“गुजरात मॉडल” पुराना पड़ने के साथ अब उससे भी बर्बर “यूपी मॉडल”
खड़ा करने की कोशिश में योगी आदित्यनाथ

नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरबों रुपये ख़र्च करके जो मुहिम चलायी गयी थी, उसके केन्द्र में था “गुजरात मॉडल” का अन्धाधुन्ध प्रचार। अलग-अलग लोगों के लिए इसके अलग-अलग मायने थे। मीडिया तंत्र के मालिकों के पुरज़ोर समर्थन और आरएसएस व भाजपा के अपने प्रचार तंत्र के सहारे मोदी के शासन में गुजरात के चौतरफ़ा “विकास” का एक मिथक खड़ा किया। अब सभी जान चुके हैं कि यह विकास वैसा ही था जैसा विकास पूरा देश पिछले 6 साल से भुगत रहा है। लेकिन 2014 से पहले के कुछ वर्षों के दौरान धुआँधार प्रचार से एक बड़ी आबादी इसके झाँसे में आ गयी थी। लेकिन एक बहुत बड़ी आबादी के लिए गुजरात मॉडल का असली मतलब यह था कि वहाँ मोदी ने मुसलमानों को उनकी “औक़ात” बता दी है। 2002 के दंगों में हुए मुसलमानों के क़त्लेआम और उसके बाद जिस तरह से उन्हें दबाया और अपमानित किया गया, उसने इन लोगों को भरोसा दिलाया कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे देश में ऐसा ही होगा। नफ़रत के नशे में अपनी समस्याओं के असली कारणों को भूलकर हर परेशानी का कारण मुसलमानों को मानने वाली यह जमात आरएसएस और भाजपा ने पिछले लम्बे समय के अपने ज़हरीले प्रचार से तैयार की थी। 2014 के चुनाव में गुजरात मॉडल के इन दोनों मायनों से प्रभावित लोगों का समर्थन भाजपा की जीत की बड़ी वजह बना।
अब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ उसी तर्ज पर “यूपी मॉडल” खड़ा करने में जुटे हुए हैं। एक ओर मुसलमानों को आतंकित करके दोयम दर्जे के नागरिक जैसी हैसियत बना देने का कोई मौक़ा उनकी सरकार नहीं छोड़ रही है, दूसरी ओर प्रदेश की हर तरह से ख़स्ता हालत के बावजूद विकास की गंगा बहाने के झूठे प्रचार पर अरबों रुपये बहाये जा रहे हैं। मोदी के गुजरात की ही तर्ज पर उत्तर प्रदेश में दलितों और औरतों पर अत्याचार और उनके विरुद्ध बर्बर अपराध रोज़मर्रा की बात हो गये हैं, बल्कि इस मामले में यूपी ने गुजरात ही नहीं, देश के सभी राज्यों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। मज़दूरों और कर्मचारियों के दमन और किसी भी तरह प्रतिरोध की आवाज़ उठाने वालों के दमन-उत्पीड़न के मामले में भी योगी आदित्यनाथ का यूपी मॉडल नये रिकॉर्ड बना रहा है।
हाथरस में बलात्कार पीड़ित लड़की और उसके परिवार के साथ जो किया गया, और उसके बाद विपक्षी दलों से लेकर पत्रकारों तक के साथ जिस तरह का बर्ताव पुलिस ने किया, वैसा किसी सरकार ने नहीं किया था। प्रदेश में रोज़ स्त्री-विरोधी बर्बर अपराधों की झड़ी लगी हुई है, मगर मुख्यमंत्री पूरे अहंकार के साथ दावे कर रहे हैं कि उनकी सरकार स्त्रियों की “रक्षा” कर रही है और मीडिया बेशर्मी से उनके बयानों और कई-कई पेज के विज्ञापनों को बिना किसी सवाल के छाप रहा है।
मुसलमानों को आतंकित करने और उनके असन्तोष की किसी भी आवाज़ पर सत्ता की पूरी ताक़त से टूट पड़ने का कोई मौक़ा उत्तर प्रदेश सरकार नहीं छोड़ रही है। डॉ. कफ़ील ख़ान को क़ानून को ताक पर रखकर महीनों तक जेल में रखा गया क्योंकि उन्होंने योगी के अपने शहर में बच्चों की मौत के लिए ऑक्सीजन सिलेण्डरों की कमी की बात उठायी थी। सीएए-एनआरसी क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का सबसे बर्बर दमन उत्तर प्रदेश में किया गया और यह सिलसिला अब भी जारी है। अदालत के आदेश के बावजूद प्रदर्शनकारियों की सम्पत्ति ज़ब्त कर ली गयी और क़ानून को ठेंगा दिखाकर उनके पोस्टर जगह-जगह लगाये जा रहे हैं। मुस्लिम नाम और इतिहास वाले शहरों और स्मारकों के नाम बदलने से लेकर ‘लव जेहाद’ जैसे आधारहीन मुद्दे को हवा देने वाले आदित्यनाथ ख़ुद को “हिन्दू हितों” के सबसे बड़े रक्षक के रूप में पेश करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहे हैं। जो शख़्स “एक के बदले सौ बेटियों को उठाने” जैसी बातें टीवी पर बोल चुका हो और जिसके मंच से “क़ब्र से मुस्लिम औरतों को निकालकर बलात्कार करने” जैसी बातें बोली जाती रही हों, उसके लिए यह महत्वाकांक्षा पालना कोई बड़ी बात नहीं है।
फ़ासिस्टों के लिए अपना लक्ष्य पूरा करने के वास्ते एक मोहरे को हटाकर दूसरा मोहरा ले आना कोई मुश्किल काम नहीं होता। जिस दिन संघ और उसके पीछे बैठे थैलीशाहों को लगेगा कि मोदी और उसकी मण्डली अब असर खो रही है और उन्हें “हिन्दू राष्ट्र” के अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए ज़्यादा अगियाबैताल छवि वाले हिन्दुत्ववादी नेता की ज़रूरत है, उस दिन उन्हें ऐसा करने में देर नहीं लगेगी। संघ और उसके आक़ा भी जानते हैं कि सिर्फ़ हिन्दुत्व के सहारे सत्ता पर क़ब्ज़ा करना सम्भव नहीं, इसलिए “विकास” का ढिंढोरा पीटना भी ज़रूरी है।
जैसे मोदी जैसे नाकारा प्रशासक की छवि विकासपुरुष की बनायी गयी थी, उसी तरह अब योगी की छवि भी बनाने की कोशिश हो रही है। व्यवसायियों को राज्य में निवेश के लिए आमंत्रित करने के वास्ते तरह-तरह के आयोजन हो रहे हैं और तमाम श्रम क़ानूनों को स्थगित करके मज़दूरों को बेलगाम लूटने की छूट के आश्वासन उन्हें दिये जा रहे हैं। जैसाकि गुजरात में मोदी की सरकार ने किया था। इण्डिया टुडे लगातार तीन बार योगी को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री घोषित कर ही चुका है। कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में पूँजीपतियों की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति भी घोषित कर दिया जाये।
एक नये उत्तर प्रदेश की छवि उभारी जा रही है – जहाँ अल्पसंख्यकों, दलितों, स्त्रियों, मेहनतकशों और विरोध करने वालों को सत्ता के लोहे के पंजे के नीचे दबाकर रखा जाता है, पर जो उद्योग-व्यापार के लिए बहुत अच्छी जगह है। आइए, शौक़ से पूँजी लगाइए, मनमर्ज़ी से मज़दूरों-कर्मचारियों को मनचाही मज़दूरी पर काम पर रखिए और जब चाहे निकाल बाहर कीजिए। कोई विरोध करे, तो उसे कुचलने के लिए पुलिस से लेकर नयी बन रही एस.एस.एफ़. तक आपके आदेश पर खड़ी हैं। पैसे दीजिए, और जिसे चाहिए उसे अन्दर करवाइए।
हमें भूलना नहीं चाहिए कि गुजरात मॉडल कैसे खड़ा किया गया था।।
गुजरात दंगों के दस साल बाद, जिसमें क़रीब दो हज़ार (ज़्यादातर मुस्लिम) लोग मारे गये थे, कई लोगों को लगता था कि नरेन्द्र मोदी राजनीति में किनारे लगा दिये जायेंगे। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तो थू-थू हो ही रही थी, भारत में भी अनेक पूँजीपति उनके सख़्त ख़िलाफ़ थे। कई देशों ने मोदी को वीज़ा देने से इन्कार कर दिया था, कुछ ने खुले तौर पर अमेरिका की तरह, दूसरों ने चुपचाप। मगर कुछ ही साल बाद, उनके राजनयिक गुजरात जाने लगे और गुजरात में निवेश पर चर्चा करने लगे थे।
आर्थिक संकट से जूझ रहे पूँजीपतियों को मोदी के ये आश्वासन लुभा रहे थे कि उन्हें जनता की मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की खुली छूट दी जायेगी। देशी पूँजीपतियों का रुख़ पहले ही बदलने लगा था। 2013 में हुए वाइब्रेण्ट गुजरात शिखर सम्मेलन में, कई बड़े कॉरपोरेट समूहों के मालिक नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ के पुल बाँध रहे थे और उन्हें प्रधानमंत्री के सबसे अच्छे दावेदार के रूप में पेश कर रहे थे। मुकेश अम्बानी ने कहा, “उनके पास एक भव्य विज़न है; वह महात्मा गांधी और सरदार पटेल की तरह हैं।” अनिल अम्बानी ने घोषित कर दिया कि गुजरात भारत में सबसे अधिक निवेशक-हितैषी राज्य था और इसका श्रेय श्री मोदी को है। रतन टाटा भी मंच पर तालियाँ बजाने वालों में थे जिनकी नैनो कार के कारख़ाने के लिए गुजरात सरकार ने जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों लुटा दिये थे।
अब मोदी ने राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को खुलकर प्रकट करना शुरू कर दिया था। जनता के एक बड़े हिस्से के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी जो उनके बारे में केवल अच्छी बातें सुन रहे थे – गुजरात में सुन्दर सड़कें हैं, बिजली कटौती नहीं होती और शान्ति और सुरक्षा है। इस बात को गोल कर दिया गया था कि वहाँ मुसलमानों को किस क़दर ज़ुल्म और भेदभाव का शिकार बनाया गया है। मज़दूरों का शोषण और दमन कितना भीषण है और ग़रीबी की क्या हालत है।
गुजरात में न्यायपालिका से लेकर पुलिस महक़मे, शिक्षा से लेकर नौकरशाही के पूरे ढाँचे का बहुत योजनाबद्ध ढंग से साम्प्रदायीकरण किया गया और नीचे से लेकर ऊपर तक संघ के लोगों या वैसी ही मानसिकता वाले लोगों को भर दिया गया। वही मॉडल मोदी के शासन में पूरे देश में लागू किया जा रहा है और इसे ही पूरी ताक़त से उत्तर प्रदेश में लागू किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी में पहले से ही साम्प्रदायिकता का वायरस फैला हुआ था, भाजपा राज में यह बेहद घातक बन चुका है। हाथरस से लेकर सीएए-एनआरसी विरोधी आन्दोलन के दमन की घटनाएँ आने वाले दिनों की बानगी भर हैं। फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में दलितों-मुसलमानों को मारने की छूट सीधे मुख्यमंत्री से पुलिस को मिली हुई है।
आज उत्तर प्रदेश में बेरोज़गारी चरम पर है, स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भयंकर है, कोरोना ने करोड़ों ग़रीबों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है, स्त्रियों की सुरक्षा और सम्मान पर रोज़ हमले हो रहे हैं, मगर इस “रामराज्य” का शासक अयोध्या में करोड़ों रुपये फूँककर दिये जला रहा है क्योंकि उसे लगता है कि हिन्दुत्व के सबसे उग्र नेता के रूप में उसकी छवि और उद्योग-व्यापार के मालिकों का समर्थन ही काफ़ी है। गुजरात मॉडल वाले नेता के कारनामे देश का मेहनतकश देख चुका है, क्या वह इस यूपी मॉडल के सहारे शुरू किये जा रहे विनाशकारी प्रोजेक्ट को चुपचाप पूरा होने देगा, या उसे ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़ेगा?

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020


 

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