राजधानी दिल्ली की बेह‍तर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे और हक़ीक़त

– योगेश स्वामी

कोरोना महामारी ने हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली की “विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं” के केजरीवाल सरकार के दावे की भी पोल खोल दी। हमारे देश में पिछले साल आयी कोरोना महामारी के समय भी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के इन्तज़ाम बेहतर नहीं थे, पर अब आयी कोरोना की दूसरी लहर ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के ख़स्ता हालात को और भी उजागर कर दिया है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक (9 मई 2021) दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 19,071 लोगों की मौतें हो चुकी थीं, संक्रमित लोगों की संख्या 87,907 थी और प्रतिदिन औसतन 20,000 लोग संक्रमित दर्ज किये जा रहे थे।
दिल्ली के सरकारी व निजी अस्पतालों में ख़ाली बेडों की संख्या बताने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली कोरोना ऐप पिछले साल ही शुरू किया गया था। यह दावा किया गया कि अब मरीज़ों के परिजनों को परेशान होने की ज़रूरत नहीं। इस ऐप के माध्यम से आपको पता चल जायेगा कि किस सरकारी या निजी अस्पताल में बेड ख़ाली है, जिससे आप वहाँ जा सकेंगे। पहली बात तो यह कि एक बहुत बड़ी मेहनतकश आबादी के पास स्मार्टफ़ोन की सुविधा नहीं है, और सरकार के पास उन तक सुलभ ढंग से सूचना पहुँचाने का और कोई साधन नहीं है। दूसरी अहम बात दिल्ली की आम मेहनतकश आबादी दिल्ली के महँगे निजी अस्पतालों का ख़र्च उठा ही नहीं सकती, और न ही दिल्ली सरकार के पास इस बाबत कोई योजना ही है, इसलिए उनके लिए निजी अस्पतालों में बेड ख़ाली होने का भी कोई मतलब नहीं है। हालाँकि इस ऐप पर मिलने वाली जानकारी अधिकतर बार ग़लत ही निकली। ऐप में दिये अस्पतालों के फ़ोन बन्द रहते या मिलते ही नहीं थे, ऐप पर अस्पताल में बेड ख़ाली दिखता, किन्तु जब आप अस्पताल पहुँचते तो पता चलता था कि कोई बेड ख़ाली नहीं है यानी अब किसी दूसरे अस्पताल में जाओ। इतना समय आने और जाने में लगने से मरीज़ की तबियत बिगड़ने सम्भावना बढ़ जाती है। यह सच है कि देश सहित दिल्ली में भी कई मौतें समय से अस्पताल में भर्ती न हो पाने के कारण हो रही हैं। दिल्ली में कोरोना से हो रही मौतों में सरकारी आँकड़ों में हेर-फेर करने की भी ख़बरें सामने आयी हैं। कई मीडिया ख़बरों से पता चला कि दिल्ली में जितनी मौतें एक दिन में सरकार बता रही है, उससे कई ज़्यादा शव कोरोना प्रोटोकॉल के तहत जलाये या दफ़नाये जा रहे थे। लोगों से बातचीत में पता चला कि उनके परिजन कोरोना से संक्रमित थे, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हुई, किन्तु मृत्यु प्रमाणपत्र पर मौत की वजह किसी अन्य बीमारी को बताया गया था। हालात इतने बदतर हैं कि कई नये शवदाह गृह ख़ाली मैदानों में बनाने पड़े। दिल्ली के एक इलाक़े में जानवरों के शवदाह गृह को भी कोरोना से मरे लोगों के लिए प्रयोग किया जाने लगा। साथ ही यह भी देखा गया कि घरों पर कोरोना से हो रही मौतों का कोई आँकड़ा रखा ही नहीं जा रहा है। दिल्ली में कोरोना जाँच केन्द्रों के हालात भी ख़राब ही दिखे। हरेक जाँच केन्द्र पर बहुत भीड़ रहती है, जहाँ भौतिक दूरी का कोई मतलब नहीं होता है। जाँच केन्द्रों पर स्थिति ऐसी है कि अगर कोई पहले से संक्रमित नहीं है तो, इसकी पूरी गुंजाईश है कि वह जाँच केन्द्र पर संक्रमण का शिकार हो जाये। दूसरा जाँच पड़ताल में कई जाँच केन्द्रों पर पता चला कि सरकार ने तय किया है कि मात्र 50 ही आरटी पीसीआर टैस्ट किये जायेंगे। लोग सुबह से क़तारबद्ध होकर अपनी जाँच की बारी का इन्तज़ार करते हैं फिर उन्हें पता चलता है कि आज वे जाँच नहीं करा पायेंगे।
कुछ जगहों पर अस्पताल के बाहर वैन द्वारा रैपिड एण्टीजन टेस्ट तथा आरटीपीसीआर टेस्ट के लिए नमूने लिये जा रहे हैं। किन्तु इन वाहनों की बारम्बारता तथा कोई समय निश्चित नहीं है, और न ही इनके बारे में जानकारी प्राप्त करने का कोई साधन है, लोग जाँच कराने के इन्तज़ार में मारे-मारे फिरते हैं। कुछ जगह रिपोर्टें भी 8 से 10 दिन में मिल रही थीं।
हालिया कुछ रिपोर्टों से यह पता चला है कि दिल्ली में अब प्रतिदिन होने वाले कोरोना टैस्ट की संख्या भी घटा दी गयी है, और साथ ही इन जाँचों की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में है। कई रिपोर्ट्स ऐसी भी आयी हैं जिसमें मरीज़ों को कोविड नेगेटिव बताया गया, किन्तु उनमें बीमारी के सारे लक्षण मौजूद थे, कुछ मामलों में जान तक भी गयी है। केजरीवाल दावा करते हैं कि उनकी सरकार बनने के बाद से दिल्ली के लोगों को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएँ मिल रही हैं। उनका यह दावा तब फुस्स हो गया जब पहले दिल्ली स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन और अभी हाल में ही उनकी पत्नी सुनिता केजरीवाल कोरोना पीड़ित हुईं। इन “हाई-प्रोफ़ाइल” मरीज़ों का इलाज किसी सरकारी अस्पताल में नहीं कराया गया, बल्कि इन्हें दिल्ली के महँगे निजी अस्पताल मैक्स में दाख़िल कराया गया। सत्येन्द्र जैन पहले चार दिन दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में रहे, फिर वहाँ की सुविधाओं में कमी का हवाला देते हुए मैक्स अस्पताल में दाख़िल हो गये। लेकिन केजरीवाल सरकार द्वारा सरकारी अस्पताल में भर्ती किसी एक भी आम मेहनतकश आदमी को किसी स्थिति में निजी अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया। हमारे देश में कोरोना को आये एक साल से ज़्यादा हो गया पर न ही फ़ासीवादी मोदी सरकार और न ही केजरीवाल सरकार ने भी इस बीते साल में कोरोना से बचने के लिए कोई ठोस तैयारी की। हाँ, बस कोरोना के सन्दर्भ में बड़ी-बड़ी डींगे हाँकते रहे, जैसे पिछले साल हर प्रेस वार्ता में यह कहना कि हम कोरोना से चार क़दम आगे चल रहे हैं, पिछले दिनों यह दावा करना कि दिल्ली में न तो बेड की कमी है और न ही ऑक्सीजन की आदि। जबकि हकीक़त यह है कि दिल्ली में केजरीवाल की सरकार को बने लगभग सात साल हो गये पर उनकी सरकार में एक भी नया अस्पताल नहीं बनाया गया है। यह भी सच है पूरे देश की तरह दिल्ली में अधिकतर मौतें ऑक्सीजन की कमी से ही हो रही हैं, दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी को लेकर केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार का तू नंगा-तू नंगा का खेल चल रहा जिसका ख़ामियाज़ा दिल्ली की आम जनता को उठाना पड़ रहा है।
दिल्ली में अब तक हुई हज़ारों मौतों के लिए ज़िम्मेदार कोरोना महामारी ही नहीं बल्कि लचर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था भी ज़िम्मेदार है। अधिकांश ज़िन्दगियाँ बचायी जा सकती थीं, किन्तु नहीं बचायी जा सकीं। मोदी और केजरीवाल सरकार की यह बेशर्मी भी दिखी कि वैसे दिल्ली पर अपने अधिकारों को आगे रखने की होड़ दिखाने वाली इन दोनों ही सरकारों ने इस महामारी में आम जनता के लिए कोई बेहतर इन्तज़ाम नहीं किया। जहाँ देश स्तर पर फ़ासीवादी मोदी सरकार ने कोरोना महामारी में लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया, वहीं दिल्ली में भी केजरीवाल के राज में ग़रीब आदमी कोरोना महामारी या लॉकडाउन में काम बन्द होने के चलते भूख से मरने को मजबूर है।

मज़दूर बिगुल, मई 2021


 

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