जैक लण्डन के उपन्यास आयरन हील का एक अंश
एक सपने का गणित

TheIronHeel500

अर्नेस्ट के उद्घाटन से लोग मानो भौंचक रह गए। इस बीच उसने फिर शुरू कियाः

‘‘आप में से दर्जनों ने कहा कि समाजवाद असंभव है। आपने असंभाविता पर जोर दिया है। मैं अनिवार्यता को चिन्हित कर रहा हूं। न केवल यह अनिवार्य है कि आप छोटे पूंजीपति विलुप्त हो जाएंगे-बड़े पूंजीपति और ट्रस्ट भी नहीं बचेंगे। याद रखो विकास की धारा पीछे नहीं लौटती। वह आगे ही बढ़ती जाती है, प्रतियोगिता से संयोजन की ओर, छोटे संयोजनों से बड़े संयोजनों की ओर, फिर विराट संयोजन की ओर और फिर समाजवाद की ओर जो सबसे विराट संयोजन है।

‘आप कह रहे हैं कि मैं सपना देख रहा हूं। ठीक है मैं सपने का गणित प्रस्तुत कर रहा हूं और यहीं मैं पहले से आपको चुनौती दे रहा हूं कि आप मेरे गाण्ति को गलत साबित करें। मैं पूंजीवादी व्यवस्था के ध्वंस की अनिवार्यता प्रमाणित करूंगा और मैं इसे गणितीय ढंग से प्रमाणित करूंगा। मैं शुरू कर रहा हूं। थोड़ा धैर्य रखें, अगर शुरू में यह अप्रासंगिक लगे।

‘पहले हम किसी एक औद्योगिक प्रक्रिया की खोजबीन करें और आप मेरी किसी बात से असहमत हों, फौरन हस्तक्षेप कर दें। एक जूते की फैक्ट्री को लें। वहां लेदर के जूते बनाये जाते है। मान लीजिए दो सौ डॉलर के। हुआ क्या? चमड़े के दाम सौ डालर में सौ डालर और जुड़ गया। कैसे? आइए देखें।

पूंजी और श्रम ने जो सौ डालर जोड़े। पूंजी ने फैक्टरी, मशीनें जुटाई, सारे खर्चे किए। श्रम ने श्रम जुटाया। दोनों के संयुक्त प्रयास से सौ डालर मूल्य जुड़़ा। आप अब तक सहमत हैं?’

सब ने स्वीकार में गर्दन हिलाई।

‘पूंजी और श्रम इस सौ डालर का विभाजन करते हैं। इस विभाजन के आंकड़े थोड़े महीन होंगे। तो आइए मोटा-मोटा हिसाब करें। पूंजी और श्रम पचास-पचास डालर बांट लेते हैं। हम इस विभाजन में हुए विवाद में नहीं पड़ेंगे। यह भी याद रखें कि यही प्रक्रिया सभी उद्योगों में होती है। ठीक है न?’

फिर सब ने स्वीकृति में गर्दन हिलायी।

‘अब मान लीजिए मजदूर जूते खरीदना चाहें तो पचास डालर के ही जूते खरीद सकते हैं। स्पष्ट है न?’

‘अब हम किसी एक प्रक्रिया की जगह अमरीका की सभी प्रक्रियाओं की कुल प्रक्रिया को लें जिसमें चमड़ा, कच्चा माल, परिवहन सब कुछ हो। मान लें अमरीका में साल भर में चार अरब के धन का उत्पादन होता है। तो उस दौरान मजदूरों ने 2 अरब की मजदूरी पाई। चार अरब का उत्पादन जिसमें से मजदूरों को मिला-दो अरब-इसमें तो कुछ भी कभी नहीं मिल पाता। पर चलिए मान लेते हैं कि आधा यानी दो अरब मिला मजदूरों को। तर्क तो यही कहेगा कि मजदूर दो अरब का उपयोग कर सकते हैं। पर दो अरब का हिसाब बाकी है जो मजदूर नहीं पा सकता और इसलिए नहीं खर्च कर सकता।’

‘मजदूर अपने दो अरब भी खर्च नहीं करता- क्योंकि तब वह बचत खाते में जमा क्या करेगा? कोबाल्ट बोला।’

‘मजदूर का बचत खाता एक प्रकार का रिजर्व फंड होता है जो जितनी जल्दी बनता है उतनी ही जल्दी खत्म हो जाता है। यह बचत वृद्धावस्था, बीमारी, दुर्घटना और अन्त्येष्टि के लिए की जाती है। बचत रोटी के उस टुकडे़ की तरह होती है जिसे अगले दिन खाने के लिए बचा कर रखा जाता है। मजदूर वह सारा ही खर्च कर देता है जो मजदूरी में पाता है।

‘दो अरब पूंजीपति के पास चले जाते हैं। खर्चों के बाद सारे का क्या वह, उपभोग कर लेता है? क्या अपने सारे दो अरब का वह उपभोग करता है।

अर्नेस्ट ने रुककर कई लोगों से दो टूक पूछा। सबने सिर हिला दिया।

‘मैं नहीं जानता।’ एक ने साफ-साफ कह दिया।

‘आप निश्चित ही जानते हैं। क्षण भर के लिए जरा सोचिए। अगर पूंजीपति सबका उपभोग कर ले तो पूंजी बढ़ेगी कैसे? अगर आप देश के आर्थिक इतिहास पर नजर डालें तो देखेंगे कि पूंजी लगातार बढ़ती गई है। इसलिए पूंजीपति सारे का उपभोग नहीं करता। आपको याद है जब इंग्लैंड के पास हमारी रेल के अधिकांश बॉन्ड थे। फिर हम उन्हें खरीदते गए। इसका क्या मतलब हुआ? उन्हें उस पूंजी से खरीदा गया जिसका उपभोग नहीं हुआ था। इस बात का क्या मतलब है कि युनाइटेड स्टेट्स के पास मैक्सिको, इटली और रूस के करोड़ों बॉन्ड हैं? मतलब है कि वे लाखों-करोड़ों वह पूंजी है जिसका पूंजीपतियें ने उपभोग नहीं किया। इसके अलावा पूंजीवाद के प्रारम्भ से ही पूंजीपति ने कभी अपना सारा हिस्सा खर्च नहीं किया है।’

अब हम मुख्य मुद्दे पर आएं। अमरीका में एक साल चार अरब धन का उत्पादन होता है। मजदूर उसमें से दो अरब पाता है और खर्च कर देता है। पूंजीपति शेष दो अरब खर्च नहीं करता। भारी हिस्सा बचा रहा जाता है। इस बचे अंश का क्या होता है? इससे क्या हो सकता है? मजदूर इसमें से कुछ नहीं खर्च कर सकता क्योंकि उसने तो अपनी सारी मजदूरी खर्च कर दी है। पूंजीपति जितना कर सकता है, करता है, फिर भी बचा रह जाता है। तो इसका क्या हो? क्या होता है?

‘इसे विदेशों में बेच दिया जाता है।’ कोबाल्ट ने एक जवाब ढूंढा।

‘एकदम ठीक! इसी शेष के लिए हमें विदेशी बाजार की जरूरत होती है। उसे विदेशों में बेचा जाता है। वही किया जा सकता है। उसे खर्चने का और उपाय नहीं है। और यही उपर्युक्त अतिरिक्त धन जो विदेशों में बेचा जाता है हमारे लिए सकारात्मक व्यापार संतुलन कहलाता है। क्या हम यहां तक सहमत है?’

‘ इस व्यवसाय के क,ख,ग पर बात करना वक्त जाया करना है। हम सब इसे समझते हैं।’ काल्विन ने शुष्कता से कहा।

‘इस सुप्रस्तुत क,ख,ग से ही मैं आपको चकित कंरूगा। यहीं। अमरीका एक पूंजीवादी देश है जिसने अपने संसाधनों का विकास किया है। अपनी पूंजीवादी औद्योगिक व्यवस्था से उसके पास काफी धन बच जाता है जिसका वह उपभोग नहीं कर पाता। उसे विदेशों में खर्च करना जरूरी है। यही बात दूसरे पूंजीवादी देशों के बारे में भी सच है अगर उनके संसाधन विकसित है। यह न भूलें कि वे आपस में खूब व्यापार करते हैं। फिर भी अतिरिक्त काफी बच जाता है। इन देशों में मजदूर सारी मजदूरी खर्च कर देता है और इस बचे हुए अतिरिक्त को खरीदने में असमर्थ है। इन देशों के पूंजीपति जितना भी उपयोग कर सकते हैं करते हैं फिर भी बहुत कुछ बच जाता है। इस अतिरिक्त धन को वे एक दूसरे को नहीं दे सकते। फिर उसका वे क्या करें?’

‘उन्हें अविकसित संसाधनों वाले देशों को बेच दें।’ कोबाल्ट बोला।

‘एकदम यही ठीक है। मेरा तर्क इतना स्पष्ट और सीधा है कि आप स्वयं मेरा काम आसान कर रहे हैं। अब अगला कदम! मान लिया युनाइटेड स्टेट्स अपने अतिरिक्त धन को एक अविकसित देश जैसे ब्राजील में लगाता है। याद रखें यह अतिरिक्त उस व्यापार से अलग है जिसका इस्तेमाल हो चुका है। तो उसके बदले में ब्राजील से क्या मिलता है?’

‘सोना’ कोबाल्ट बोला।

‘लेकिन दुनिया में सोना तो सीमित है!’ अर्नेस्ट ने एतराज किया।

‘सोना प्रतिभूति बॉन्ड आदि के रूप में।’ कोवाल्ट ने अपने को सुधारा।

आप पहुंच गए। ब्राजील से अमरीका अपने अतिरिक्त धन के बदले में लेता है सिक्योरिटी और बॉन्ड। क्या मतलब हुआ इसका? इसका मतलब है अमरीका ब्राजील में रेल, फैक्ट्रियों, खदानों और जमीनों का मालिक बन सकता है। और तब इसका क्या मतलब हुआ?’

कोवाल्ट सोचने लगा पर नहीं सोच पाया और नकारात्मक सिर हिला दिया।

‘मैं बताता हूं। इसका मतलब हुआ ब्राजील के संसाधन विकसित किए जा रहे हैं। जब ब्राजील पूंजीवादी व्यवस्था में अपने संसाधन विकसित कर लेगा तो उसके पास भी अतिरिक्त धन बचने लगेगा। क्या वह इसे अमरीका में लगा सकता है? नहीं क्योंकि उसके पास तो अपना ही अतिरिक्त धन है। तो क्या अमरीका अपना अतिरिक्त धन पहले की तरह ब्राजील में लगा सकता है? नहीं; क्योंकि अब तो स्वयं ब्राजील के पास अतिरिक्त धन है।

‘तब क्या होता है? इन दोनों को तीसरा अविकसित देश ढूंढना पड़ेगा जहां वे अपना सरप्लस उलीच सकें। इस क्रम से उनकें पास भी अतिरिक्त धन बचने लगेगा। महानुभाव गौर करें धरती इतनी बड़ी तो है नहीं। देशों की संख्या सीमित है। तब क्या होगा जब छोटे से छोटे देश में भी कुछ अतिरिक्त बचने लगेगा।’

उसने रुककर श्रोताओं पर एक नजर डाली। उनके चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं। उसे मजा आया। थोड़ा डर भी झांक रहा था। जितने बिम्ब खींचे थे अर्नेस्ट ने उनमें से कई उन्हें डरा रहे थे।

‘मिस्टर काल्विन हमने ए.बी.सी. से शुरू किया था। मैंने अब सारे अक्षर सामने रख दिए हैं। कितना आसान है। यही तो है इसका सौन्दर्य। आपको उत्तर सूझ रहा होगा। क्या होगा जब हर देश के पास अतिरिक्त बचा रह जाएगा और तब आपकी पूंजीवादी व्यवस्था का क्या होगा?’

काल्विन का दिमाग परेशान हो रहा था। वह अर्नेस्ट की बातों में गलती ढूंढ़ने में लगा हुआ था। अर्नेस्ट ने ही फिर शुरू कियाः

‘मैं अपनी बात संक्षेप में दोहरा दूं। हमने एक विशेष औद्योगिक प्रक्रिया से बात शुरू की थी। एक जूता फैक्टरी से। हमने पाया कि जो हाल वहां है वही सारे औद्योगिक जगत में है। हमने पाया कि मजदूर को उत्पादन का एक हिस्सा मिलता है जिसे वह पूरी तरह खर्च कर देता है और पूंजीपति पूरा खर्च नहीं कर पाता। बचे हुए अतिरिक्त धन के लिए विदेशी बाजार अनिवार्य है। इस निवेश से वह देश भी अतिरिक्त पैदा करने में समर्थ हो जाता है। जब एक दिन सभी इसी स्थिति में पहुँच जाएंगे तो अंततः इस अतिरिक्त का क्या होगा? मैं एक बार फिर पूछता हूं क्या होगा?

किसी ने जवाब नहीं दिया।

‘काल्विन महोदय!’

‘मुझे समझ नहीं आ रहा।’ उसने स्वीकारा।

‘मैंने तो यह सपने में भी नहीं सोचा था पर यह तो एकदम स्पष्ट लग रहा है।’

ऐसमुनसेन ने कहा।

मैं कार्लमार्क्स के अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्‍त की इतनी सरल प्रस्तुति सुन रही थी और मैं स्तब्ध और चकित बैठी थी।

अर्नेस्ट ने कहाः ‘मैं आपको एक रास्ता सुझाता हूं-इस अतिरिक्त को समुद्र में फेंक दीजिए। हर साल लाखों-करोड़ों के जूते-कपड़े-गेहूं और अन्य उत्पाद समुद्र में फेंक दें। हल नहीं हो जाएगी समस्या?’

‘हो तो जाएगी पर ऐसी बात करना बकवास है।’ काल्विन ने कहा।

अर्नेस्ट उस पर टूट पड़ा।

‘जिसकी आप वकालत कर रहे थे, आप मशीन भंजक लोग पूर्वजों की लौटने की बात कर रहे थे न? क्या यह बात उससे ज्यादा बकवास है? आखिर अतिरिक्त धन की समस्या के समाधान का क्या उपाय है आपके पास? एक हल है कि अतिरिक्त का उत्पादन ही न हो। पर कैसे? आदिम उत्पादन पद्धति ताकि अतिरिक्त का उत्पादन ही असंभव हो जाय?

काल्विन ने मुखरस निगला। बात स्पष्ट हो गई थी। उसने गला साफ किया और कहाः

‘तुम सही हो। मैं मान गया तुम्हारी बात। यह बकवास है। लेकिन हमें कुछ करना चाहिए। हम मध्यवर्ग वालों के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न है। हम अपने ध्वंस को नकारते हैं। हम बकवास को ही चुन रहे हैं। और अपने पूर्वजों के मुद्दे और खर्चीले तरीके की ओर लौटना चाहते हैं। हम उद्योग को ट्रस्टों के पहले वाली स्थिति में ले जाएंगे। हम तोड़ डालेंगे मशीनों को। क्या करोगे तुम?’

‘लेकिन आप मशीने तोड़ ही नहीं सकते, विकास की धारा को पीछे मोड़ ही नहीं सकते। आपके खिलाफ दो शक्तियां हैं हरेक तुम्हारे मध्यवर्ग से अधिक शक्तिशाली। बड़े पूंजीपति या ट्रस्ट तुम्हें पीछे लौटने ही नहीं देंगे। वे नहीं चाहते कि मशीन टूटें। ट्रस्टों से भी बड़ा और अधिक शक्तिशाली है मजदूर वर्ग। वह भी मशीन नहीं तोड़ने देगा। मशीनों के साथ इस दुनिया की मिल्कियत तो पूंजी और श्रम के बीच है। युद्ध का यही स्वरूप है। दोनो में से कोई भी मशीनों का ध्वंस नहीं चाहता। दोनों ही मशीनों का मालिक बनना चाहते हैं। इस युद्ध में मध्यवर्ग का कोई स्थान नहीं हैं। दो विराटों के बीच मध्यवर्ग एक बौना है। ध्वस्त हो मध्‍यवर्ग-आप देख नहीं रहे आप दो पाटों के बीच पीस रहे हैं। शुरू हो चुकी है पिसाई।

‘हमने आपको पूंजीपति वर्ग का अनिवार्य विनाश का गणित समझा दिया है। जब हर देश के पास ऐसा अतिरिक्त इक्ट्ठा हो जाएगा जिसका उपभोग असंभव होगा। तब अपने ही द्वारा शुरू की गई मुनाफे की व्यवस्था चरमराकर बैठ जाएगी। उस समय मशीनों का भंजन नहीं होगा। उस वक्त स्वामित्व का संघर्ष होगा। अगर श्रम जीतता है तो तुम्हारे लिए आसानी होगी। अमरीका ही नहीं सारी दुनिया एक नए और शानदार युग में प्रवेश करेगी। मशीनें आदि आदमी को पीस देने की बजाय उसके जीवन को पहले से अधिक खुशहाल, बेहतर और भद्र बनाएंगी। ध्वस्त मध्यवर्ग और मेहनतकश-तब केवल मेहनतकश होंगे, मशीनों के उत्पादन के न्यायपूर्ण विभाजन में भागीदारी करेंगे। हम सब मिलकर और मशीने बनाएंगे। कोई अतिरिक्त उत्पादन नहीं होगा जिसका उपभोग न हो, क्योंकि मुनाफा पैदा ही नहीं होगा।’

‘पर मान लो मशीनों और दुनिया के स्वामित्व के संघर्ष में पूंजीपति जीत जाएं।’ कोवाल्ट ने पूछा।

‘तब हम और मजदूर और आप सब इतिहास के किसी भी कमाऊ और कुख्यात अधिनायक की तरह के क्रूर अधिनायकत्व के इस्पाती जूतों के नीचे रौंद दिए जाएंगे। इस अधिनायक का उपयुक्त नाम होगा ‘आयरन हील’।

देर तक चुप्पी बनी रही। सभी कुछ गंभीर चिंतन में लगे थे।

‘पर तुम्हारा यह समाजवाद का एक सपना है, सपना।’ काल्विन ने दोहराया।

‘मैं आपको कुछ दिखा दूंगा जो सपना नहीं है। उस ‘कुछ’ को मैं कुलीनतंत्र कहूंगा। आप चाहें तो इसे धनिकतंत्र कह सकते हैं। हमारा मतलब एक ही होगा-बड़े पूंजीपति या ट्रस्ट। देखें कि आज शक्ति कहां केन्द्रित है। और उसके लिए समाज का वर्ग विभाजन कर लें।’

‘समाज में तीन बड़े वर्ग हैं। पहला। धनिक वर्ग जिसमें बैंकर, रेल के मालिक, कार्पोरेशनों के डायरेक्टर और ट्रस्टों के मालिक आते हैं। दूसरा है मध्यवर्ग, आप महानुभाव का वर्ग, जिसमें फार्मर, व्यवसायी, छोटे उत्पादक और पेशेवर लोग आते हैं। और अंत में है मेरा वर्ग- सर्वहारा जिसमें मजदूर आते हैं।

‘आप मानेंगे ही कि आज अमरीका में धन का स्वामित्व ही शक्ति का सारभूत उत्स है। इस पर तीनों वर्ग का कैसा अधिकार है? आंकड़े बताते हैं-धनिकों के पास सड़सठ अरब डालर की सम्पति है। इनकी संख्या एक प्रतिशत से भी कम है पर इनके पास  सत्तर प्रतिशत सम्पति है। मध्‍यवर्ग के पास पच्चीस प्रतिशत सम्पदा है। अब बचे सर्वहारा जिसके पास चार अरब है। काम करने वालों में इनका अनुपात सत्तर प्रतिशत है पर उनके पास चार प्रतिशत ही सम्पदा है। तो सत्ता कहां है?’

‘तुम्हारे ही आंकड़े के मुताबिक हम मध्यवर्ग मजदूरों से अधिक शक्तिशाली है।’ ऐसमुनसेन ने टिप्पणी की।

‘हमें कमजोर बताने से आप धनिकों के रूबरू शक्तिशाली नहीं हो जाएंगे। और फिर मैंने अभी खत्म नहीं की है अपनी बात। सम्पदा से भी बड़ी है एक शक्ति जो इसलिए ज्यादा बड़ी है कि उसे छीना नहीं जा सकता। हमारी शक्ति, सर्वहारा की शक्ति, हमारी मांसपेशियों में है, हमारे हाथ में है जो वोट डालते हैं, हमारी उंगालियों में है जो बन्दूक का घोड़ा दबा सकती हैं। यह शक्ति हमसे छीनी नहीं जा सकती। यह आदिम शक्ति है, यह जीवन की नैसर्गिक शक्ति है। यह धन की शक्ति से बड़ी शक्ति है और इस धन को छीना नहीं जा सकता।

‘लेकिन आपकी शक्ति आप से अलग की जा सकती है, छीनी जा सकती है। अन्ततः यह छीन ली जाएगी। अभी भी धनतंत्र आप से छीन ही रहा है। और तब आप मध्यवर्ग नहीं रह जाएंगे। आप नीचे उतरकर हमारी तरह सर्वहारा हो जाएंगे। मजे की बात यह है कि तब आप हमारी शक्ति बढ़ाएंगे। हम आप भाइयों का स्वागत करेंगे और कन्धे से कन्धा मिलकर मानवता की सेवा करेंगे।

‘आपने देखा कि मजदूर के पास कुछ भी ठोस नहीं है जिसे लूटा जा सके। देश की सम्पदा में उसके हिस्से हैं कुछ कपड़े और घर का थोड़ा फर्नीचर और कभी-कभी एक मामूली सा मकान। पर आपके पास तो है ठोस दौलत-चौबीस अरब और धनिकतंत्र यह सब छीन लेगा। वैसे पूरी संभावना है कि इसके पहले सर्वहारा छीन लेगा यह सब। आपको अपनी हालात दिखाई नहीं देती? मध्‍यवर्ग बाघ और शेर के बीच एक हिलता-डुलता खरगोश मात्र है। अगर एक नहीं दबोचता तो दूसरा खा लेगा। अगर धनिकतंत्र पहले निगल लेता है तो याद रखें कुछ ही समय की बात है सर्वहारा उसे भी निगल लेगा।

‘आपकी वर्तमान सम्पदा भी आपकी शक्ति का सही आकलन नहीं करती। आपके धन की शक्ति आज खाली कौड़ी के बराबर है। तभी तो आप युद्ध का आह्वान कर रहे हैं- ‘पूर्वजों की पद्धति की ओर’। पर उसमें दम नहीं है। आप अपनी अशक्तता जानते हैं कि आपकी शक्ति खोखली है। मैं आपको दिखाउंगा इसका खोखलापन।

‘फार्मरों की क्या शक्ति है? आधे तो गुलाम ही हैं क्योंकि वे तो बस काश्तकार हैं या गिरवी हैं। एक तरह से सभी गिरवी हैं, इस कारण कि उनके उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने के सारे उपकरणों- रेलें, कोल्डस्टोरेज,जहाज, गोदाम भी- पर ट्रस्टों का नियंत्रण है। सबसे बड़ी बात तो यह कि पूंजीपतियों का ही बाजार पर नियंत्रण है। इस मामले में सारे फार्मर असहाय हैं। जहां तक उनकी राजनीतिक और सरकारी शक्ति का सवाल है उस पर बाद में बात करते हैं, सारे मध्यवर्ग की राजनीतिक और सरकारी शक्ति के संदर्भ में।

‘दिन-रात पूंजीपति फार्मरों को चूसते हैं- उसी तरह जैसे उन्होंने मिस्टर काल्विन और दूसरे डेरीवालों को चूसा है। उसी तरह व्यवसायी चूसते रहते हैं। आपको याद है कैसे छः महीने में ही न्यूयार्क सिटी के चार सौ सिगार स्टोरों को टुबैको ट्रस्ट ने चूस लिया था? मुझे बताने की जरूरत नहीं आप सब जानते ही हैं कि रेलरोड ट्रस्ट का आज सारी कोयला खदानों पर कब्जा है। क्या स्टैण्डर्ड आयल ट्रस्ट बीसों जहाजरानी कम्पनियों की मालिक नहीं है? क्या उसका तांबे पर नियंत्रण नहीं है और सहायक उद्योग के रूप में वे दूसरे काम नहीं करते? आज अमरीका में दस हजार शहर-कस्बे हैं जिसमें रोशनी स्टैन्डर्ड आयल की वजह से होती है। और इतने ही शहरों में उनके अन्दर और एक दूसरे के बीच परिवहन पर उसी का नियंत्रण है। ऐसे कामों में लगे हजारों छोटे पूंजीपतियों का सफाया हो चुका है। पता है न? उसी तरह आप भी जाने वाले हैं।

‘छोटे उत्पादक भी फार्मर की ही तरह है। इन्हें आज कुछ दिन का मेहमान बना दिया गया है। इसी तरह पेशेवर और कलाकार लोग भी एक तरह से कृषि दास ही हो हैं। राजनीतिक लोग भी अनुचर ही हैं। मिस्टर काल्विन आप रात-दिन एक कर फार्मरों और मध्‍यवर्ग को एक नयी राजनीति‍क पार्टी तले क्‍यों नहीं संगठित करते? क्‍योंकि पूरानी  पार्टियों के राजनीतिज्ञ आपकी आदर्शवादिता को कुछ नहीं समझते। और ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि वे भी अनुचर मात्र हैं, जरखरीद, धनिकतंत्र के।

‘मैंने पेशेवेर लोगों और कलाकारों को कृषिदास कहा। और क्या हैं वे? प्रोफेसर, पादरी, संपादक धनिकतंत्र के ही मुलाजिम हैं, उनका काम है वैसे ही विचारों का प्रचार जो धनिकतंत्र के विरूद्ध न हों और धनिकतंत्र की प्रशंसा में हों। जब भी वे धनिकतंत्र के विरोधी विचारों का प्रचार करते हैं उन्हें सेवामुक्त कर दिया जाता है और अगर उन्होंने संकट के दिनों के लिए कुछ बचाकर नहीं रखा है तो उनका सर्वहाराकरण हो जाता है। वे या तो नष्ट हो जाते हैं या मजदूरों के बीच आन्दोलनकर्ता की तरह काम करने लगते हैं। यह न भूलें कि प्रेस, चर्च और विश्वविद्यालय ही जनमत को गढ़ते हैं, देश की प्रक्रिया को दिशा देते हैं। जहां तक कलाकारों का सवाल है वे धनतंत्र की रुचियों की तुष्टि में खपते हैं।

पर धन अकेले तो वास्तविक शक्ति बनता नहीं, वह शक्ति का साधन है और शक्ति तो सरकारी होती है। सरकार को कौन नियंत्रित करता है? दो करोड़ सर्वहारा? आप भी इस बात पर हंस पड़ेंगे। अस्सी लाख विभिन्न पेशों में लगा मध्‍यवर्ग? सर्वहारा की ही तरह भी नहीं। फिर कौन? ढाई लाख की संख्या की संख्या वाला धनिकतंत्र। पर यह ढाई लाख भी सरकार को नियंत्रित नहीं करता, हालांकि वह विशिष्ट सेवा करता है। धनिकतंत्र का दिमाग सरकार को नियंत्रित रखता है और यह दिमाग है शक्तिशाली लोगों के सात ग्रुप। और यह नहीं भूलना चाहिए कि ये ग्रुप आजकल एकदम तालमेल के साथ काम कर रहे हैं।

‘मैं आपको उनमें से बस एक-रेलरोड ग्रुप के बारे में बताऊं’। उसके पास लोगों को कोर्ट में पराजित करने के लिए चालीस हजार वकील हैं। उसने अनगिनत जजों, बैंकरों, संपादकों, मंत्रियों और यूनिवर्सिटी वालों और विधायकों को फ्री पास दे रखे हैं। हर राजधानी में उनकी ऐशोआराम से पोसी जा रही लॉबी है। उसके पास हजारों दलाल और छुटभैये नेता हैं जो कहीं भी अपने आकाओं के हित में छोटे-बड़े किसी तरह के सही-गलत काम के लिए जुटे रहते हैं।

‘महानुभाव मैंने तो सात में से बस एक ग्रुप का खाका खींचा है। आपकी चौबीस अरब की सम्पति पच्चीस सेन्ट के बराबर भी सरकारी शक्ति नहीं प्रदान करती। वह खोखली कौड़ी है और वह भी छिनने वाली है। आज धनिकतंत्र सर्वशक्तिमान है। आज उसके कब्जे में है, सीनेट, कांग्रेस, अदालतें और राज्यों की विधायिकाएं। इसलिए वह अपने अनुसार कानून बनवाता है। यही नहीं, कानून के पीछे उसे लागू करवा पाने वाली शक्ति होनी चाहिए। उसके लिए उसके पास है पुलिस, फौज, नौसेना और अंत में मिलिशिया, जिसका मतलब है हम, आप, सब।

कुछ खास बहस नहीं हुई। और डिनर खत्म हो गया। इजाजत मांगते वक्त भी चुप्पी-सी बनी रही। लग रहा था समय का अहसास उन्हें डरा गया था।

काल्विन ने अर्नेस्ट से कहाः

‘स्थिति वास्तव में खराब है। जैसे तुमने उसे पेश किया उससे मेरा कोई खास विवाद नहीं। मेरी असहमति बस मध्‍यवर्ग के अंत को लेकर है। हम बच जाएंगे और ट्रस्टों को उखाड़ फेकेंगे।’

‘और पूर्वजों की राह लौट जाएंगे।’ अर्नेस्ट ने बात पूरी कर दी।

‘फिर भी यह मशीन भंजन से तो कम है और सब बकवास है इतना तो मैं जानता हूं। लेकिन करें क्या? जीवन ही बकवास हो गया है- धनतंत्र की चालों के कारण। कुछ भी हो हमारा मशीन भंजन कम से कम व्यावहारिक और संभव है जो तुम्हारा सपना नहीं। तुम्हारा समाजवादी सपना—-हुंह बस सपना है। हम तुम्हारे पीछे नहीं जा सकते।’

‘काश आप महानुभाव थोड़ा विकास और समाजशास्त्र जानते। हमारी काफी कठिनाइयां कम हो जातीं, अगर आप जानते होते।’ अर्नेस्ट ने हाथ मिलाते हुए कहा।

 

मज़दूर बिगुल, नवम्‍बर-दिसम्‍बर  2012

 


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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