बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की एक व्यंग्य कविता
सरकार और कला

अनुवादः सत्यम

1.

बेपनाह दौलत खर्च कर दी जाती है

अट्टालिकाएँ और स्टेडियम बनवाने पर।

ऐसा करते हुए

सरकार एक युवा चित्रकार की तरह काम करती है,

जो भूख की परवाह नहीं करता,

अगर नाम कमाने के लिए ऐसा करना पड़े।

वैसे भी, सरकार जिस भूख की परवाह नहीं करती

वह है दूसरों की भूख, जनता की भूख।

 

2.

चित्रकार की ही तरह, सरकार के पास तमाम तरह की

अलौकिक शक्तियाँ होती हैं,

और हालाँकि उसे कुछ बताया नहीं जाता,

वह सबकुछ जानती है। सरकार क्या कर सकती है,

यह सरकार ने नहीं सीखा है।

उसने कुछ भी नहीं सीखा है।

उसकी शिक्षा वाकई कमज़ोर है, फिर भी

वह हर चर्चा में दखल दे सकती है और

हर चीज़ का फ़ैसला कर सकती है।

उन चीज़ों का भी जिनके बारे में वह कुछ नहीं जानती।

 

3.

जैसा कि सब जानते हैं, कलाकार मूर्ख हो सकता है

और फिर भी महान कलाकार हो सकता है।

इस मामले में भी

सरकार कलाकार की तरह है। जैसा कि रेम्ब्रां के बारे में कहा जाता है

कि अगर वह बिना हाथों के पैदा हुआ होता तो भी ऐसे ही चित्र बनाता,

वैसे ही सरकार के बारे में भी कहा जा सकता है

कि अगर वह बिना सिर के पैदा हुई होती

तो भी ऐसे ही शासन करती।

 

4.

हम कलाकार की कल्पना पर रीझते हैं।

जब हम वर्तमान हालात का सरकार का वर्णन सुनते हैं,

तो हम कहते हैं कि उसके पास भी कल्पना की

कमी नहीं।

कलाकार आर्थिक मसलों के प्रति नफ़रत ही

दिखा सकता है

और सब जानते हैं कि सरकार के लिए भी अर्थव्यवस्था नागवार ही होती है।

बेशक, सरकार के कुछ अमीर कद्रदान हैं, और

हर कलाकार की तरह

वह उनसे पैसे खींचने में लगी रहती है।

(‘जर्मन व्यंग्य’  शृंखला से)

 

 

मज़दूर बिगुल, जूलाई 2011

 


 

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