एक हज़ार कारण हैं कि हम विद्रोह करें, और बस एक ही काफ़ी है कि अब और प्रतीक्षा न करें!

  • भारत में कुपोषित बच्चों की दर दुनिया में सबसे ग़रीब माने जाने वाले उप-सहारा अफ्रीका के देशों से भी अधिक है। एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (आईसीडीएस) की हाल की रिपोर्ट के अनुसार पोषण के बारे मे सरकारी विभागों के आँकड़ों और ज़मीनी सच्चाइयों में बहुत अधिक अन्तर है। देश की राजधानी और सबसे अमीर राज्यों में से एक, दिल्ली में 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
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  • एक सरकारी सर्वेक्षण ने बताया है कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ग़रीब लोग केवल 17 रुपये प्रतिदिन पर गुज़ारा करते हैं जबकि शहरों और कस्बों में रहने वाले रोज़ाना 23 रुपये पर जीते हैं। 2011-12 (जून-जुलाई) के लिए राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे (एनएसएस) के आँकड़ों के मुताबिक सबसे नीचे की 5 प्रतिशत आबादी की औसत मासिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में रु. 521.44 है और शहरी क्षेत्रों में रु. 700.50 है।
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  • भारत में औसत आयु चीन के मुक़ाबले 7 वर्ष और श्रीलंका के मुक़ाबले 11 वर्ष कम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर चीन के मुक़ाबले तीन गुना, श्रीलंका के मुक़ाबले लगभग 6 गुना और यहाँ तक कि बांग्लादेश और नेपाल से भी ज़्यादा है। भारतीय बच्चों में से क़रीबन आधों का वज़न ज़रूरत से कम है और वे कुपोषण से ग्रस्त हैं। क़रीब 60 फ़ीसदी बच्चे ख़ून की कमी से ग्रस्त हैं और 74 फ़ीसदी नवजातों में ख़ून की कमी होती है। प्रतिदिन लगभग 9 हज़ार भारतीय बच्चे भूख, कुपोषण और कुपोषणजनित बीमारियों से मरते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के 50 फ़ीसदी मामलों का कारण कुपोषण होता है। 5 वर्ष से कम आयु के 5 करोड़ भारतीय बच्चे गम्भीर कुपोषण के शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 63 फ़ीसदी भारतीय बच्चे प्रायः भूखे सोते हैं और 60 फ़ीसदी कुपोषणग्रस्त होते हैं। 23 फ़ीसदी बच्चे जन्म से कमज़ोर और बीमार होते हैं। एक हज़ार नवजात शिशुओं में से 60 एक वर्ष के भीतर मर जाते हैं। लगभग दस करोड़ बच्चे होटलों में प्लेटें धोने, मूँगफली बेचने आदि का काम करते हैं।
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  • अन्तरराष्ट्रीय खाद्यनीति शोध संस्थान और कैलिप़फ़ोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किये गये ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ (ग्लोबल हंगर इण्डेक्स) 2008 के अनुसार, दुनिया के 88 देशों में भारत का 66वाँ स्थान है। अफ़्रीकी देशों और बांग्लादेश को छोड़कर भूखे लोगों के मामले में भारत सभी देशों से पीछे है। दुनिया में कुल 30 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं और 2015 तक भूख की समस्या मिटा देने के संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्नान के बावजूद 2030 तक इनकी संख्या बढ़कर 80 करोड़ हो जाने का अनुमान है। इस आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ़ भारत में रहता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य व कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में 85 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी, कुपोषण या अल्पपोषण के शिकार हैं। इनमें से लगभग 35 करोड़ आबादी भारतीय है। हर तीन में से एक (यानी लगभग 35 करोड़) भारतीयों को प्रायः भूखे पेट सोना पड़ता है।
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  • विकास के तमाम दावों के बावजूद देश में बेरोज़गारों की संख्या बढ़ती जा रही है। 2009-10 में 36.5 प्रतिशत लोगों के पास वर्ष के ज़्यादातर समय रोज़गार रहता था, लेकिन 2011-12 तक ऐसे कामगारों की संख्या घटकर 35.4 प्रतिशत रह गयी। ग्रामीण क्षेत्रों में इन दो वर्षों के दौरान 90 लाख से ज़्यादा औरतों का काम छूट गया।
  • एक सरकारी आँकड़े के अनुसार, देश की 75 फ़ीसदी माँओं को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिलता। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, यू.एन.एफ़.पी.ए. और विश्व बैंक द्वारा तैयार की गयी ‘मैटर्नल मॉर्टेलिटी रिपोर्ट’ (2007) के अनुसार, पूरी दुनिया में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान 5.36 लाख स्त्रियाँ मर जाती हैं। इनमें से 1.17 लाख मौतें सिर्फ़ भारत में होती हैं। भारत में प्रसव के दौरान 1 लाख में से 450 स्त्रियों की मौत हो जाती है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मृत्यु के 47 फ़ीसदी मामलों में कारण ख़ून की कमी और अत्यधिक रक्तस्राव होता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत सहित सभी विकासशील देशों में गर्भवती और सद्यः प्रसूता स्त्रियों के मामले में 99 फ़ीसदी मौतें ग़रीबी, भूख और बीमारी के चलते होती हैं।
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मज़दूर बिगुलजून  2013

 


 

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