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पंजाब में चुनावी पार्टियों की नशा-विरोधी मुहिम का ढोंग

इस व्यवस्था में जहाँ हर चीज़ के केन्द्र में सिर्फ़ मुनाफ़ा है और जहाँ इंसान की ज़रूरतें गौण हो जाती हैं – वहाँ हर वह धन्धा चलाया जाता है जिसमें अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके। भले ही यह पैसा लोगों की लाशें बिछाकर ही क्यों न कमाया जाये। पंजाब में फल-फूल रहा नशे का कारोबार और नशे में डूब रही जवानी इसका जीता-जागता सबूत है। नशा इस व्यवस्था में एक अतिलाभदायक धन्धा है। हर वर्ष सरकार (चाहे किसी भी पार्टी की हो) हज़ारों करोड़ रुपये की शराब लोगों को पिलाकर अपना ख़ज़ाना भरती है। नशीले पदार्थों की तस्करी के रूप में होने वाली कमाई इससे अलग है।

पंजाब सरकार के फासीवादी काले क़ानून को रद्द करवाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तीन विशाल रैलियाँ

पंजाब सरकार सन् 2010 में भी दो काले क़ानून लेकर आयी थी। जनान्दोलन के दबाव में सरकार को दोनों काले क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रैलियों के दौरान वक्ताओं ने ऐलान किया कि इस बार भी पंजाब सरकार को लोगों के आवाज़ उठाने, एकजुट होने, संघर्ष करने के जनवादी अधिकार छीनने के नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया जायेगा।

काले क़ानून के खि़लाफ़ रैली में औद्योगिक मज़दूरों की विशाल भागीदारी

पंजाब सरकार का यह काला क़ानून रैली, धरना, प्रदर्शन, आदि संघर्ष के रूपों के आगे तो बड़ी रुकावटें खड़ी करता ही है वहीं हड़ताल को अप्रत्यक्ष रूप से गैर-क़ानूनी बना देता है। इस क़ानून के मुताबिक हड़ताल के दौरान मालिक/सरकार को पड़े घाटे की भरपाई हड़ताली मज़दूरों और उनके नेताओं को करनी होगी। इसके साथ ही घाटा डालने के ज़रिए सार्वजनिक या निजी सम्पत्ति को पहुँचाये नुक्सान के “अपराध” में जेल और जुर्माने का सामना भी करना पड़ेगा। हड़ताल होगी तो घाटा तो होगा ही। इस तरह हड़ताल या यहाँ तक कि रोष के तौर पर काम धीमा करना भी गैरक़ानूनी हो जायेगा। हड़ताल मज़दूर वर्ग के लिए संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण रूप है। हड़ताल को गैरक़ानूनी बनाने की कार्रवाई और इसके लिए सख्त सजाएँ व साथ ही रैली, धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि करने पर नुक्सान के दोष लगाकर जेल, जुर्माने आदि की सख्त सज़ाएँ बताती हैं कि यह क़ानून मज़दूर वर्ग पर कितना बड़ा हमला है। मज़दूर वर्ग को इस हमले के खिलाफ़ अन्य मेहतनकशों के साथ मिलकर सख़्त लड़ाई लड़नी होगी। इसलिए पंजाब सरकार के काले क़ानून के खि़लाफ़ टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन व कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के कारख़ाना मज़दूरों का आगे आना महत्वपूर्ण बात है।

जनसंघर्ष को कुचलने के लिए पंजाब सरकार के फासीवादी काले कानून के खिलाफ़ पंजाब की जनता संघर्ष की राह पर

सरकार का मकसद जनता के संघर्षों को कुचलना ही है। केन्द्र व राज्य सरकारों की पूँजीपतियों के पक्ष में लागू की जा रही निजीकरण, उदारीकरण, विश्वीकरण की नीतियों की जनता की हालत बेहद खराब कर दी है। गरीबी, बेरोजगारी, महँगाई तेजी से बढ़ी है। इसके खिलाफ जनता के एकजुट रोष भी बढ़ता जा रहा है। हुक्मरान आने वाले दिनों में उठ खड़े होने वाले भीषण जनान्दोलनों से भयभीत है। जनता की आवाज सुनने की बजाए सरकारें जन आवाज को ही कुचल देना चाहती हैं। इसीलिए अब काले कानून बनाए जा रहे हैं। पंजाब सरकार द्वारा पारित यह नया काला कानून भारतीय हुक्मरानों के घोर जनविरोधी दमनकारी चरित्र को जाहिर करता है।

पंजाब सरकार फासीवादी काला क़ानून लागू करने की तैयारी में

पंजाब (सार्वजनिक व निजी जायदाद नुक़सान रोकथाम) बिल-2014’ की इन व्यवस्थाओं से इस क़ानून के घोर जनविरोधी फासीवादी चरित्र का अन्दाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। आगजनी, तोड़फोड़, विस्फोट आदि जैसी कार्रवाइयों के बारे में तो कहने की ज़रूरत नहीं कि ऐसी कार्रवाइयाँ सरकार, प्रशासन, पुलिस, नेता या अन्य कोई जिसके खि़लाफ़ प्रदर्शन किया जा रहा हो, वे ऐसी गड़बड़ियों को ख़ुद अंजाम देते रहे हैं और देंगे। अब इस क़ानून के ज़रिये सरकार ने पहले ही बता दिया है कि हर गड़बड़ का इलज़ाम अयोजकों-प्रदर्शनकारियों पर ही लगाया जायेगा। हड़ताल को इस क़ानून के दायरे में रखा जाना एक बेहद ख़तरनाक बात है। इस क़ानून में घाटे शब्द का भी विशेष तौर पर इस्तेमाल किया गया है। हड़ताल होगी तो नुक़सान तो होगा ही। इस तरह हड़ताल करने वालों को, इसके लिए सलाह देने वालों, प्रेरित करने वालों, दिशा देने वालों को तो पक्के तौर पर दोषी मान लिया गया है। बल्कि कहा जाना चाहिए कि हड़ताल-टूल डाऊन को तो इस क़ानून के तहत पक्के तौर पर जुर्म मान लिया गया है।

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न इलाक़ों में चुनावी राजनीति का भण्डाफोड़ अभियान

अभियान के दौरान कार्यकर्ताओं की टोलियाँ पिछले 62 वर्ष से जारी चुनावी तमाशे का पर्दाफ़ाश करते हुए बड़े पैमाने पर बाँटे जा रहे विभिन्न पर्चों, नुक्कड़ सभाओं, कार्टूनों और पोस्टरों की प्रदर्शनियों तथा नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये लोगों को बता रही हैं कि दुनिया के सबसे अधिक कुपोषितों, अशिक्षितों व बेरोज़गारों वाले हमारे देश में कुपोषण, बेरोज़गारी, महँगाई, मज़दूरों का भयंकर शोषण या भुखमरी कोई मुद्दा ही नहीं है! आज विश्व पूँजीवादी व्यवस्था गहराते आर्थिक संकट तले कराह रही है। ऐसे में किसी पार्टी के पास जनता को लुभाने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। सब जानते हैं कि सत्ता में आने के बाद उन्हें जनता को बुरी तरह निचोड़कर अपने देशी-विदेशी पूँजीपति आकाओं के संकट को हल करने में अपनी सेवा देनी है। सभी पार्टियों में अपने आपको पूँजीपतियों का सबसे वफ़ादार सेवक साबित करने की होड़ मची हुई है।

पंजाब सरकार ने बनाये दो ख़तरनाक काले कानून

यह व्यवस्था उत्पीड़ित जनता को अपनी असन्तुष्टि, आक्रोश व्यक्त करने के जनतान्त्रिक तरीके भी नहीं देना चाहती। लेकिन इतिहास बताता है कि काले कानूनों के द्वारा जनता की संगठित इच्छाशक्ति को कभी दबाया नहीं जा सका है। लाठी, गोली,जेल से कभी भी मेहनतकश लोगों की आवाज़ दबाई नहीं जा सकती। पर इतिहास से हुक्मरानों ने शायद आज तक कोई सबक नहीं सीखा है!

पंजाब राज्य बिजली बोर्ड तोड़ने की तैयारी

आखिर पंजाब सरकार ने पंजाब राज्य बिजली बोर्ड का निगमीकरण करने को हरी झण्डी दे दी है। इससे बिजली की पैदावार, सप्लाई और वितरण के काम के निजीकरण का रास्ता साफ हो गया है। वैसे बहुत लम्बे समय से पंजाब सरकार ऐसा करने की कोशिशें कर रही है, लेकिन बिजली बोर्ड के कर्मचारियों तथा किसान संगठनों के जबरदस्त विरोध के कारण वह ऐसा करने से हाथ पीछे खींचती रही। अब तक एक दर्जन से भी अधिक बार पंजाब सरकार बिजली बोर्ड को भंग करने की तारीखें आगे खिसका चुकी है, लेकिन लगता है कि इस बार उसने हर तरह के विरोध को बर्बरतापूर्वक कुचलकर इस काम को अंजाम देने की ठान ली है।

पंजाब में क्रान्तिकारियों की याद में कार्यक्रम

नौजवान भारत सभा ने महान शहीदों – भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के 79वें शहादत दिवस के अवसर पर पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों – लुधियाना, मण्डी गोबिन्दगढ़, माछीवाड़ा, पख्खोवाल, रायकोट, जगराओं, नवाँ शहर, जोनेवाल, खन्ना, अलोड़ गाँव, जोनेवाल गाँव में जोरदार प्रचार अभियान चलाकर हजारों लोगों तक शहीदों के विचार पहुँचाये। इस अवसर पर बड़े पैमाने पर पंजाबी और हिन्दी में पर्चा भी बाँटा गया। शहीद भगतसिंह की तस्वीर वाला एक आकर्षक पोस्टर पंजाब के अनेक शहरों और गाँवों में दीवारों पर चिपकाया गया। लुधियाना, मण्डी गोबिन्दगढ़ और माछीवाड़ा में क्रान्तिकारी नाटकों और गीतों के जरिये शहीदों को श्रध्दांजलि की गयी।

लोकतन्त्र की लूट में जनता के पैसे से अफसरों की ऐयाशी

जनता को बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने का सवाल उठता है तो केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें तक धन की कमी का विधवा विलाप शुरू कर देती हैं, लेकिन जनता से उगाहे गये टैक्स के दम पर पलने वाले नेता और नौकरशाही अपनी हरामखोरी और ऐयाशी में कोई कमी नहीं आने देते। इसी का एक ताजातरीन नमूना है पंजाब सरकार द्वारा 2006 में कृषि विविधता के लिए शुरू की गयी परियोजना।