लुधियाना की सड़कों पर हज़ारों मज़दूरों के गुस्से का लावा फूटा
रोज़-रोज़ के शोषण, अपमान और उत्पीड़न के विरुद्ध लाखों प्रवासी मज़दूरों में बरसों से असन्तोष सुलग रहा है

लखविन्दर

4 दिसम्बर को लुधियाना की सड़कों पर हज़ारों मज़दूरों का प्रदर्शन और पुलिस द्वारा उनके दमन की घटना सारे देश के अख़बारों और ख़बरिया टीवी चैनलों की सुर्खियों में रही। लेकिन मज़दूरों के इस आन्दोलन और उनके दमन की सही-सही तस्वीर किसी ने पेश नहीं की। किसी ने प्रदर्शनकारी मज़दूरों को उप्रदवी कहा तो किसी ने उत्पाति। एक मशहूर पंजाबी अख़बार ने मज़दूरों को दंगाकारियों का नाम दिया। एक अख़बार ने मज़दूरों के प्रदर्शन को बवालियों द्वारा की गयी हिंसा और तोड़-फोड़ कहा। एक अंग्रेज़ी अख़बार ने लुधियाना की इन घटनाओं को प्रवासी मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच की हिंसा कहकर ग़लत प्रचार किया। उन पूँजीवादी अख़बारों ने, जो मज़दूरों के पक्ष में लिखने वाले महसूस भी हुए, यूपी-बिहार के क्षेत्रीय नज़रिये से ही लिखा और घटनाक्रम को इस तरह पेश किया जैसे यह यू.पी.-बिहार के नागरिकों और पंजाब के नागरिकों के बीच की लड़ाई हो। इस घटनाक्रम का सही-सही ब्योरा और उसके पीछे के असल कारण इन पूँजीवादी अख़बारों और टी.वी. चैनलों से लगभग ग़ायब रहे; और इन्होंने कुल मिलाकर लोगों को ग़लत जानकारी मुहैया कराकर मज़दूरों के इस विरोध प्रदर्शन को बदनाम किया, इसके बारे में देश की जनता को गुमराह और भ्रमित किया।

ludhiana 2009-12-2दिल्ली से अमृतसर जाने वाले नेशनल हाइवे जी.टी. रोड से सटे लुधियाना के फोकल प्वाइण्ट क्षेत्र में अक्टूबर से ही बाइकर्स गैंग की दहशत थी। रात को जब मज़दूर कारख़ानों से छुट्टी मिलने पर घर लौट रहे होते तो मोटरसाइकल पर सवार गुण्डे बेसबाल, लोहे की रॉडों, चाकू आदि हथियारों से उन पर हमला करते और लूट लेते। पिछले दो महीनों में ही ऐसे डेढ़ सौ से भी अधिक हमले हुए। इन वारदातों में अनेक मज़दूरों की जानें गयीं। मज़दूर लगातार गुण्डों-लुटेरों का शिकार हो रहे थे और दहशत में जी रहे थे लेकिन इसके बावजूद सरकार, प्रशासन और पुलिस के कानों पर जूँ तक न रेंगी।

3 दिसम्बर को तीन मज़दूर बाइकर्स गैंग के हमले का शिकार हुए। कुछ मज़दूर इकट्ठा होकर अपने एक साथी पर हुए हमले की रिपोर्ट दर्ज करवाने लुधियाना की ढंढारी कलाँ चौकी पर पहुँचे। लेकिन पुलिस ने उनकी बात सुनने, शिकायत दर्ज करने और उचित कदम उठाने की बजाय मज़दूरों को ही गालियाँ देनी शुरू कर दीं, और रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय उन्हें चौकी से भगा दिया। पुलिस के इस व्यवहार से गुस्साये सैकड़ों मज़दूर ढंढारी पुलिस चौकी पर पहुँचे। इस पर भी पुलिस ने उनकी एक न सुनी। पुलिस द्वारा उनकी समस्या की अनदेखी और अपमानित करने वाले रवैये से भड़के मज़दूरों ने जी.टी. रोड जाम कर दिया। मज़दूरों की शिकायत की सुनवाई करने के बजाय पुलिस अब भी मज़दूरों को भगाने का रवैया अपनाये हुई थी। जब बड़ी संख्या में पुलिसबल बुलाकर मज़दूरों पर भारी दमन की तैयारी होने लगी तो मज़दूर समझ गये कि अब पुलिस शान्तिपूर्वक उनकी बात सुनने वाली नहीं है। पुलिस के रवैये ने मज़दूरों को इतनी बुरी तरह भड़का दिया कि भड़के हुए मज़दूरों ने वहाँ खड़े कुछ वाहनों की तोड़-फोड़ करनी शुरू कर दी और कुछ को आग लगा दी। पुलिस इसी बहाने की तलाश में थी। अब पुलिस ने मज़दूरों पर जमकर लाठियाँ बरसायीं। पुलिस ने निर्ममतापूर्वक मज़दूरों से सड़क खाली करवायी।

मज़दूरों पर जमकर लाठियाँ बरसाने से भी पुलिस का मन न भरा। पुलिस ने मज़दूरों की बस्ती में जाकर घरों से निकाल-निकालकर मज़दूरों की पिटाई की। पुलिस ने महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों तक को नहीं बख्शा। सारी रात पुलिस के अत्याचार का ताण्डव होता रहा। पुलिस को ग़लतफहमी थी कि इससे मज़दूरों में दहशत फैल जायेगी और वे फिर कभी पुलिस का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं करेंगे। लेकिन अगले दिन सड़कों पर मज़दूरों के उमड़े सैलाब ने पुलिस की ग़लतफहमी दूर कर दी।

पुलिस की शह पर स्थानीय छुटभैये नेताओं और गुण्डों ने मज़दूरों को बर्बरता से पीटा

पुलिस की शह पर स्थानीय छुटभैये नेताओं और गुण्डों ने मज़दूरों को बर्बरता से पीटा

रात में पुलिस द्वारा निर्मम अत्याचार का शिकार हुए, क्रोध से अत्यधिक भड़के 10 हज़ार के लगभग मज़दूरों ने 4 दिसम्बर की सुबह विरोध प्रदर्शन किया। मज़दूरों ने फोकल प्वाइण्ट एरिया में मार्च करके कारख़ानों का काम बन्द करवाया और जी.टी. रोड जाम कर दिया। अब मज़दूर रेलवे ट्रैक भी जाम करके धरने पर बैठ गये। सारे ज़िले से भारी पुलिसबल मंगवाया गया। लेकिन प्रदर्शनकारी मज़दूरों के विशाल जनसमूह के सामने पुलिस की कोई कार्रवाई करने की हिम्मत तक न हुई। इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया। लेकिन मज़दूर डटे हुए थे। पुलिस को पिछले अनुभवों से पता था कि कर्फ्यू और लाठी-गोली से मज़दूरों को दबाया नहीं जा सकता। पुलिस ने नयी रणनीति अख्तियार की। पुलिस द्वारा मज़दूरों को पीटने के लिए भारी संख्या में गुण्डों को बुलाया गया। राजनीतिक पार्टियों के गुण्डा-गिरोहों ख़ासकर यूथ कांग्रेस के गुण्डों-लम्पट नौजवानों और कारख़ाना मालिकों द्वारा रखे गये भाड़े के गुण्डों ने आसपास के इलाकों में रहने वाली पंजाबी आबादी को यह झूठ बोलकर गुमराह किया और भड़काया कि यूपी-बिहार के ‘भइयों’ की भीड़ पंजाबियों पर हमला करने जा रही है। अब पुलिस और गुण्डों ने झूठ बोलकर भड़काये गये बड़ी संख्या में आम पंजाबी आबादी को साथ लेकर मज़दूरों पर हमला बोल दिया। पुलिस की यह चाल कामयाब रही। ये तस्वीरें मज़दूरों पर किये गये जालिमाना हमले की दर्दनाक कहानी बयान कर रही हैं।

मज़दूरों को खदेड़ने के बाद मज़दूर आबादी वाले लगभग पाँच थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया। लेकिन गुण्डों के लिए कोई कर्फ्यू नहीं था। मज़दूरों को घरों से निकाल-निकालकर पीटा जाना जारी था। अनेकों औरतों के कपड़े तक फाड़े गये। कई मज़दूर औरतें बलात्कार का शिकार हुईं। 4 दिसम्बर की रात में ढंढारी पुलिस चौकी के बिल्कुल पीछे बने मज़दूरों के एक बेड़े पर, जिसमें लगभग 150 कमरे हैं, तलवारों से लैस कोई 40 गुण्डों ने हमला कर दिया। कइयों को गम्भीर रूप में जख्मी कर दिया गया, अनेक कमरों के दरवाज़े-खिड़कियाँ तोड़ डाले गये। ये गुण्डे जाते हुए यह धमकी देकर गये कि सुबह तक सभी लोग पंजाब छोड़कर भाग जाओ, नहीं तो सभी को ज़िन्दा जला दिया जायेगा। गुण्डों के चले जाने के बाद पहले ही सोची-समझी चाल के अनुसार पुलिस शिकायत दर्ज करने पहुँच गयी, जबकि यह सबकुछ पुलिस चौकी के बिलकुछ पास ही हो रहा था। और भी कई जगहों पर पुलिस और गुण्डों ने मिलकर मज़दूरों की मार-काट की, उनके घरों को आग लगायी, तोड़-फोड़ की। गुण्डों ने एक मूँगफली बेचने वाले के सिर पर लोहे की रॉड मारकर कत्ल कर दिया। 4 दिसम्बर के दिन और रात को लगातार ऐसी घटनाएँ होती रहीं, वहीं अगले दिनों में भी पुलिस और गुण्डे मज़दूर बस्तियों में ख़ौफ का माहौल पैदा करते रहे। साथ ही 40 से अधिक मज़दूरों को जेल में डाल दिया गया और सैकड़ों अनजान लोगों पर केस बना दिया। पुलिस यूनियन कार्यकर्ताओं की तलाश में घूम रही है और किसी को भी उठाकर इन केसों में उलझा सकती है।

लेकिन, अक्टूबर से एक तरफ बाइकर्स गैंग का आतंक और दूसरी तरफ पुलिस की अनदेखी – हज़ारों मज़दूरों के सड़कों पर उतर आने का तत्कालिक कारण था। असल में इसके पीछे लम्बे समय से मज़दूरों के दिलों में जमा होता रहा गुस्से का बारूद था जिसे बाइकर्ज गैंग के आतंक और इस पर मज़दूरों के प्रति पुलिस की बेरुखी ने आग दिखा दी।

लुधियाना के मज़दूर पूरे देश के मज़दूरों की तरह पूँजीपतियों के भयंकर लूट-शोषण का शिकार हैं। कारख़ानों में मज़दूरों के हक में कोई नियम-कानून लागू नहीं हैं। अधिकतर मज़दूर 12-14 घण्टे खटने के बाद भी सरकार द्वारा हैल्पर के लिए तय आठ घण्टे की दिहाड़ी का न्यूनतम वेतन (लगभग 3400/-) भी नहीं कमा पाते। वे भयंकर ग़रीबी का शिकार हैं। मालिकों को बेहिसाब मुनाफा कमाकर देने वाले मज़दूर मानवीय जीवन की न्यूनतम ज़रूरत भी पूरी नहीं कर पाते।

बाइकर्ज गैंग द्वारा मज़दूरों पर किये जा रहे हमलों में मज़दूरों को हो रहे जान-माल के नुकसान के लिए कारख़ाना मालिक भी ज़िम्मेदार हैं। मज़दूरों का यह अधिकार बनता है कि उनके घर आने-जाने की व्यवस्था मालिक की ओर से की जाये। लेकिन कारख़ाना मालिक तो कारख़ाने के भीतर भी मज़दूरों की सुरक्षा के इन्तज़ाम करने को तैयार नहीं, बाहर की तो बात ही क्या की जाये। कहने की ज़रूरत नहीं कि मालिकों की लूट की चक्की में पिसने वाले मज़दूर सिर्फ यू.पी. और बिहार से आकर यहाँ नहीं बसे और काम कर रहे हैं, बल्कि पंजाब में पहले से ही रह रही बहुत बड़ी आबादी भी इन दमघोटू कारख़ानों में अपना ख़ून-पसीना बहाती है और मालिकों के लूट-शोषण का शिकार होती है। इस भयंकर लूट-शोषण और ग़रीबी का शिकार यह सारी मज़दूर आबादी पूँजीपतियों से अत्यधिक नफरत करती है।

यू.पी.-बिहार से पंजाब में आकर बसे और काम कर रहे मज़दूरों के साथ अपने ही देश में पल-पल प्रवासियों जैसा व्यवहार किया जाता है। उन्हें हर जगह जलील होना पड़ता है, अपमान सहना पड़ता है। पुलिस-प्रशासन से तो वे किसी भी तरह के न्याय की उम्मीद कर ही नहीं सकते। वहाँ उनकी समस्याओं की कोई सुनवाई नहीं है। हर पुलिस थाने, हर चौकी, हर सरकारी दफ्तर में उन्हें जलील किया जाता है।

पुलिस द्वारा एक बार अख़बारों में यह प्रचार छेड़ा गया कि पंजाब में होने वाले अधिकतर अपराधों के पीछे इन यू.पी.-बिहार के प्रवासियों का हाथ होता है। लेकिन जब ऑंकड़े सामने लाये गये तो यह हकीकत सामने आयी कि सिर्फ 5 प्रतिशत अपराधों में ही यू.पी.-बिहार से आये लोग शामिल थे। इस तरह पुलिस के प्रचार अभियान की हवा निकल गयी। लेकिन पुलिस-प्रशासन समय-समय पर ऐसे बयान फिर भी देता रहता है।

मध्‍यवर्ग यह समझता है कि इन्हीं ने आकर पंजाब को गन्दा किया है। अपनी ग़रीबी की असल जड़ को न समझने के कारण और मज़दूर वर्गीय चेतना न होने के चलते पंजाबी ग़रीब जनता का बड़ा हिस्सा भी यू.पी.-बिहार से आये मज़दूरों को नफरत की निगाह से देखता है। उन्हें लगता है कि उनकी ग़रीबी-बेरोज़गारी का कारण यही लोग हैं जिन्होंने उनके हिस्से का रोज़गार छीन लिया है, कि ये कम मज़दूरी पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं, इसलिए उन्हें भी कम वेतन मिलता है। सिमरनजीत सिंह मान वाले शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) जैसे कट्टर सिख संगठन उनके ख़िलाफ लोगों में हमेशा जहर भरते रहते हैं। इनका एक ज़हरीला नारा है – भइया भगाओ, पंजाब बचाओ।

इस सबके चलते इस मज़दूर आबादी के ज़ेहन में गुस्से का बारूद भरा हुआ है जो समय-समय पर विस्फोटित होता रहता है। लेकिन कुल मिलाकर अब तक मज़दूरों का यह गुस्सा स्वयंस्फूर्त ढंग से बिना किसी लम्बी तैयारी के पूँजीपतियों, पुलिस-प्रशासन के ख़िलाफ निकलता रहता है। 3 और 4 दिसम्बर को सड़कों पर मज़दूरों का फूटा गुस्सा भी सिर्फ बाइकर्ज़ गैंग के आतंक और इस सम्बन्ध में पुलिस की बेरुखी से ही नहीं पैदा हुआ था, बल्कि लम्बे अर्से से उनको पल-पल सहने पड़ रहे लूट, शोषण, अन्याय, अपमान का नतीजा था।

मज़दूरों के इस गुस्से का फायदा उठाने के लिए क्षेत्रीय राजनीति करने वाले मदारी काफी सक्रिय थे। वे भी मज़दूरों के इस गुस्से को साधारण पंजाबी आबादी के ख़िलाफ मोड़ने के लिए ज़ोर लगाते रहे और इस राजनीति में वे कुछ हद तक सफल भी हुए। प्रदर्शन के दौरान ज़बरदस्ती दुकानें बन्द करवाने, कारों, स्कूटर यहाँ तक कि साइकलों की तोड़-फोड़ भी करवाई गयी। नतीजतन कुछ हद तक पुलिस-प्रशासन 4 दिसम्बर को लुधियाना में होने वाली इन घटनाओं को यू.पी.-बिहार के प्रवासियों और पंजाबियों के बीच की झड़पों का रूप देने में कामयाब हो गया। मज़दूरों में घुसे बैठे क्षेत्रीय राजनीति करने वाले और आवारा तत्वों की तोड़-फोड़ और आगजनी की कार्रवाइयों ने पुलिस, सरकार, मालिकों और उनके भाड़े के गुण्डों को यह मौका दे दिया कि वे मज़दूरों के प्रदर्शन को बदनाम कर सकें और साधारण पंजाबी मज़दूर आबादी को अपने ही मज़दूर भाई-बहनों के ख़िलाफ इस्तेमाल कर सकें।

इसमें कोई शक नहीं कि इस घटना ने एक बार फिर शहरी मज़दूर आबादी में बेचैनी को जगज़ाहिर कर दिया और उनमें छुपी हुई ताकत का नज़ारा पेश किया है, भले ही इस आन्दोलन की ख़ामियों के चलते इसे फिलहाल दबा दिया गया है। मज़दूरों का अपने साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ गुस्सा पूरी तरह जायज़ था, लेकिन मज़दूरों का विरोध प्रदर्शन पूरी तरह स्वयंस्फूर्त था, जिसमें जनवादी और क्रान्तिकारी नेतृत्व का अभाव था, और क्षेत्रीय राजनीति करने वालों और आवारा तत्वों की भरमार थी। इसलिए मज़दूरों का यह विरोध-प्रदर्शन कुचला जाना तय था। लेकिन मज़दूरों के इस विरोध-प्रदर्शन ने दिखा दिया कि जब मज़दूर एकजुट होकर शोषकों का सामना करते हैं तो किस तरह सत्ताधारियों के हथियारबन्द दस्तों को भी दाँतो तले उँगलियाँ दबानी पड़ती हैं। अन्दाज़ा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि अगर मज़दूरों के पास जनवादी और क्रान्तिकारी नेतृत्व हो और धर्म-जाति-क्षेत्रीयता के नाम पर राजनीति करने वाले मज़दूर विरोधी राजनीतिक तत्वों से पीछा छुड़ाकर सभी मज़दूर पूरी तैयारी के साथ लड़ें तो वे किसी भी ताकत का सामना कर सकते हैं। अगर मज़दूर वर्गीय आधार पर एकजुट होकर पूँजीपतियों, सरकार, पुलिस, प्रशासन और गुण्डा-गिरोहों के गठबन्धन का सामना करें, तो मज़दूर आन्दोलन के कुचले जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

पंजाब में मज़दूरों को संगठित करने की कोशिशों में जुटे ईमानदार और प्रतिबद्ध संगठनों के सामने व्यापक मज़दूर आबादी को संगठित करना इतना आसान नहीं है। मज़दूर आन्दोलन को विफल करने के लिए हुक्मरानों के पास मेहनतकश आबादी में व्यापक स्तर पर फैली क्षेत्रीय भावनाएँ एक बेहद घातक हथियार है। जब भी पंजाब में कोई गम्भीर मज़दूर आन्दोलन उठेगा हुक्मरान क्षेत्रीय राजनीति के पत्तो का इस्तेमाल करेंगे और मज़दूर आन्दोलन को अपनी सही राह से भटकाने की कोशिश करेंगे। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। पंजाबी आबादी को यह समझना होगा कि उनकी समस्याओं का कारण पूँजीपतियों द्वारा मेहनतकश जनता की हो रही निर्मम लूट है और इस लूट की चक्की में पंजाब में पहले से रह रहे और अन्य राज्यों से आकर यहाँ बसे मज़दूर बराबर रूप में पिस रहे हैं। यह भी सच है कि अन्य राज्यों से यहाँ आकर बसी आबादी का एक हिस्सा समूचे पंजाबियों को ही अपना विरोधी समझ लेता है। उनकी यह सोच उन्हें पंजाबी मज़दूर आबादी से एकता बनाने में रुकावट खड़ी करती है। आपस में लड़ते रहना मज़दूर एकता को कमजोर बनाता है और उनके असली दुश्मन पूँजीपतियों और उनकी सत्ता को मज़बूत बनाता है। असल में, पंजाब के हों या अन्य राज्यों से आकर यहाँ बसे मज़दूर हों – समस्याएँ सबकी एक हैं। वे एक ही लुटेरे का शिकार हैं, जिसका एक ही हित है कि मज़दूर आपस में विरोध-भाव बनाये रखें और कभी उसकी तरफ निशाना न साध पायें। इसलिए सभी मज़दूरों का आपस में कन्धे से कन्धा मिलाकर पूँजीपतियों और उनकी सत्ता के ख़िलाफ संघर्ष ही उनकी सभी समस्याओं से मुक्ति का रास्ता है।

बिगुल, दिसम्‍बर 2009


 

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