राजस्थान में बिजली विभाग में बढ़ता निजीकरण, एक ठेका कर्मचारी की जुबानी

बिजली विभाग का एक ठेका मज़दूर,
अलवर, राजस्थान

केन्द्र सरकार की तर्ज पर राजस्थान सरकार ने भी सरकारी पद समाप्त करने शुरू कर दिये हैं। राजे सरकार ने बिजली विभाग में क़रीब 20000 पदों को रिस्ट्रक्चरिंग के तहत समाप्त कर दिया है। ग़ौरतलब है कि सरकार पिछले दो वर्षों की क्रमिक अवधि में पीपीपी मॉडल के तहत बिजली विभाग के छोटे-बड़े सभी बिजली सब-स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने का काम पहले ही पूरा कर चुकी है। हालाँकि निजीकरण का काम तो काफ़ी पहले कांग्रेस के समय से ही शुरू हो चुका था, लेकिन इसकी रफ़्तार बढ़ाने का काम सरकार ने वर्ष 2015 से शुरू किया। ग़ौरतलब है कि 2015 के बाद से विभाग में टेक्निकल स्टाफ़ की भर्तियाँ नहीं की गयी हैं। रिक्त पड़े तकनीकी पदों को भरने की बजाय विभिन्न प्रकार के तकनीकी कामों का क्रमिक प्रक्रिया में ठेकाकरण कर दिया गया है। यह ठेकाकरण कितनी तीव्र गति से किया गया है, इसका अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहाँ 2015 में ठेके पर काम करने वाले बिजलीकर्मियों और स्थायी बिजलीकर्मियों का अनुपात क्रमशः 1:5 था, वहीं वर्ष 2018 तक यह 2:3 हो गया है। इस सबके पीछे जो कारण बताया गया है, वह यह है कि बिजली विभाग लगातार घाटे में जा रहा है सो उसको PPP (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत निजी हाथों में सौंपने के सिवा कोई चारा नहीं! बावजूद इस पार्टनरशिप के यह घाटा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। जबकि बिजली बिलों का न्यूनतम चार्ज बढ़ा दिया गया है तथा उक्त 3 सालों में ठेके पर कार्यरत कामगारों का श्रम ज़बरदस्त रूप में निचोड़ा गया है। ठेके पर कार्यरत कामगारों के शोषण की स्थिति का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 7 व्यक्तियों के काम को मात्र 3 व्यक्तियों से करवाया जा रहा है, कहीं-कहीं तो इसके लिए 2 ही व्यक्ति नियुक्त किये गये हैं। कोढ़ पर खाज यह कि स्थायी कर्मचारियों को जहाँ अधिक वेतन-भत्ते और सुविधाएँ देनी होती थीं, वहीं ठेके पर कार्यरत इन कामगारों को मात्र 5-6 हज़ार रुपये महीना ही दिया जा रहा है। इन थोड़े से रुपयों की ख़ातिर वे बग़ैर किसी सुरक्षा इन्तज़ामों के बिजली के ख़तरनाक कामों को करते रहने को मजबूर हैं। हर दिन औसतन 3 कामगार करण्ट लगने की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। यहाँ हम भयंकर रूप से बढ़ती बेरोज़गारी का सहज ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं।

निजीकरण का यह सिलसिला सिर्फ़ बिजली तक सीमित नहीं है, सभी विभागों की यही गति है। सरकारी नीतियों और राजनीति के प्रति आँख मूँदकर महज कम्पीटीशन एक्जाम की तैयारियों में लगे बेरोज़गार युवकों को ऐसे में ठहरकर सोचना-विचारना चाहिए कि जब सरकारी नौकरियाँ रहेंगी ही नहीं तो बेवजह उनकी तैयारियों में अपना पैसा और समय ख़र्च करने का क्या तुक बनता है? क्या उन्हें नौकरी की तैयारी के साथ-साथ नौकरियाँ बचाने के बारे में सोचना नहीं चाहिए? बिजली विभाग में भर्ती होने के लिए भारी फ़ीस देकर आईटीआई कर रहे लाखों नौजवानों को तो सरकार के इस फ़ैसले का त्वरित विरोध शुरू कर देना चाहिए।

मज़दूर बिगुल, जून 2018


 

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