अनियोजित लॉकडाउन में बदहाल होते मुम्बई के मेहनतकशों के हालात

– अविनाश

मानखुर्द, मुम्बई के सबसे बाहरी छोर पर आता है और सबसे ग़रीब इलाक़ों में से एक है। यहाँ मज़दूरों, मेहनतकशों और निम्न मध्यम वर्ग के रिहायशी इलाक़े आपस में गुँथे-बुने ढंग से मौजूद हैं। मुम्बई की इन्हीं बस्तियों में रहने वाली मज़दूर-मेहनतकश आबादी, पूरे मुम्बई के तमाम इलाक़ों को चलाने और चमकाने का काम करती है। वहीं यह आबादी ख़ुद मुम्बई के सबसे बड़े झोपड़पट्टियों वाले ऐसे इलाक़े में रहने को मजबूर है जिसकी एक तरफ़ तो डम्पिंग ज़ोन है, तो दूसरी तरफ़ धुआँ उगलता हुआ बायोवेस्ट ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट मौजूद है। इन्ही कारणों से यहाँ ह्यूमन डेवेलपमेण्ट इण्डेक्स पूरी मुम्बई में सबसे कम है। दमा, कैंसर और टीबी के मरीज़ यहाँ पर आम तौर पर पाये जाते हैं। मुम्बई महानगरी की चकाचौंध भरी दुनिया जिसको बॉलीवुड की फ़िल्मों में अक्सर दिखाया जाता है उनमें से ग़ायब ये इलाक़े अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में भी भूले-भटके भले ही कभी हैडलाइन के तौर पर आ जायें, मगर अक्सर ही ये इलाक़े इन सबसे अछूते ही रहते हैं। मुम्बई की ही एक बड़ी आबादी को नहीं पता होता कि मुम्बई में ऐसा भी कोई इलाक़ा मौजूद है। ऐसे में नेता-मंत्रियों के विकास के दावे तो अक्सर यहाँ दम तोड़ते ही नज़र आते हैं। ऊपर से कोरोना महामारी व अनियोजित लॉकडाउन ने मज़दूर-मेहनतकशों के हालात और ख़राब कर दिये हैं।

मानखुर्द में मज़दूरों-मेहनतकशों के काम का चरित्र

मानखुर्द की बस्तियों में रहने वाले मज़दूर-मेहनतकशों के काम के बारे में बात की जाये तो एक तरफ़ रफ़ीक़ नगर, लोटस, गौतम नगर, टाटा नगर, लल्लूभाई कम्पाउण्ड, साठे नगर, बैंगनवाड़ी, मण्डाला आदि में छोटे-छोटे वर्कशॉप मौजूद हैं। जैसे ज़ाकिर हुसैन झोपड़पट्टी की तंग गलियों में पैर पोंछ, झाड़ू, बच्चों के खिलौने और अन्य सामान बनाने के वर्कशॉप मौजूद हैं। वहीं रफ़ीक़ नगर और शिवाजी नगर में ज़री के वर्कशॉप मौजूद हैं। ज़री के वर्कशॉप में काम करने वाले मज़दूर ज़्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। रफ़ीक़ नगर में एक मज़दूर जो ज़री के वर्कशॉप में काम करते थे, वो बताते हैं, “पहले इस काम में बहुत बरकत थी। हमारा माल सऊदी और दुबई जाया करता था। मगर मोदी सरकार द्वारा नोटबन्दी और जी.एस.टी लगने के बाद से धन्धा पूरी तरह से चौपट हो गया है।” अब इन्होंने पुराना धन्धा छोड़ दिया है और दिहाड़ी पर मज़दूरी करते हैं। ऐसे ही हालात ज़री के बहुत सारे मज़दूरों के हैं। अभी भी चोरी-छिपे वर्कशॉप चल रहे हैं, मगर मज़दूरी पुरानी जैसी नहीं है।
वहीं दूसरी तरफ़ मानखुर्द में रहने वाली एक बड़ी आबादी सर्विस सेक्टर में भी काम करती है। मानखुर्द से महिला व पुरुष दोनों ही की एक बड़ी आबादी बेहद कम वेतन पर तमाम ऑफ़िसों में सफ़ाई कर्मचारी, वॉचमैन या ऑफ़िस बॉय का काम करती है। वे बड़े-बड़े मॉलों और दुकानों में सेल्समैन ,लिफ़्टमैन या किसी तकनीकी काम में भी लग जाते हैं। तो कहीं ब्यूटी पार्लर चलाते हुए, या डोमिनोस, मैकडॉनल्ड्स, सब वे, पिज़्ज़ा हट में खाना पकाते हुए या फिर स्विग्गी, ज़ोमाटो में डिलीवरी का काम करते हुए वे मौजूद रहते हैं। टोल प्लाज़ा पर काम करते हुए, पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल भरते हुए, बैंक के लिए डॉक्यूमेण्ट इकट्ठा करते हुए। तो कभी ओप्पो, वीवो, वनप्लस आदि मोबाइल कम्पनियों के फ़ोन का प्रचार करते हुए भी वे दिखाई पड़ते हैं। अब यह कहने की ज़रूरत तो है नहीं कि ये सब ठेकेदारी प्रथा के तहत ही काम करते हैं। यह कहा जाता है कि मुम्बई कभी सोती नहीं है, पर यह सवाल कोई नहीं पूछता कि इस न सोने वाले शहर मुम्बई को 24 घण्टे कौन चलाता है?
मानखुर्द की बस्तियों में एक आबादी ऐसी भी है जो स्वरोज़गार के तहत सब्ज़ी, फल, वडापाव का ठेला लगाती है। वहीं एक छोटी सी आबादी ऑटोरिक्शा, टैक्सी, ओला, उबेर और छोटा हाथी चलाकर काम चलाती है।
मानखुर्द में महिलाओं की एक बड़ी आबादी नवी मुम्बई, अँधेरी, कोलाबा, सान्ता क्रूज़ और अन्य रईस इलाक़ों में घरेलू कामगार की नौकरी करती है। इसके अलावा सफ़ाई कर्मचारी की भी एक बड़ी आबादी यहाँ रहती है जो बी.एम.सी, अस्पतालों और अन्य जगह काम करती है। मानखुर्द के लल्लूभाई कम्पाउण्ड, साठे नगर, मण्डाला, गौतम नगर जैसे इलाक़ों में महिलाएँ घर पर पीस रेट पर फ़्रॉक सीने, बटन टाँकने, मोबाइल पॉउच बनाने का काम भी करती हैं। वहीं इन्हीं बस्तियों में एक आबादी ऐसी भी है जो सुबह 3 बजे उठ कर प्लास्टिक व शीशे की बोतल चुनने के लिए कूड़े के ढेर में निकल जाती है। साठे नगर में एक महिला जो प्लास्टिक बोतल चुनने का काम करती है, उसने बताया कि जी.एस.टी लगने से पहले प्लास्टिक बोतल पर एक किलो में ठीक ठाक पैसा मिल जाता था। मगर अब ज़्यादा मेहनत करने पर भी उतना पैसा नहीं मिलता है। पहले इस धन्धे में ज़्यादा लोग नहीं थे, मगर बढ़ती बेरोज़गारी ने आस-पास के महिलाओं व पुरुषों को भी यह काम करने के लिए मजबूर कर दिया है। पूँजीवादी व्यवस्था के तहत मज़दूर-मेहनतकश की आबादी संगठित व असंगठित सेक्टर के तौर पर उत्पादन में लगने के बाद इन उत्पादों से पैदा हुए कूड़े को भी संगठित व असंगठित तौर पर छाँट-बीन कर बेहद सस्ते श्रम में वापस पूँजीवादी प्रणाली के चक्के में शामिल कर देती है।

कोरोना महामारी में अनियोजित लॉकडाउन का असर

मोदी सरकार द्वारा कोरोना महामारी की वजह से थोपे गये अनियोजित लॉकडाउन ने मानखुर्द में रहने वाली मेहनतकश आबादी के हालातों को बद से बदतर कर दिया। जिनके पास नौकरी थी अब वह पूरी तरह छूट गयी है। एक झटके के साथ सारे धन्धे चौपट हो गये। कारख़ाने, ऑफ़िस, दुकान, मॉल, ठेलागाड़ी, रिक्शा आदि सब एकसाथ बन्द हो गये। घर चलाने के लिए पुरानी बचत पूरी तरह ख़त्म हो गयी। पिछले साल कारख़ानों के मज़दूरों ने पहले कुछ दिन लॉकडाउन ख़त्म होने का इन्तज़ार किया, फिर काम न होने की वजह से 5-6 हज़ार रुपये ख़र्च करके ट्रकों में ठुँसकर चोरी-छिपे अपने गाँव जाने को मजबूर हो गये थे। दुकान, मॉल और ऑफ़िस बन्द होने की वजह से कई लोगों को काम से निकाल दिया गया। इस साल अभी तक ये लोग दूसरे काम की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। लोकल ट्रेन बन्द होने की वजह से किसी अन्य इलाक़ों में काम की तलाश में भी नहीं जा सकते। हाल ही में आयी हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट इन्हीं हालात को साबित भी करती है। इसके अनुसार मानखुर्द (M EAST वार्ड) में लोगों की औसत आमदनी कोरोना लॉकडाउन की वजह से 47% से ज़्यादा घट गयी है। रिपोर्ट बताती है कि शिवाजी नगर, गोवण्डी, देवनार, ट्रॉम्बे और चीता कैंप में शुरुआती सर्वेक्षण से पता चला है कि बेरोज़गारी 7% से 12% तक बढ़ गयी है, जिसमें स्वरोज़गार और रोज़ कमाने वाले सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
पिछले साल भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने क्रान्तिकारी सुधार कार्य के तहत साढ़े 3 महीने कम्युनिटी किचन और फ़ूड पैकेट्स बाँटने का काम किया था। इस साल भी इस मज़दूर पार्टी ने गौतम नगर, साठे नगर, टाटा नगर और लल्लूभाई कम्पाउण्ड में बुज़ुर्गों व स्वतंत्र महिलाओं और जिनके पास राशन कार्ड नहीं थे, उनके बीच राशन किट्स वितरण का कार्य किया। मगर राशन किट्स वितरण आबादी की ज़रूरत के हिसाब से बिल्कुल नाकाफ़ी साबित हुआ, जो ज़ाहिर सी बात है क्योंकि इतनी बड़ी आबादी को राशन देने का काम सरकार की प्रणाली ही कर सकती है। जिसमें केन्द्र की मोदी सरकार हो या महा विकास अघाड़ी की उद्धव सरकार दोनों ही विफल साबित हुई हैं। आम जनता को भूख और कोरोना बीमारी के बीच ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया गया है। ऐसे में आम जनता के बीच भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने राजनीतिक अभियान चलाते हुए यह बात भी रखी कि अगर यही हालात बने रहे तो सड़कों पर उतरकर हमें अपने हक़ों-आधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2021


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments