्थिक राजधानी, जहाँ बसते हैं अम्बानी जैसे अमीर, बॉलीवुड के सितारें और भी बहुत सारे अमीरजादे। मुम्बई में स्मार्ट सिटी भी बन रही है, जहाँ ऐसी ऐसी सुविधाएँ हैं जिसके बारे में एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी कल्पना नहीं कर सकता है। इसी मुम्बई में मुम्बई चलाने वाले, उसका सारा काम करने वाले लोग भी बसते हैं पर वो ज़्यादातर समय ख़ामोश ही रहते हैं या फिर ख़ामोश दिखाये जाते हैं। मानखुर्द, गोवण्डी जैसे इलाक़ों से बना एम-ईस्ट वार्ड भी एक ऐसी ही जगह है। मुम्बई के सबसे ग़रीब लोग यहाँ रहते हैं। लगभग दस लाख की संख्या में। सुविधाओं का तो यहाँ नामोनिशान भी नहीं है। उल्टा फेफड़ों में व पानी में ज़हर घोलने के पूरे इन्तज़ाम हैं।
देवनार डम्पिग ग्राउण्ड है जिसमें पूरी मुम्बई का कचरा फेंका जाता है। गाहे-बगाहे वहाँ आग लगती रहती है व हानिकारक तत्व हवा में घुलते रहते हैं। पूरी मुम्बई का इकलौता बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट भी यहीं है। सुबह उठते समय हो या रात को सोते समय, घाटकोपर-मानखुर्द लिंक रोड पर बने इस बायोवेस्ट ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट का गाढ़ा धुआँ देखना मानखुर्द, गोवण्डी के लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। मुम्बई के सरकारी व निजी अस्पतालों, डिस्पेंसरियों व अन्य जगहों से निकला बायोमेडिकल कचरा यहाँ जलाया जाता है। इसकी वजह से ये प्लाण्ट 24 घण्टे ज़हर उगलता है। फेफड़ों में घुसे इसके धुएँ के कारण इलाक़े के लोग टीबी, अस्थमा जैसी अनेक साँस की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसी के कारण इलाक़े में तमाम असमय मौतें भी हुई हों, मगर उनका असल कारण पता न चला हो। ऐसा नहीं है कि शासन-प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है या फिर उन्हें प्रदूषण का स्तर मालूम नहीं है। पर ग़रीबों के मरने पर उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। इसीलिए वे इसे यहाँ से हटाकर कहीं और नहीं ले जा रहे।
इस प्लाण्ट की कहानी 2001 में शुरू होती है। उस समय महाराष्ट्र प्रदूषण नियन्त्रण आयोग ने सभी अस्पतालों को निर्देश दिया कि वे अपने यहाँ से निकलने वाले कचरे का सही तरीक़े से निपटारा करें। अस्पतालों ने अपने स्तर पर कुछ नहीं किया। क्योंकि इसके लिए उन्हें ख़र्चा करना पड़ता। और हम अच्छी तरह से जानते हैं कि तमाम प्राइवेट अस्पतालों के लिए पैसा ही सबकुछ है। इसके लिए वे किसी की जान तक भी ले सकते हैं। इसके बाद बीएमसी ने शिवडी में एक ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट शुरू करवाया। इस प्लाण्ट में यहीं की तरह कचरा जलाया जाता था। शिवडी में ज़्यादातर अमीर आबादी रहती है जिसकी वजह से उसे वहाँ से हटाने की माँग शुरू हो गयी। 2009 में इसे हटाते वक़्त प्रशासन का यही कहना था कि इसे प्रदूषण के कारण हटाया जा रहा है।
जब प्रदूषण की वजह से उसे वहाँ से हटाया गया तो दूसरे रिहायशी इलाक़े में लगाने का क्या औचित्य बनता है? अगर शिवडी के लोगों को ये ज़हरीला धुआँ बीमार कर रहा था तो मानखुर्द-गोवण्डी में आते ही क्या ये अमृत बन गया?
असल बात यह है कि शासन-प्रशासन में बैठे अमीरों के इन प्रतिनिधियों के लिए मेहनतकशों की जान की कोई क़ीमत नहीं है। यही कारण है कि 10 लाख की घनी आबादी के बीचों-बीच ये ज़हर का केन्द्र 2009 से शुरू है। मुम्बई उच्च न्यायालय द्वारा बनायी गयी एक कमेटी के सदस्य डॉ. सन्दीप राणे ने जब इस प्लाण्ट का आकस्मिक निरीक्षण किया था तो उन्होंने जो कुछ देखा, वो दिल दहलाने वाला था। उनके अनुसार, यहाँ पर कचरे को अलग-अलग कर उसकी प्रकृति के अनुसार नहीं निपटाया जाता, बल्कि एक ही साथ जला दिया जाता है। प्लास्टिक की सीरिंज, शरीर के अंग, ख़ून सनी पट्टियाँ सब एक ही साथ डालकर जलाया जाता है व वायु प्रदूषण को मापने का कोई भी यन्त्र कम्पनी ने नहीं लगा रखा है। इलाक़े के लोगों ने ख़ुद देखा है कि कैसे प्लाण्ट के पीछे बने नाले में कम्पनी के कर्मचारी बहुत सारा कचरा बहा देते हैं। इसके कारण न सिर्फ़ हवा ज़हरीली होती है, बल्कि भूजल भी ज़हरीला होता जाता है।
डॉ. राणे के अनुसार ये प्लाण्ट रिहायशी इलाक़ों से बहुत दूर होना चाहिए, क्योंकि इससे निकलने वाली प्रदूषक गैसें साँस की बीमारियों से लेकर अन्य कई गम्भीर बीमारियाँ फैलाती हैं, जो मौत का कारण भी बन सकती हैं। डाईऑक्सिन नाम का एक ज़हर इससे लगातार निकलता है जिससे हृदय की बीमारियाँ, शरीर वृद्धि रुकने की बीमारियाँ, आदि होती हैं। इसी मुम्बई में जब लता मंगेशकर के घर के सामने फ्लाईऑवर बनने वाला था तो उन्होंने ये कहकर उसका काम रुकवा दिया था कि इससे वायु प्रदुषण होगा व उनका गला ख़राब हो सकता है। उनके विरोध के कारण वो फ्लाईऑवर कभी नहीं बन पाया। पर हर साल सैकड़ों लोगों की जान ले लेने वाले इस प्लाण्ट को हटाने से रोकने के लिए सरकार-प्रशासन कोई भी क़सर बाक़ी नहीं रखता।
कोई भी ग़रीब मेहनतकश ऐसा नहीं होगा जो ख़ुद अच्छी हवा में साँस नहीं लेना चाहता और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए लड़ना नहीं चाहता, पर जो लोग मुम्बई के सारे बुनियादी काम करते हैं व जिनके कन्धों पर मुम्बई टिकी है, उनके लिए सरकार कोई सुविधा नहीं देती है। दस लाख लोगों की जनसंख्या वाले एम ईस्ट वार्ड में औसत आयु मात्र 39 साल है, जबकि कोलाबा में 60 साल। इसका एक बड़ा कारण यहाँ हो रहा प्रदूषण व अस्पताल की कमी है।
यूँ तो इससे पहले भी इस प्लाण्ट को हटाने के लिए आन्दोलन हुए हैं। पर उन आन्दोलनों की शुरुआत ज़्यादातर चुनावी पार्टियों या फिर एनजीओ ने की थी। इसीलिए वे दिखावेबाज़ी के बाद जल्द ही ख़त्म हो गये। क्योंकि एनजीओं हों या फिर चुनावी पार्टी, उनको फ़ण्डिंग करने का काम बड़े-बड़े उद्योगपति घराने ही करते हैं। जो कम्पनी इस प्लाण्ट को चला रही है, उसका भी हर साल का मुनाफ़़ा लगभग 50 करोड़ है। इसलिए नौजवान भारत सभा व बिगुल मज़दूर दस्ता के नेतृत्व में इलाक़े के नौजवानों ने तय किया है कि किसी चुनावी पार्टी या एनजीओ के पिछलग्गू बने बिना ख़ुद स्थानीय गली कमेटियाँ बनाते हुए एक जुझारू आन्दोलन खड़ा करना होगा। पिछले कुछ दिनों से ये आन्दोलन चलाया जा रहा है व आशा है कि जनता की ताक़त के सामने पूँजी की ताक़त झुकेगी और ग़रीबों-मेहनतकशों को भी स्वच्छ हवा का अधिकार मिलेगा।

 

मज़दूर बिगुल, मई 2017


 

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