Tag Archives: आरएसएस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : भारतीय फ़ासीवादियों की असली जन्मकुण्डली

आरएसएस ने भी खुले तौर पर जर्मनी में नात्सियों द्वारा यहूदियों के क़त्लेआम का समर्थन किया। हेडगेवार ने मृत्यु से पहले गोलवलकर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गोलवलकर ने अपनी पुस्तक ‘वी, ऑर अवर नेशनहुड डिफ़ाइण्ड’ और बाद में प्रकाशित हुई ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ में जर्मनी में नात्सियों द्वारा उठाये गये क़दमों का अनुमोदन किया था। गोलवलकर आरएसएस के लोगों के लिए सर्वाधिक पूजनीय सरसंघचालक थे। उन्हें आदर से संघ के लोग ‘गुरुजी’ कहते थे। गोलवलकर ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में मेडिकल की पढ़ाई की और उसके बाद कुछ समय के लिए वहाँ पढ़ाया भी। इसी समय उन्हें ‘गुरुजी’ नाम मिला। हेडगेवार के कहने पर गोलवलकर ने संघ की सदस्यता ली और कुछ समय तक संघ में काम किया। अपने धार्मिक रुझान के कारण गोलवलकर कुछ समय के लिए आरएसएस से चले गये और किसी गुरु के मातहत संन्यास रखा। इसके बाद 1939 के क़रीब गोलवलकर फिर से आरएसएस में वापस आये। इस समय तक हेडगेवार अपनी मृत्युशैया पर थे और उन्होंने गोलवलकर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 1940 से लेकर 1973 तक गोलवलकर आरएसएस के सुप्रीमो रहे।

मोदी सरकार के चार साल : अच्छे दिनों का सपना दिखाकर लूट-खसोट के नये कीर्तिमान

संघ परिवार की इस बढ़ी ताक़त के साथ ही साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं में भी तेज़ वृद्धि हुई है। संघ परिवार ही नहीं बल्कि इसे सीधे या परोक्ष ढंग से जुड़े अनेक हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थी संगठन साम्प्रदायिक नफ़रत फैला रहे हैं और हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रहै हैं। विभिन्न पार्टियों की सरकारें व पुलिस प्रशासन भी इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बजाय इनका साथ देते हैं। भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकारें हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थियों को हवा दे रही हैं। पिछले चार वर्ष में बर्बर साम्प्रदायिक हिंसा के ज़्यादातर मामले में दोषियों को सज़ा नहीं हुई, उल्टे उन्हें बचाने की कोशिश की गयी।

जनता में बढ़ते असन्तोष से घबराये भगवा सत्ताधारी

हमने मोदी की जीत के बाद जो भविष्यवाणी की थी वह अक्षरश: सही साबित हो रही है। विदेशों में जमा काला धन की एक पाई भी वापस नहीं आयी है। देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये आना तो दूर, फूटी कौड़ी भी नहीं आयेगी। नोटबन्‍दी से काला धन कम होने के बजाय उसका एक हिस्‍सा सफ़ेद हो गया और आम लोगों की ईमान की कमाई लुट गयी। निजीकरण की अन्धाधुन्ध मुहिम में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को हड़पकर देशी-विदेशी कम्पनियाँ जमकर छँटनी कर रही हैं।