लुधियाना में औद्योगिक मज़दूरों की फ़ौरी माँग के मसलों पर
मज़दूर संगठनों की गतिविधि और इसका महत्व

बिगुल संवाददाता

लुधियाना उत्तर भारत के बड़े औद्योगिक केन्द्रों में से एक है। यहाँ के कारख़ानों और अन्य संस्थानों में लाखों मज़दूर काम करते हैं। ये मज़दूर भयानक लूट-दमन का शिकार हैं। यह लूट-दमन मालिकों की भी है और पुलिस-प्रशासन की भी। कारख़ाना मज़दूर यूनियन व टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन पिछले लम्बे समय से लुधियाना के मज़दूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने, लामबन्द व संगठित करने में लगे हुए हैं। पिछले एक दशक से भी अधिक समय में इन यूनियनों के नेतृत्व में कई छोटे-बड़े मज़दूर संघर्ष लड़े गये हैं। ये ज़्यादातर संघर्ष कारख़ानों के एक क्षेत्र या एक कारख़ाने से सम्बन्धित रहे हैं। इन संघर्षों का अपना महत्व है। लेकिन इस समय कुल लुधियाना के विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों को संघर्ष की राह पर लाने की ज़रूरत है। क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की जीवन परिस्थितियाँ लगभग एक जैसी हैं। ऐसी लामबन्दी मज़दूरों को संकीर्ण विभागवाद की मानसिकता से भी मुक्त करती है। इस वर्ष के अगस्त महीने के अन्त में दोनों संगठनों के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त मीटिंग हुई जिसमें दोनों यूनियनों द्वारा लुधियाना के औद्योगिक मज़दूरों की फ़ौरी माँगों पर साझी लामबन्दी मुहिम चलाने पर सहमति बनी। बाद में दोनों यूनियनों की नेतृत्वकारी कमेटियों ने भी इस मुहिम की योजना को अपनी-अपनी मीटिंगों में पारित किया। इस तरह ट्रेड यूनियनों के अन्दरूनी जनवाद की परम्परा को जारी रखा गया जिस पर ये यूनियनें अपने जन्म से ही पहरा देती आ रही हैं। इस तरह मज़दूरों पर नेताओं के फ़ैसले थोपे नहीं जाते। सभी ही महत्वपूर्ण फ़ैसले यूनियनों की नेतृत्वकारी कमेटियों द्वारा या यूनियनों के सक्रिय कार्यकर्ताओं की विस्तारित मीटिंगों में लिए जाते हैं।

दोनों यूनियनों ने एक महीना लम्बा अभियान चलाना था। इसके लिए बड़े स्तर पर प्रचार सामग्री छपवायी गयी। 63 हज़ार पर्चे व 800 पोस्टर छपवाये गये। इस प्रचार सामग्री में मज़दूरों की माँगों को उभारा गया। पर्चे व पोस्टर के ज़रिये मज़दूरों को 5 अक्टूबर को डीसी कार्यालय लुधियाना पहुँचने का आह्वान किया गया।

दोनों मज़दूर संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा लगभग एक महीना औद्योगिक मज़दूरों में प्रचार अभियान चलाया गया। इस अभियान में वेहड़ा/कालोनी मीटिंगें, नुक्कड़ सभाएँ, पैदल व साइकिल मार्च, मशाल जुलूस, व घर-घर प्रचार आदि प्रचार रूप अपनाये गये। यह अभियान लुधियाना के औद्योगिक क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में चलाया गया। हज़ारों मज़दूरों तक उनके माँग मसलों के बारे में पहुँच की गयी। पंजाब के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय पंजाब स्टूडेण्टस यूनियन व नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ता भी समय-समय पर इस अभियान में शामिल होते रहे। छात्रों-नौजवानों ख़ासकर मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से आने वालों का इस अभियान में शामिल होना विशेष महत्व रखता है। इससे इन छात्रों-नौजवानों के लूट-दमन भरे औद्योगिक मज़दूरों के जीवन को नजदीक़ से जानने व मज़दूरों से जुड़ने का अवसर मिलता है।

पिछले लम्बे समय में नोटबन्दी व फिर जीएसटी ने लुधियाना के छोटे उद्योग की कमर तोड़ दी है। बड़े पैमाने पर मज़दूरों का रोज़गार छिना है। जो रोज़गारशुदा मज़दूर हैं, उन्हें भी बहुत कम वेतन पर अपना ख़ून पसीना बहाना पड़ता है। इन दोनों यूनियनों के प्रचार अभियान के दौरान एक बात स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आयी कि मालिकों द्वारा लूट-दमन के खि़लाफ़ मज़दूरों में ज़बरदस्त रोष है। मज़दूर स्त्रियों में भी नाममात्र वेतन ख़ासकर मर्द मज़दूरों से भी कम वेतन मिलने पर ज़बरदस्त रोष देखने को मिला।

इस रोष की अभिव्यक्ति 5 अक्टूबर की रैली व प्रदर्शन में भी देखने को मिली। हज़ारों मज़दूर तेज़ धूप में भूखे-प्यासे 18 किलोमीटर पैदल चलकर डीसी कार्यालय पहुँचे। औद्योगिक महानगर लुधियाना में एक लम्बे अर्से के बाद मज़दूर शक्ति का ऐसा जलवा देखने को मिला।

5 अक्टूबर की इस मज़दूर रैली में ग्रामीण मज़दूरों के संगठन पेण्डू मज़दूर यूनियन (मशाल) के साथियों का शामिल होना ख़ास महत्व रखता है। भारत के मज़दूर वर्ग का एक बड़ा हिस्सा गाँवों में बसता है। शहरी मज़दूरों, ग्रामीण मज़दूरों और ग़रीब किसानों की एकता मज़दूर आन्दोलन के विकास के लिए विशेष महत्व रखता है। लुधियाना के आसपास के गाँव शहरी मज़दूरों की रिहायशी बस्तियाँ भी हैं। लुधियाना में बड़े पैमाने पर प्रवासी मज़दूर काम करते हैं। ये पूँजीपतियों के लिए सस्ती श्रम शक्ति का बड़ा स्रोत हैं। जब ये मज़दूर एकजुट होकर अपने अधिकार माँगते हैं, तो हुक्मरान वर्ग क्षेत्र के आधार पर मज़दूरों में फूट डालने की कोशिश करते हैं। इसलिए ग्रामीण मज़दूरों व ग़रीब किसानों को उनकी मन्दहाली के वास्तविक कारणों की समझदारी देना और प्रवासी व स्थानीय मज़दूरों की एकता के निर्माण का ख़ास महत्त्व है।

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2018


 

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