अदम्य बोल्शेविक – नताशा – एक संक्षिप्त जीवनी (चौथी किश्त)

एल. काताशेवा
अनुवाद : विजयप्रकाश सिंह

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बर्दस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आख़िरी साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल‘ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। – सम्पादक

(पिछले अंक से जारी)

महिला मज़दूरों के बीच काम और अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन की तैयारी 

महिला मजदूरों के साथ विशेष रूप से नताशा ने संगठनकर्ता का उत्कृष्ट गुण प्रदर्शित किया। उन्होंने रूस में पहले अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस समारोह के आयोजन में अग्रणी भूमिका निभायी। यह रोचक तथ्य है कि नताशा के प्रावदा से जुड़ने के बाद अखबार के दफ्तर में औरतों की आवाजाही बढ़ गयी थी। दफ्तर के अपने छोटे-से कमरे में बैठ कर वह मेहनतकशों के आम आन्दोलन से औरतों को जोड़ने की योजनाएँ बनाती रहती थीं।
रूस की कामकाजी औरतों को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की जानकारी 1913 में मिली और उस दिन से कमोबेश नियमित रूप से इसका आयोजन शुरू हुआ। कामकाजी औरतों ने दुनिया भर की अपनी जैसी दूसरी कामरेडों के साथ हमदर्दी महसूस की। उन्होंने यह समझना शुरू किया कि गरीबी और किल्लत से औरतों को तभी छुटकारा मिल सकता था जब मेहनतकश वर्ग पूँजीपति वर्ग के खिलाफ अपने संघर्ष को निर्णायक जीत के मुकाम पर पहुँचाये। बहरहाल, हमें आन्दोलन पर हावी रहने के लिए मेंशेविकों से लड़ना था क्योंकि वे उसे पूँजीवादी पार्टियों के वर्चस्व के आधीन करने की कोशिश कर रहे थे।
समोइलोवा ने पहले अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन के पार्टी के महती कार्य में अग्रणी भूमिका निभायी। महिला मजदूरों ने इस दिन को अपने दिन, अपनी वर्गीय चेतना को जागृत करने और अन्तरराष्ट्रीय भाईचारे की समझ के स्तर तक अपने दायरे को बढ़ाने के लिए तय किये गये एक खास दिन के रूप में स्वीकार किया। नताशा ने अपना सृजनात्मक प्रयास विशेष रूप से हमारे पार्टी के निर्माण की इस शाखा को समर्पित किया।
क्रान्तिकारी काम के बरसों के अनुभव से सम्पन्न एक बोल्शेविक के तौर पर नताशा ने इस काम को बोल्शेविक ढंग से अंजाम दिया। इस काम के आयोजन की योजना पर विचार करते हुए उन्होंने इस मुद्दे पर सावधानी से काम किया। इस मामले पर प्रावदा के कामरेडों से वे अक्सर सलाह लेतीं और काम को इस प्रकार संचालित करतीं ताकि वह क्रान्तिकारी वर्ग संघर्ष की मुख्यधारा को मजबूत करे।
समोइलोवा अपने कामरेडों के साथ महिलाओं की एक पत्रिका के प्रकाशन के सवाल पर अक्सर चर्चा किया करती थीं। इस समय रूस के मजदूर आन्दोलन के आम तौर पर पुनर्जीवित होने का प्रमाण आन्दोलन में कामकाजी महिलाओं की बढ़ती दिलचस्पी से भी मिल रहा था। उन्होंने यूनियनें बनायीं, हड़ताली आन्दोलनों में, बीमा आन्दोलनों में हिस्सा लिया, अखबार में लिखा, मई दिवस के प्रदर्शनों में शामिल हुईं। महिला आन्दोलन पर पर्याप्त ध्‍यान दे पाना प्रावदा के लिए असम्भव था। महिलाओं की पत्रिका वूमेन वर्कर का प्रकाशन समोइलोवा की चिर संचित अभिलाषा थी। आगे चल कर उनका यह सपना साकार हुआ, और कहा जा सकता है कि समोइलोवा को उनका असली कार्यक्षेत्र मिल गया; उन्होंने अपनी सारी उफर्जा को महिला आन्दोलन पर केंद्रित कर दिया। और इस काम में महिलाओं की उत्कृष्ट संगठनकर्ता और आन्दोलनकर्ता, जैसा कि समोइलोवा ने क्रान्ति के बाद अपने आप को सिद्ध किया, के रूप में विकास किया और आगे बढ़ीं।
प्रावदा के ग़ैरकानूनी काम के दौरान और क्रान्ति के बाद महिला सम्मेलनों में जिन्होंने समोइलोवा को देखा था, उनके समक्ष स्पष्ट था कि समोइलोवा की असली रुचि इसी काम में थी, यही उनका मूल तत्व था।
महिला मजदूरों के सवाल पर पार्टी के एक निर्णय पर पहुँचने के बाद नताशा पार्टी में पहले से ही शामिल महिला मजदूरों के एक समूह और अनेक बोल्शेविक कामरेडों (एसएम पोज्नर, पीएफ कुंदेली और अन्य) के साथ पूरे उत्साह से महिला दिवस की तैयारियों में जुट गयीं।
जनवरी 1913 में उदार बुद्धिजीवियों के एक पूँजीवादी समूह ने महिलाओं की शिक्षा पर एक अधिवेशन का आयोजन किया था जिसमें कुछ चुनिन्दा महिला कार्यकर्ताओं को ही शामिल होने की अनुमति दी गयी थी। इस अधिवेशन में मुख्य रूप से ‘पुरुष वर्चस्व’ के मुद्दे पर ही चर्चा की गयी। प्रावदा ने इस सम्बन्धा में लिखा कि इस अधिवेशन में नहीं बल्कि प्रावदा की ओर से आयोजित अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन से बड़े नतीजे सामने आयेंगे और महिलाओं की असली आवाज सुनी जायेगी।
महिला मजदूरों को संबोधित प्रावदा का पहला लेख जुझारू मजदूर वर्ग की कतारों से जुड़ने, अन्तरराष्ट्रीय क्रान्तिकारी मजदूर आन्दोलन के शक्तिशाली झंझावात का हिस्सा बनने के लिए रूसी महिलाओं का भावनात्मक आह्नान था।
इस लेख के बाद प्रावदा ने अपने लेखों में सिलसिलेवार मुहिम चलायी। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के कामों और उसके आयोजन के तौर-तरीके पर लेखों की एक श्रृंखला छपीे ताकि रूसी महिला मजदूर इसे अपना दिन महसूस करें। लेकिन पहला अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हमारी ताकत का आकलन करने के एक अवसर के रूप में भी देखा गया।
इस उद्देश्य से प्रावदा ने ”महिलाओं के काम” पर एक स्तम्भ चलाया। ‘एक वैज्ञानिक सामाजिक ग्रंथालय, महिला श्रम और स्त्री प्रश्न’ शीर्षक से बहुत सी सामग्री प्रकाशित की गई। विभिन्न फैक्टरियों और उद्योगों की विभिन्न शाखाओं में महिलाओं की दशा पर प्रावदा में एक प्रश्नावली छापी गयी। इसी तरह प्रावदा ने बहुत-सी सोसाइटियों और मजदूर संगठनों (सिलाई के पेशे से जुड़े मजदूरों, कपड़ा उद्योग के मजदूरों वगैरह) से महिला मजदूरों की दशाओं की तफ्रतीश और अध्‍ययन करने और अपने ऑंकड़े प्रावदा को भेजने का अनुरोध किया। सारा ध्‍यान औरतों की वर्ग स्थिति, उद्योग में उनकी स्थिति, वगैरह पर केन्द्रित था। जैसे-जैसे सामग्री आने लगी तो ‘महिलाओं के काम’ वाला स्तम्भ और ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के लिए एक नया खण्ड प्रावदा में और जल्दी-जल्दी छपने लगे।
पूँजीवादी हमले के खिलाफ विकसित हो रहे वर्ग संघर्ष ने, जो प्रतिक्रिया के इस दौर में तथाकथित तीन जून दूमा की संवैधानिक स्थितियों के अनुरूप बहुत ही सफलतापूर्वक ढाला गया था, महिलाओं के स्तम्भ के लिए पर्याप्त स्पष्ट और ठोस सामग्री उपलब्धा करायी। कपड़ा मिलों में भी तालाबन्दियाँ होने लगीं। आने वाले संकट के चलते मजदूरी में कटौती होने लगी, और औरतों से अपमानजनक तरीके से ”सड़कों पर जाकर अतिरिक्त कमाई करने” को कहा गया। लाफेर्मे फैक्टरी की आठ सौ औरतें हड़ताल पर चली गयीं।
समोइलोवा ने यह सारी सामग्रियाँ जमा की और ”महिलाओं के स्तंभ” के अलावा उन्होंने बहुत-से लेख लिखे जो इस मुद्दे पर इस तरह ध्‍यान केन्द्रित करते थे जो महिलाओं को दिलचस्प लगता था – हड़तालों के नतीजे और जीवनयापन के खर्च हुई वृद्धि के खिलाफ संघर्ष में उनकी भूमिका, महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर सरकारी खिलवाड़ और फैक्टरियों में महिला फैक्टरी निरीक्षकों की नियुक्ति सम्बन्‍धी विधोयक लाने की उसकी मंशा।
महिलाओं को अपने संगठनों की ओर खींचने की नियोक्ताओं की कोशिशों ने नताशा को एक उत्तोजक लेख लिखने के लिए उकसाया जिसमें उन्होंने महिलाओं का अपने वर्ग के संगठनों, यानी ट्रेड यूनियनों से जुड़ने का आह्नान किया।
साथ ही साथ पार्टी की भूमिगत महिला कार्यकर्ताओं द्वारा गुप्त रूप से तैयारी का ठोस काम अंजाम दिया जा रहा था। बहुत-सी महिलाएँ, जो बोल्शेविक पार्टी की कार्यकर्ताएँ थीं, बैठकों, ट्रेड यूनियनों, क्लबों और विभिन्न मजदूर समितियों से प्रावदा द्वारा जुटायी सामग्रियों का इस्तेमाल रिपोर्टें तैयार करने और सक्रिय महिला मजदूरों के बीच से (अलेक्सेयेवा, एक बुनकर, पावलोवा, इत्यादि) वक्ता तैयार करने के लिए करती थीं, जो पहले ही विख्यात हो चुकी थीं। नताशा इस काम में सक्रिय हिस्सेदारी करती थीं। इस तरह पहले अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला मजदूरों ने सीधो फैक्टरियों के जीवन से ली गयी ठोस सामग्री के आधार पर स्पष्ट और प्रभावशाली भाषण दिये। उन्होंने महिला मजदूरों के शोषण की गहनता का खुलासा किया और बताया कि किस प्रकार महिला मजदूर दोहरे उत्पीड़न की शिकार थीं और उन नाममात्र के अधिकारों से भी वंचित थीं जो पुरुष मजदूरों को हासिल थे।
फरवरी 23 (नये कैलेण्डर के अनुसार मार्च 8) आ पहुँचा। प्रावदा द्वारा चलाये गये आन्दोलन के कारण मजदूर वर्ग के दुश्मन हरकत में आने को विवश हो गये थे। उदारवादियों के एक समूह, जो विमेंस हेरल्ड का प्रकाशन करता था, ने प्रावदा के खिलाफ गाली-गलौच का अभियान छेड़ दिया और घोषणा की कि पीपुल्स यूनिवर्सिटी भी महिला दिवस का आयोजन करेगी।
समोइलोवा ने इन नारीवादियों का अत्यन्त भावप्रवण जवाब दिया और महिला मजदूरों की ओर से विश्वासपूर्वक कहा कि उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन में भाग लेने का पक्का निश्चय कर लिया है। विमेंस हेरल्ड के हमले ने स्पष्ट कर दिया कि बोल्शेविकों ने महिला मजदूरों बहुतायत को संगठित करने की जो रणनीति अपनायी थी वह पूरी तरह क्रान्तिकारी माक्र्सवाद के सिद्धान्तों और विचारधारा के अनुरूप थी।
पहले अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के लिए नियत तारीख 23 फरवरी 1913 को रविवार का दिन था। इस दिन सभा करने के लिए पुलिस की अनुमति लेने के लिए (4 मार्च 1906 के अन्तरिम नियमों के अनुसार) बैठकों को ”साइंटिफिक मैटिनीज” का नाम देने का निश्चय किया गया।
यह दिन जैसे-जैसे करीब आता जा रहा था उसे लेकर पुरुष और महिला मजदूरों की बढ़ती दिलचस्पी के बारे में जानने के लिए प्रावदा के 1913 के अंक देखना शिक्षाप्रद होगा। सबसे पहले एक मजदूर (या शायद कोई महिला मजदूर जो अपना नाम देते हुए डरती है) महिला मजदूरों की कठिन परिस्थितियों, कम वेतनमान, उस गुस्से के बारे में लिखता है जिसे एक अच्छी दिखने वाली महिला मजूदर को फोरमैन के कारण भुगतना पड़ता है, इत्यादि। इसके कुछ दिन बाद उसी फैक्टरी की एक महिला मजदूर लिखती है (जाहिर है कि वह नताशा के दफ्तर जा चुकी है)। पहले हम प्रतिरोध के शब्द पढ़ते हैं और उसके बाद हड़ताल की सूचना आती है।
महिला मजदूरों के नये संस्तर लगातार शामिल किये जा रहे थे; पहले कपड़ा उद्योग के मजदूर, उसके बाद सिलाई व्यापार के मजदूर, धुलाई करने वाली औरतें और कपड़ा बेचने वाली औरतें, वगैरह।
लम्बे समय तक रबड़ उद्योग की महिला मजदूर आन्दोलन से बाहर रहीं। हालांकि, 1914 में ट्राइऐंगल रबड़ फैक्टरी और रबड़ उद्योग की दूसरी फैक्टरियों में बड़े पैमाने पर विषाक्तता की कई घटनाओं ने न सिर्फ सेण्ट पीटर्सबर्ग बल्कि समूचे रूस के सर्वहारा को क्रोध से भर दिया।
सबसे पहले औरतों को मजदूर बीमा अधिनियम के तहत दुर्घटनाओं के लिए बीमा कराने के लिए प्रेरित किया गया। चूँकि यह उन्हें संगठित करने का एक जरिया था। लेकिन औरतों ने ऐसा करने से मना कर दिया और उन्होंने बीमा के फार्म फाड़कर फेंक दिये। उन्होंने ऐसा इसलिए नहीं किया कि उनकी स्थिति दूसरे उद्योगों की औरतों से बेहतर थी बल्कि इसलिए कि धुएँ भरी फैक्टरियों में ओवर टाइम करके वे प्रति दिन अस्सी कोपेक से एक रूबल तक कमा लेती थीं जबकि कपड़ा उद्योग के मजदूर ज्यादा से ज्यादा साठ कोपेक कमाते थे और औसत मजदूरी बारह रूबल मासिक बनती थी। लेकिन अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन की सफलता ने उनका रवैया बदल दिया। पूँजी के इन गुलामों ने भी अपने मालिकों की फरमाबरदारी से इनकार कर दिया। उन्होंने प्रतिरोध करना शुरू कर दिया और हड़ताल की धमकी देने लगीं। इससे प्रबन्धान हक्का-बक्का रह गया और खीझ उठा।
समोइलोवा ने भावुकता और गहन और निरन्तर बढ़ते उत्साह से देखा कि प्रावदा की देखभाल और सरोकार की बदौलत एक नयी क्रान्तिकारी सेना तैयार हो रही थी, युगों से दबी-कुचली और गुलाम महिला मजदूर जाग रही थीं:
खुशी और जीवन से भी वंचित,
लम्बे समय तक तुमने पहनीं
गुलामी की जंजीरें,
लंबे समय तक तुमने पराजय में रखा
अपना सिर झुकाये,
लंबे समय तक तुम जीती रहीं
अज्ञान के अंधेरे में,
लंबे समय तक तानाशाहों ने उड़ाया
तुम्हारा मज़ाक,
तुम्हारी कमजोरी से होकर निर्भय…

लेकिन तिलिस्म टूट चुका है।
जीवन की किताब में हम लिखेंगे
तुम्हारी विजय-गाथा।
साहस के साथ बढ़ो आगे, महिला मजदूरों।
अपना मार्ग आलोकित कर दो
मुक्ति की मशाल से।

जान लो कि पुरुष मजदूर देंगे तुम्हारा साथ,
इस कठिन और महान संघर्ष में।
        – इल्या वोलोदिंस्की 

(1913-14 के अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को समर्पित एक सर्वहारा कविता। यह कविता छापने के लिए वूमन वर्कर पत्रिका को ज़ब्त कर लिया गया था (अंक 3, 1914))
प्रावदा और समोइलोवा का काम अपेक्षाओं से कहीं बढ़कर सफल रहा। 23 फरवरी को, पुलिस को अचंभित करते हुए ”साइंटिफिक मैटिनी” में सभी पेशों और उद्योगों से जुड़ी महिला मजदूरों ने हिस्सा लिया, जो क्रान्तिकारी महिला मजदूरों की एक विशाल सेना थी।

बिगुल, अप्रैल 2009

 


 

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