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लुधियाना में मज़दूरों का विशाल रोष प्रदर्शन

5 अक्टूबर 2018 को मज़दूर संगठनों – कारख़ाना मज़दूर यूनियन, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, गोबिन्द रबड़ लिमिटेड मज़दूर संघर्ष कमेटी व पेण्डू मज़दूर यूनियन (मशाल) के नेतृत्व में बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए मज़दूरों ने डिप्टी कमिश्नर व पुलिस कमिश्नर के कार्यालयों पर रोषपूर्ण प्रदर्शन करके अपने अधिकार लागू करवाने के लिए माँगपत्र सौंपा। मज़दूरों ने कंगनवाल से लेकर डीसी कार्यालय तक 18 किमी लम्बा पैदल मार्च भी किया। मज़दूरों ने माँग की कि न्यूनतम वेतन बीस हज़ार मासिक हो, किये गये काम के पैसे हड़पने वाले व श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले मालिकों को सख़्त से सख़्त सजायें दी जायें, पन्द्रह सौ से अधिक मज़दूरों का कई महीनों का वेतन आदि का पैसा हड़प करके भागने वाले गोबिन्द रबड़ लिमिटेड के मालिक विनोद पोद्दार को गिरफ़्तार किया जाये और मज़दूरों का सारा पैसा दिलाया जाये, कारख़ानों में हादसों से सुरक्षा के प्रबन्ध, पहचान पत्र, हाजि़री, ईएसआई, ईपीएफ़, स्त्रियों को मर्दों के बराबर वेतन व अन्य सभी श्रम क़ानून लागू हों। मज़दूर बस्तियों में साफ़-सफ़ाई, पानी, बिजली, पक्की गलियाँ आदि सहूलियतें लागू हों।

लुधियाना में औद्योगिक मज़दूरों की फ़ौरी माँग के मसलों पर मज़दूर संगठनों की गतिविधि और इसका महत्व

लुधियाना उत्तर भारत के बड़े औद्योगिक केन्द्रों में से एक है। यहाँ के कारख़ानों और अन्य संस्थानों में लाखों मज़दूर काम करते हैं। ये मज़दूर भयानक लूट-दमन का शिकार हैं। यह लूट-दमन मालिकों की भी है और पुलिस-प्रशासन की भी। कारख़ाना मज़दूर यूनियन व टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन पिछले लम्बे समय से लुधियाना के मज़दूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने, लामबन्द व संगठित करने में लगे हुए हैं। पिछले एक दशक से भी अधिक समय में इन यूनियनों के नेतृत्व में कई छोटे-बड़े मज़दूर संघर्ष लड़े गये हैं। ये ज़्यादातर संघर्ष कारख़ानों के एक क्षेत्र या एक कारख़ाने से सम्बन्धित रहे हैं। इन संघर्षों का अपना महत्व है। लेकिन इस समय कुल लुधियाना के विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों को संघर्ष की राह पर लाने की ज़रूरत है। क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की जीवन परिस्थितियाँ लगभग एक जैसी हैं। ऐसी लामबन्दी मज़दूरों को संकीर्ण विभागवाद की मानसिकता से भी मुक्त करती है।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर पूँजीवादी शोषण के खि़लाफ़ संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया

इस वक़्त पूरी दुनिया में मज़दूर सहित अन्य तमाम मेहनतकश लोगों का पूँजीपतियों-साम्राज्यवादियों द्वारा लुट-शोषण पहले से भी बहुत बढ़ गया है। वक्ताओं ने कहा कि भारत में तो हालात और भी बदतर हैं। मज़दूरों को हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी भी नहीं है कि अच्छा भोजन, रिहायश, स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि ज़रूरतें भी पूरी हो सकें। भाजपा, कांग्रेस, अकाली दल, आप, सपा, बसपा सहित तमाम पूँजीवादी पार्टियों की उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियों के तहत आठ घण्टे दिहाड़ी, वेतन, हादसों व बीमारियों से सुरक्षा के इन्तज़ाम, पीएफ़, बोनस, छुट्टियाँ, काम की गारण्टी, यूनियन बनाने आदि सहित तमाम श्रम अधिकारों का हनन हो रहा है। काले क़ानून लागू करके जनवादी अधिकारों को कुचला जा रहा है।

धरना-प्रदर्शनों पर रोक व काले क़ानूनों के खि़लाफ़ लुधियाना के जनवादी जनसंगठन सड़कों पर उतरे

वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारें काले क़ानूनों के ज़रिये जनता के जनवादी अधिकारों, नागरिक अाज़ादियों को कुचलने की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। देश के पूँजीवादी-साम्राज्यवादी हुक्मरानों द्वारा जनता के खि़लाफ़ तीखा आर्थिक हमला छेड़ा हुआ है। अमीरी-ग़रीबी की खाई बहुत बढ़ चुकी है। महँगाई, बेरोज़गारी, बदहाली, गुण्डागर्दी, स्त्रियों, दलित, अल्पसंख्यकों पर जुल्म बढ़ते जा रहे हैं। इसके चलते लोगों में तीखा रोष है। जनसंघर्षों से घबराये हुक्मरान काले क़ानूनों, दमन, अत्याचार के ज़रिये जनता की अधिकारपूर्ण आवाज़ दबाने का भ्रम पाल रहे हैं। लेकिन जनता इन काले क़ानूनों, तानाशाह फ़रमानों से घबराकर पीछे नहीं हटने वाली। ये तानाशाह फ़रमान, काले क़ानून हुक्मरानों की मज़बूती का नहीं कमज़ोरी का सूचक हैं। लोग न सिर्फ़ अपने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे बल्कि इन दमनकारी फ़रमानों/काले क़ानूनों को भी वापिस करवाकर रहेंगे।

कारखानों में श्रम कानून लागू करवाने के लिए लुधियाना में ज़ोरदार रोष प्रदर्शन

पहले तीखी धूप और फिर घण्टों तक भारी बारिश के बावजूद मज़दूर कारखानों में हड़ताल करके डी.सी. कार्यालय पहुँचे। डी.सी. कार्यालय के गेट तक पहुँचने पर लगाए गए अवरोध मज़दूरों के आक्रोश के सामने टिक नहीं पाए। मज़दूरों ने गगनभेदी नारों के साथ भरत नगर चौक से डी.सी. कार्यालय तक पैदल मार्च किया। डी.सी. कार्यालय के गेट पर भारी बारिश के बीच मज़दूर धरने पर डटे रहे, ज़ोरदार नारे बुलन्द करते रहे, मज़दूर नेताओं का भाषण ध्यान से सुनते रहे। उन्होंने माँग की कि कारखानों में हादसों से मज़दूरों की सुरक्षा के पुख्‍़ता इंतज़ाम किए जाएँ, हादसा होने पर पीड़ितों को जायज़ मुआवज़ा मिले, दोषी मालिकों को सख़्त सज़ाएँ हों, मज़दूरों की उज़रतों में 25 प्रतिशत बढ़ोतरी की जाए, न्यूनतम वेतन 15000 हो, ई.एस.आई., ई.पी.एफ., बोनस, पहचान पत्र, हाजिरी कार्ड, लागू हो, मज़दूरों से कारखानों में बदसलूकी बन्द हो, स्त्री मज़दूरों के साथ छेड़छाड़, व भेदभाव बन्द हो, उन्हें समान काम का पुरुषों के समान वेतन दिया जाए।

लुधियाना के मज़दूर संघर्ष की राह पर

पहले से ही भयानक ग़रीबी-बदहाली का जीवन जीने पर मज़बूर मज़दूरों का बढ़ी महँगाई ने और भी बुरा हाल कर दिया है। मालिक मंदी का बहाना बनाकर मज़दूरों के वेतन में वृद्धि करने को तैयार नहीं हैं। श्रम क़ानूनों के तहत अन्य अधिकार (बोनस, ई.एस.आई., ई.पी.एफ. आदि) भी जिन मज़दूरों को मिल भी रहे हैं वे भी छीने जा रहे हैं। ऐसे में मज़दूरों में पूँजीपतियों के ख़ि‍लाफ़ रोष का बढ़ना स्वाभाविक है। टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन मज़दूरों के बीच में लगातार यह प्रचार कर रही है कि मंदी का बोझ मज़दूरों पर लादे जाने के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों को लड़ना होगा। मन्दी है तो पूँजीपति अपने मुनाफ़ों में कटौती करें मज़दूरों के वेतन व अन्य न्यायपूर्ण सुविधाओं पर डकैती न डालें।

तीन मज़दूरों की दर्दनाक मौतों का जिम्मेदार कौन?

लुधियाना ही नहीं बल्कि देश के तमाम कारखानों में ये हालात बन चुके हैं। कहीं कारखानों की इमारतें गिर रही हैं, कहीं खस्ताहाल ब्वायलर व डाईंग मशीनें फट रही हैं और कहीं कारखानों में आग लगने से मज़दूर जिन्दा झुलस रहें हैं। और सोचने वाली बात है कि कहीं भी मालिक नहीं मरता, हमेशा गरीब मज़दूर मरते हैं। हादसे होने पर सरकार, पुलिस, प्रशासन, श्रम अधिकारियों की मदद से मामले रफा-दफा कर दिए जाते हैं। बहुतेरे मामलों में तो मालिक हादसे का शिकार मज़दूरों को पहचानने से ही इनकार कर देते हैं। मज़दूरों को न तो कोई पहचान पत्र दिया जाता है और न ही पक्का हाजिरी कार्ड दिया जाता है। ई.एस.आई. और ई.पी.एफ. सहूलतों के बारे में तो मज़दूरों के बड़े हिस्से को पता तक नहीं है। इन हालातों में मालिकों के लिए मामला रफा-दफा करना आसान हो जाता है।