कश्मीर में जारी दमन, फ़र्ज़ी मुक़दमे और भारतीय राजसत्ता द्वारा जनता पर कसता शिकंजा!
कश्मीर काग़ज़ पर बना कोई नक़्शा नहीं है, कश्मीर वहाँ की जनता से बनता है। मज़दूरों व मेहनतकशों की लड़ाई न्याय और समानता के लिए है। सिर्फ़ अपने लिए न्याय और समानता नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए न्याय और समानता। हम मज़दूर मेहनतकश साथियों को कभी भी किसी भी सामाजिक हिस्से या राष्ट्रीयता या जाति के शोषण, दमन और उत्पीड़न का समर्थन नहीं करना चाहिए। पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और इसी राष्ट्रवाद की लहर को सांस्कृतिक तौर पर फैलाकर पूँजीपति वर्ग अपने दमन और शोषण को जायज़ ठहराने का आधार तैयार करता है। वह अन्य राष्ट्रों के दमन और उत्पीड़न के लिए मज़दूर वर्ग में भी सहमति पैदा करने का प्रयास करता है। हमें पूँजीपति वर्ग, मालिकों व ठेकेदारों की इस साज़िश के प्रति सावधान रहना चाहिए। हमें हर क़ीमत पर हर प्रकार के शोषण, दमन और उत्पीड़न का विरोध करना चाहिए, अन्यथा हम अनजाने ही ख़ुद अपने दमन और शोषण को सही ठहराने की ज़मीन पैदा करेंगे।