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दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने किया विधायक का घेराव

वज़ीरपुर में लगभग एक महीने से पानी की किल्लत झेल रहे वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने 30 सितम्बर की सुबह वज़ीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। वज़ीरपुर के अम्बेडकर भवन के आस पास की झुग्गियों में खुदाई के चलते 12 दिनों से पानी नहीं पहुँच रहा है, इस समस्या को लेकर मज़दूर पहले भी विधायक के दफ्तर गए थे जहाँ उन्हें 2 दिन के भीतर हालात बेहतर करने का वादा करते हुए लौटा दिया गया था मगर इसके बावजूद आम आदमी पार्टी की सरकार के विधायक ने कुछ नहीं किया । 30 सितम्बर की सुबह दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में झुग्गीवासीयों और मज़दूरों ने इकट्ठा होकर राजेश गुप्ता का घेराव किया। चुनाव से पहले 700 लीटर पानी का वादा करने वाली इस सरकार के नुमाइंदे से जब यह पूछा गया कि पिछले 12 दिनों से कनेक्शन कट जाने के बाद पानी की सुविधा के लिए पानी के टैंकर क्यों नहीं मंगवाये गए तो उसपर विधायक जी ने मौन धारण कर लिया।

यूनियन के पंजीकरण और मन्दी से घबराये मालिकों और दलालों द्वारा यूनियन के ख़िलाफ़ अफ़वाहें फैलाने की मुहिम

अगर छोटे मालिक और ठेकेदार पूँजीवादी मुनाफ़े के खेल को खेलने को तैयार हैं, तो अब रो क्यों रहे हैं? वे चाहते हैं कि उनके माल को विदेशी बाज़ार में मुफ्त एण्ट्री मिले, लेकिन उनके अपने बाज़ार में किसी विदेशी माल को न घुसने दिया जाये? वैसे भी अगर वज़ीरपुर के छोटे मालिकों को कोई बड़ी पूँजी वाला ख़रीद लेता है, तो इससे हम मज़दूरों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है। हमें चाहे छोटा मालिक लूटे या बड़ा मालिक लूटे, हमें तो लड़ना ही है! हम छोटे मालिक के दुख से क्यों जज़्बाती हों? उसने हमारे लिए क्या किया है? जब हमने मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में ‘सुधार’ के ख़िलाफ़ जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन किया था, तो क्या वज़ीरपुर का गरम रोला या ठण्डा रोला का मालिक हमारे साथ आया था? जब हम श्रम क़ानूनों को लागू करने की माँग कर रहे थे तो क्या इन मालिकों और ठेकेदारों ने हमारी माँग मानी थी? जब हमारे भाई इनके कारख़ानों में होने वाली दुर्घटनाओं में मरते हैं तो क्या ये हमें क़ानूनी मुआवज़ा देते हैं? क्या हमारी मज़दूरी में से काटा जाने वाला ईएसआई-पीएफ़ हमें दिया जाता है? तो फिर इन छोटे मालिकों और बड़े मालिकों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा में हम छोटे मालिकों के मोहरे क्यों बनें? बात जैसे को तैसा की नहीं है बल्कि इसकी वजह यह है कि हमारी बुनियादी माँगों पर ये मालिक हमें नौकरी से निकालने को तैयार रहते हैं और अपने हित साधने के लिए अब हमारी ताक़तवर यूनियन का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन हुई पंजीकृत

गत 7 ज़नवरी को वज़ीरपुर औद्योगिक इलाक़े में यूनियन पंजीकृत होने के मौक़े पर मज़दूर हुंकार रैली निकाली गयी जिसमें करीब हज़ार मज़दूरों ने भागीदारी कर अपनी एकजुटता का परिचय दिया। गरम रोला के मज़दूरों की हड़ताल से जन्मी यह यूनियन आज पूरी स्टील लाइन के मज़दूरों की यूनियन बन चुकी है। गरम रोला के आन्दोलन में 27 अगस्त की आम सभा में यह तय हुआ था कि ऐसी यूनियन बनानी होगी जो स्टील उद्योग के सभी तरह के काम करने वाले मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करे। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ऐसी ही यूनियन के रूप में उभरकर सामने आयी। आज इसके सदस्य गरम रोला, ठण्डा रोला, तेज़ाब, तपाई, तैयारी, रिक्शा, पोलिश आदि यानी हर तरह के मज़दूर साथी हैं तथा सदस्यता संख्या में लगातार विस्तार हो रहा है।

फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के इन्तज़ाम की माँग को लेकर मज़दूरों ने किया प्रदर्शन

दस दिसम्बर को वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के ठण्डा रोला और पावर प्रेस सहित सभी फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम की माँग उठाते हुए श्रम विभाग नीमड़ी कॉलोनी का घेराव किया। बैनर, पोस्टर और नारों के साथ सड़क पर मार्च करता हुआ यह दस्ता बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा था।

दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना

गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में संगठित हुए मज़दूरों ने अपने संगठन को विस्तारित करते हुए उसे वज़ीरपुर व दिल्ली के अन्य इलाकों के मज़दूरों की यूनियन के रूप में पंजीकृत कराने का फैसला किया है। यह फैसला मज़दूरों ने 27 अगस्त को अपनी आम सभा में ध्वनि मत के जरिये पारित किया व दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना की।