Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

इतिहास का एक टुकड़ा – जूलियस फ़्यूचिक

एक कारखाना मजदूर के बेटे फ़्यूचिक ने पन्द्रह-सोलह वर्ष की उम्र से ही मजदूर आन्दोलन और सांस्कृतिक जगत में काम करना शुरू कर दिया। बाद में उन्हें चेकोस्लावाकिया की कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यपत्र ‘रूद प्रावो’ के सम्पादन की जिम्मेदारी दी गई। चेकोस्लोवाकिया पर नात्सी अधिकार कायम हो जाने के बाद फ़्यूचिक भी एक सच्चे कम्युनिस्ट की तरह फ़ासिज्म की बर्बरता के खिलाफ़ खड़े हुए। जल्दी ही जर्मन फ़ासिस्ट कुत्तों गेस्टापो ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और अनगिनत यातनाएं देने के बाद 8 सितम्बर, 1943 को बर्लिन में गोली मार दी। फ़्यूचिक तब मात्र चालीस वर्ष के थे। यहाँ हम जूलियस फ़्यूचिक की अमर कृति ‘फ़ांसी के तख्ते से’ का एक अंश दे रहे हैं, जो उन्होंने नात्सी जल्लाद के फ़न्दे की छाया में लिखी थी।

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फासिस्ट सत्ताएं कभी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं क्योंकि सारे फासिस्ट भीतर से कायर होते हैं। खासकर कला–साहित्य–संस्कृति से तो उनकी जानी दुश्मनी है। हिटलर का प्रचार मंत्री गोयबेल्स कहता था, ‘‘जब मैं संस्कृति शब्द सुनता हूं तो मेरा हाथ अपनी पिस्तौल पर चला जाता है।’’ हिटलर की भारतीय औलादें भी अपने बाप–दादों की इस गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।