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जजों की सम्पत्ति सार्वजनिक करने या न करने के बारे में

पूँजीवादी शोषक व्यवस्था के सभी अंगों की तरह यहाँ की न्याय व्यवस्था भी पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त है। अदालतों में न्याय बिकता है, गवाह बिकते हैं, वकील बिकते हैं और जज भी बिकते हैं। हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के वकील जिनकी “प्रैक्टिस” ठीक-ठाक चलती है, वे करोड़पति बन चुके हैं। ऐसे में जजों की सम्पत्ति का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। अगर हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की अकूत सम्पत्ति के ब्योरे जनता के सामने आयेंगे तो निश्चय ही सवाल उठेगा कि उनके पास इतना धन कहाँ से आया? और इसका जवाब पाना आम जनता के लिए मुश्किल नहीं होगा। इसीलिए सरकार न्याय व्यवस्था की गन्दगी को परदे में ढँकना चाहती है।

अमानवीय शोषण-उत्पीड़न के शिकार तमिलनाडु के भट्ठा मज़दूर

भट्ठा मज़दूर भयंकर कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए अभिशप्त हैं। बिना आराम दिये लम्बे- लम्बे समय तक उनसे कठिन काम लिया जाता है। मज़दूरों ने बताया कि ज़्यादातर ईंट चैम्बरों में 3 बजे दोपहर से काम शुरू होता है जो 7 बजे शाम तक चलता है। उसके बाद 6 घण्टे का ब्रेक होता है और ब्रेक के बाद रात 1 बजे से दुबारा काम शुरू होता है जो 10-30 बजे सुबह तक चलता है। चूँकि ईंट को सुखाने के लिए ज़्यादा समय तक धूप में रखने की ज़रूरत होती है इसलिए मज़दूर केवल दिन में ही सो पाते हैं। ईंट ढुलाई करने वाले मज़दूरों का यही रुटीन है। दिन में उन्हें सिर्फ़ ग्यारह बजे से दो बजे तक का समय मिलता है, जिसमें वे खाना बना सकते हैं। तीन बजे से फिर काम पर लग जाना होता है।

एक सच्चा सर्वहारा लेखक -मक्सिम गोर्की

गोर्की ने अपने जीवन और लेखन से सिद्ध कर दिया कि दर्शन और साहित्य विश्‍वविद्यालयों, कॉलेजों में पढ़े-लिखे विद्वानों की बपौती नहीं है बल्कि सच्चा साहित्य आम जनता के जीवन और लड़ाई में शामिल होकर ही लिखा जा सकता है। उन्होंने अपने अनुभव से यह जाना कि अपढ़, अज्ञानी कहे जाने वाले लोग ही पूरी दुनिया के वैभव के असली हक़दार हैं। आज एक बार फिर साहित्य आम जन से दूर होकर महफ़िलों, गोष्ठियों यहाँ तक कि सिर्फ़ लिखने वालों तक सीमित होकर रह गया है। आज लेखक एक बार फिर समाज से विमुख होकर साहित्य को आम लोगों की ज़िन्दगी की चौहद्दी से बाहर कर रहा है।