Category Archives: परिवहन/रेलवे

उत्तर प्रदेश में रोडवेज़ कर्मचारी भी अब निजीकरण के ख़ि‍लाफ़ आन्‍दोलन की राह पर

उत्‍तर प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ की सरकार जहाँ एक ओर प्रदेश को हिन्‍दुत्‍व की साम्प्रदायिक-फ़ासीवादी प्रयोगशाला बनाने पर उतारू है वहीं दूसरी ओर वह सार्वजनिक उपक्रमों का धड़ल्‍ले से निजीकरण करने की योजना को तेज़ रफ़्तार से लागू करने की बेशर्म कोशिशें भी कर रही है। प्रदेश में बिजली के निजीकरण की उसकी योजना भले ही कर्मचारियों की जुझारू एकजुटता की वजह से खटाई में पड़ गयी है, लेकिन अन्‍य विभागों में निजीकरण की प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ रही है।

रेलवे की बढ़ती बदहाली और निजीकरण के नये हथकण्डे

एक तरफ़ जहाँ मोदी सरकार देश में बुलेट ट्रेन लाने के शिगूफ़ छोड़ रही है, है वहीं दूसरी तरफ़ भारतीय रेल बीते 10 सालों में सबसे बुरे दौर में पहुँच गयी है। इस बात की तस्दीक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने की है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीय रेलवे की कमाई बीते दस सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुकी है।

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के ठेका कर्मचारियों की हड़ताल : एक रिपोर्ट

डीटीसी विभाग में ठेके (अनुबन्ध) पर काम करने वाले ड्राइवर (4000) और कण्डक्टर (8000) को मिलाकर 12,000 कर्मचारी हैं। हालाँकि लम्बे समय से डीटीसी के ये ठेका कर्मचारी बुनियादी श्रम अधिकार भी न मिलने के कारण परेशान थे। इस साल के अगस्त माह में जब दिल्ली हाईकोर्ट का दिल्ली सरकार द्वारा बढ़ायी गयी न्यूनतम मज़दूरी पर रोक लगा दी गयी थी; जिसके कारण कर्मचारियों के वेतन में लगभग 4 से 5 हज़ार रुपये कम हो गये थे। वेतन कम होने के बाद इन कर्मचारियों की बैठक हुई और फ़ैसला किया गया वेतन कम होने, समान काम-समान वेतन व अन्य माँगों को लेकर कर्मचारी 22 अक्टूबर को एक दिन की हड़ताल करेंगे। इस एक दिन की हड़ताल में कर्मचारियों के साथ एक्टू (चुनावबाज़ संशोधनवादी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई (माले-लिबरेशन) का मज़दूर फ्रण्ट) की भागीदारी भी थी। 22 अक्टूबर की शाम को ही दिल्ली सरकार ने इस हड़ताल की अगुवाई कर रहे 8 कर्मचारियों को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया था। ऐसे में इन कर्मचारियों ने फ़ैसला लिया कि बर्ख़ास्त कर्मचारियों को वापस लेने व अन्य माँगों को लेकर अब अनिश्चितकालीन हड़ताल की जायेगी। कर्मचारियों के इस फ़ैसले से एक्टू सहमत नहीं था; उनका कहना था कि बस एक दिन की प्रतीकात्मक हड़ताल से ही सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है। ऐसे में डीटीसी कर्मचारियों ने सीटू को अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल से पूरी तरह अलग करने का फ़ैसला किया।

हरियाणा रोडवेज़ की 18 दिन चली हड़ताल की समाप्ति पर कुछ विचार बिन्दु

रोडवेज़ के निजीकरण का मतलब है हज़ारों रोज़गारों में कमी करना। केन्द्र सरकार के ही नियम के अनुसार 1 लाख की आबादी के ऊपर 60 सार्वजनिक बसों की सुविधा होनी चाहिए। इस लिहाज़ से हरियाणा की क़रीब 3 करोड़ की आबादी के लिए हरियाणा राज्य परिवहन विभाग के बेड़े में कम से कम 18 हज़ार बसें होनी चाहिए किन्तु फ़िलहाल बसों की संख्या मात्र 4200 है। हम आपके सामने कुछ आँकड़े रख रहे हैं जिससे ‘हरियाणा की शेरनी’ और ‘शान की सवारी’ कही जाने वाली रोडवेज़ की बर्बादी की कहानी आपके सामने ख़ुद-ब-ख़ुद स्पष्ट हो जायेगी। 1992-93 के समय हरियाणा की जनसंख्या 1 करोड़ के आस-पास थी तब हरियाणा परिवहन विभाग की बसों की संख्या 3500 थीं तथा इन पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 24 हज़ार थी जबकि अब हरियाणा की आबादी 3 करोड़ के क़रीब है किन्तु बसों की संख्या 4200 है तथा इन पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 19 हज़ार ही रह गयी है।

बुलेट ट्रेन के लिए क़र्ज़ देने वाले जापान के भारत प्रेम की हक़ीक़त क्या है?

चीन और जापान दोनों की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की भयंकर अतिरिक्त नक़दी तरलता है। इसकी वजह से जापान की बैंकिंग व्यवस्था को तबाह हुए 20 साल हो चुके। 1990 के दशक में दुनिया के 10 सबसे बड़े बैंकों में 6-7 जापानी होते थे, आज कोई इनका नाम तक नहीं सुनता। जापानी सेण्ट्रल बैंक कई साल से नकारात्मक ब्याज़ दर पर चल रहा है – जमाराशि पर ब्याज़ देता नहीं लेता है! लोग किसी तरह कुछ ख़र्च करें तो माँग बढे़, कहीं निवेश हो। जीडीपी में 20 साल में कोई वृद्धि नहीं, उसका शेयर बाज़ार का इण्डेक्स निक्केई 20 साल पहले के स्तर पर वापस जाने की ज़द्दोजहद में है।