Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

चिली के बर्बर तानाशाह जनरल पिनोशे की मौत-लेकिन पूँजीवादी नरपिशाचों की यह बिरादरी अभी ज़िन्‍दा है!

हमें बुर्जुआ इतिहासकारों की तर्ज़ पर पिनोशे के ख़ूनी कारनामों को उसके विकृत दिमाग की उपज नहीं मानना चाहिए। पिनोशे चिली की समस्त प्राकृतिक एवं सामाजिक सम्पदा पर कब्ज़ा जमाने की वहशी चाहत रखने वाले समाज के मुट्ठी भर ऊपरी वर्गों और अमेरिकी साम्राज्यवादी डाकुओं का दुलारा नुमाइन्दा था। धनपशुओं की इस जमात को चिली में लोकप्रिय जननेता सल्वादोर अलेन्दे द्वारा 1971 में चुनकर सरकार में आना फूटी आँखों नहीं सुहाया था। अलेन्दे को सत्ता में आने से रोकने के लिए इस जमात ने अपनी एड़ी–चोटी का ज़ोर लगा दिया लेकिन अलेन्दे को हासिल प्रचण्ड जनसमर्थन के सामने उनके मंसूबे धरे के धरे रह गये। सत्ता सम्हालने के बाद जब अलेन्दे ने अमेरिकी बहुराष्‍ट्रीय खदानों, बैंको और अन्य महत्वपूर्ण उद्योगों के राष्‍ट्रीकरण, बड़ी पूँजीवादी जागीरों को सामुदायिक खेती में बदलने और कीमतों पर नियन्त्रण क़ायम कराने की नीतियों की घोषणा की तो चिली के वे धनपशु और उनके अमेरिकी सरपरस्त बदहवास हो उठे। उन्होंने अलेन्दे की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिये आर्थिक तोड़–फोड़, सामाजिक अफ़रातफ़री पैदा करने के साथ ही अलेन्दे की हत्या करने की साज़िशों को रचना शुरू कर दिया। अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी सी.आई.ए. ने अपनी कुख्यात सरगर्मियाँ तेज़ कर दीं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों को पिनोशे के रूप में एक वफ़ादार कुत्ता भी मिल गया जो उस समय चिली का सेनाध्यक्ष था। आख़िरकार यह जमात 11 सितम्बर 1973 को अपने मंसूबों में कामयाब हो गयी जब पिनोशे की अगुवाई में सीधे राष्‍ट्रपति भवन ‘ला मोनेदा’ पर फ़ौजी धावा बोल दिया गया जिसमें अलेन्दे अपने सैकड़ों सहयोगियों के साथ लड़ते–लड़ते मारे गये।

कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम एक छलावा है!

मुस्लिम आबादी को वोट बैंक के रूप में ही देखा जाता है और धर्म को सिक्के के रूप में वोट बैंक की राजनीति में इस्तेमाल किया जाता रहा है। मुस्लिम आबादी के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने की दिशा में किसी भी पार्टी ने अभी तक कोई काम नहीं किया है। इधर धार्मिक नेता भी अपना उल्लू सीधा करने के लिए इन्हें पिछड़ेपन में जकड़े रहना चाहते हैं, ये आम मुस्लिम आबादी की दुर्दशा की बात नहीं करते हैं। बल्कि इसके विपरीत धार्मिक कट्टरपंथ को बनाये रखने का काम मुस्लिम कट्टरपंथ बखूबी करता है। इस मुस्लिम कट्टरपंथ के खेल का फ़ायदा भी हिन्दू धार्मिक कट्टरपंथ ही उठाता है।

इतिहास का एक टुकड़ा – जूलियस फ़्यूचिक

एक कारखाना मजदूर के बेटे फ़्यूचिक ने पन्द्रह-सोलह वर्ष की उम्र से ही मजदूर आन्दोलन और सांस्कृतिक जगत में काम करना शुरू कर दिया। बाद में उन्हें चेकोस्लावाकिया की कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यपत्र ‘रूद प्रावो’ के सम्पादन की जिम्मेदारी दी गई। चेकोस्लोवाकिया पर नात्सी अधिकार कायम हो जाने के बाद फ़्यूचिक भी एक सच्चे कम्युनिस्ट की तरह फ़ासिज्म की बर्बरता के खिलाफ़ खड़े हुए। जल्दी ही जर्मन फ़ासिस्ट कुत्तों गेस्टापो ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और अनगिनत यातनाएं देने के बाद 8 सितम्बर, 1943 को बर्लिन में गोली मार दी। फ़्यूचिक तब मात्र चालीस वर्ष के थे। यहाँ हम जूलियस फ़्यूचिक की अमर कृति ‘फ़ांसी के तख्ते से’ का एक अंश दे रहे हैं, जो उन्होंने नात्सी जल्लाद के फ़न्दे की छाया में लिखी थी।

मध्य प्रदेश में प्रगतिशील पत्रिकाओं पर सरकारी डण्डा

फासिस्ट सत्ताएं कभी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं क्योंकि सारे फासिस्ट भीतर से कायर होते हैं। खासकर कला–साहित्य–संस्कृति से तो उनकी जानी दुश्मनी है। हिटलर का प्रचार मंत्री गोयबेल्स कहता था, ‘‘जब मैं संस्कृति शब्द सुनता हूं तो मेरा हाथ अपनी पिस्तौल पर चला जाता है।’’ हिटलर की भारतीय औलादें भी अपने बाप–दादों की इस गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।