मज़दूरों को अपनी समझ और चेतना बढ़ानी पड़ेगी, वरना ऐसे ही ही धोखा खाते रहेंगे

 विशाल, लुधियाना

मैं लुधियाना में क़रीब 6 सालों से रह रहा हूँ। पिछले अक्टूबर 2010 से मैं टेक्सटाइल्स मज़दूर यूनियन के साथ जुड़ा और मज़दूर बिगुल पढ़ रहा हूँ। पुराने मज़दूरों की जानकारी के अनुसार 1992 से पहले यहाँ पर (सीटू) की यूनियन थी – 1992 में लुधियाना में हड़ताल हुई थी जो क़रीब 45 दिनों तक चली थी। उस 45 दिनों की हड़ताल में मज़दूरों के ऊपर दमन का चक्र भी चला था। उस लम्बी हड़ताल के बाद यूनियन समझौतापरस्त हो गयी और मज़दूरों की जानकारी के अनुसार पैसा लेकर बैठ गयी।

मुझे पता चला कि लुधियाना के मज़दूरों के बीच सन् 2000 में मज़दूर अख़बार बिगुल की शुरुआत हुई थी और एक लम्बे समय के बाद 2008 में कारख़ाना मज़दूर यूनियन की स्थापना हुई थी। 2008 में न्यू शक्तिनगर में एक दर्दनाक घटना घटी। एक टेक्सटाइल फैक्ट्री में पप्पू तानामास्टर की मशीन में आ जाने से मौत हो गयी थी। जैसे ही कारख़ाना मज़दूर यूनियन के साथियों को पता चला तो उन्होंने पूरे शक्तिनगर के मज़दूरों को इकट्ठा किया और पप्पू तानामास्टर के परिवार वालों को मुआवज़ा दिलवाया। इससे मज़दूरों में एकता की ताक़त का एहसास हुआ लेकिन मज़दूरों के साथ हो चुकी गद्दारी से मज़दूर काफ़ी सोच में पड़े हुए थे, लेकिन यूनियन का समझौता कराने का तरीक़ा उनको अच्छा लगा कि 1992 की तरह किसी एक नेता ने समझौता नहीं किया बल्कि सभी मज़दूरों की सहमति से फैसला लिया गया। फिर न्यू शक्तिनगर के मज़दूरों ने बढ़ती महँगाई के अनुसार वेतन में बढ़ोत्तरी की माँग की तो मालिकों ने मज़दूरों को फैक्टरियों से बाहर निकाल दिया। मज़दूरों के पास संघर्ष के सिवा और कोई रास्ता नहीं था। मज़दूरों ने कारख़ाना मज़दूर यूनियन को बुलाया और यूनियन ने मज़दूरों की मीटिंग की और लेबर दफ़्तर पर लगातार 9 दिन धरना-प्रदर्शन किया तब जाकर 11 प्रतिशत वेतन के ऊपर बढ़ोत्तरी हुई। ये समझौता लेबर दफ्तर में मालिकों और मज़दूरों के संगठन के बीच हुआ।था। मज़दूरों का यूनियन के ऊपर विश्वास दृढ़ता के साथ बना फिर बाद में कश्मीननगर, गौशाला, माधोपुरी, न्यू माधोपुरी, सैनिक कॉलोनी, हीरा नगर के मज़दूरों ने यूनियन के साथ मिलकर संघर्ष किया और इन सारी जगह वही समझौता हुआ। इसी बीच लुधियाना के गीतानगर इलाके में मज़दूर यूनियन का पर्चा पढ़कर करके हड़ताल पर चले गये थे। यहाँ पर सीटू से अलग हुई, सीटीयू पंजाब के नेतृत्व में मज़दूरों ने संघर्ष किया। इस संघर्ष के ऊपर मालिकों ने दमन का रास्ता अपनाया बल्कि इस दमन में मज़दूरों के हाथ-पाँव टूटे। ये सब होने के बावज़ूद जो शक्तिनगर में और बाकी इलाक़ों में जो फैसला हुआ वही इन मज़दूरों को मिला।

यहाँ 2010 में कारखाना मज़दूर यूनियन अपने फोकल प्वाइंट इलाक़े में काम कर रही है। यहाँ पर तभी टेक्सटाइल्स मज़दूर यूनियन बना दी गयी थी, अब 2011 में टेक्सटाइल्स मज़दूर यूनियन ने मज़दूर पंचायत बुलायी जिसमें मज़दूरों के बीच कुछ माँगों पर विचार-विमर्श हुआ। और सारे फैक्टरी मालिकों के पास माँगपत्र मज़दूरों के हाथों भिजवा दिया गया। एक माँगपत्र की कापी लेबर दफ्तर पर दी गयी थी। माँग पत्र की याद दिलाने के लिए मज़दूरों के प्रतिनिधियों ने धरना-प्रदर्शन किया। अन्त में 22 सितम्बर 2011 को हड़ताल हो गयी जो 70 दिनों तक चली। इसी हड़ताल में मालिकों ने नेताओं के ऊपर बिकने और आतंकवाद का आरोप लगाया। इसमें मालिकों ने अपनी एसोसिएशन में फैसला किया कि मज़दूरों को अब किसी भी हालत में तोड़ दिया जाये लेकिन मज़दूर तो टूटे नहीं बल्कि लुटेरों में ही एकता क़ायम नहीं रही और 70 दिनों के बाद मालिकों ने मज़दूरों के साथ समझौता किया। मज़दूरों ने भी ठान लिया था कि अब हम टूटकर मिल चलाने नहीं जायेंगे। इस साल मज़दूरों ने 14 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी, ईएसआई कार्ड और बोनस पर समझौता किया। दूसरे एरिया के मज़दूरों यानी गीतानगर के मज़दूरों का जो संगठन है वह पहले से ही दलाल क़िस्म के समझौता करता है और उसने 2011 में जनवरी और फरवरी मन्दी के बीच 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करायी वह भी कुछ ही फैक्टरियों में। टेक्सटाइल्स मज़दूर यूनियन ने 2011 की तरह 2012 में मज़दूर पंचायत बुलायी उसमें माँगों पर चर्चा हुई और अगले हफ्ते माँगपत्र फैक्टरी मालिकों के पास भिजवा दिया गया। अब मज़दूरों ने हड़ताल न करके दूसरे रास्ते अपनाये जो पिछले 2011 में बिगुल ने सुझाये थे। ओवरटाइम बन्द करके एक तो फैक्टरी मालिकों के ऊपर दबाव दूसरी तरफ़ सरकारी विभागों के ऊपर दबाव बनाया। अब सरकारी अफसरों को भी कहने का मौका नहीं मिला कि मज़दूर फैक्टरी के अन्दर नहीं है। मज़दूर साढ़े आठ घण्टे काम करने के बाद मीटिेग किया करते थे। इस बार मज़दूरों ने संघर्ष करके 13 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी, ईएसआई कार्ड हासिल किया। अब फैक्टरियों में पीएफ वालों के छापे पड़ रहे हैं।

यूनियन यानी वर्गसंघर्ष की पाठशाला

इस यूनियन का नियम है हर सप्ताह मज़दूरों की मीटिंग करना। ये यूनियन बिल्कुल लेनिनवादी उसूलों पर चलती है, जैसे लेनिन ने कहा था कि ट्रेड यूनियन मज़दूरों के लिए वर्ग संघर्ष की पाठशाल होती है। मीटिंगों में मज़दूर इसमें अपना अनुभव साझा करते हैं। और रोज-रोज जो समस्या आती है उनको हल करने की चेतना विकसित करते हैं।

2012 में यहाँ के एक इलाक़ा मेहरबान में 4 जनवरी को हरसिद्धी टेक्सटाइल्स में चोरी के इल्ज़ाम में एक मज़दूर को जेल में बन्द करवा दिया गया था। यूनियन ने अपनी नीति के अनुसार उस गली की चारों फैक्टरियों के मज़दूरों के साथ मीटिंग की और मालिक के ऊपर दबाव बनाया। जिससे वहाँ के मज़दूरों ने यूनियन के ऊपर विश्वास किया और वहाँ भी साप्ताहिक मीटिंग जारी है। इधर भी फैक्टरी में ईएसआई कार्ड बन रहे हैं और पीएफ वालों के छापे पड़ रहे हैं। 2012 का संघर्ष टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन ने काफ़ी समझदारी और सूझ-बूझ के साथ लड़ा।

अब गीतानगर के संगठन वाले चुप बैठे हुए हैं। याद हो कि गीतानगर में दो संगठन है। एक तो वे हैं जो (सीटू राष्ट्रीय यूनियन) से अलग हुआ है। सीटीयू पंजाब दूसरा है। सीटीयू से अलग हुआ टीयूसीसी यहाँ पर मज़दूरों को पस्तहिम्मत करने का काम करता है, संगठन के नाम पर मज़दूर के दिलों से गाली निकलती है।

मेरा कहने का मतलब है कि मज़दूरों का कोई भी संगठन बिना जनवाद के नहीं चल सकता। लेकिन सीटू, एटक, इंटक, बीएमएस तथा उनसे जो संगठन अलग होकर मज़दूरों को गुमराह कर रहे हैं और कैसे भी करके अपनी दाल-रोटी चला रहे हैं। मज़दूरों को इन संगठनों से बचना होगा और अपनी समझ को बढ़ाना और अपनी चेतना विकसित करनी होगी। तभी कोई क्रान्तिकारी मज़दूर संगठन पूरे देश के पैमाने पर खड़ा किया जा सकता है।

 

मज़दूर बिगुलजुलाई  2013

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments