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पूँजीवादी गणतन्त्र में कौन बच्चा और कौन पिता!

हमें किसी किस्म की निरंकुशता नहीं चाहिए। न बर्बर किस्म की और न ही प्रबुध्द किस्म की। हमें हमारे हक चाहिए; हमें सच्चा जनवाद चाहिए। और यह सच्चा जनवाद पूँजीवादी लोकतन्त्र में नहीं मिल सकता है। यह सच्चा जनवाद एक समतामूलक व्यवस्था में ही मिल सकता है। सर्वहारा जनवाद ही सच्चा जनवाद है क्योंकि यह बहुसंख्यक आम मेहनतकश आबादी के लिए जनवाद है और अल्पसंख्य शोषकों के लिए अधिनायकत्व। आज का पूँजीवादी जनवाद ऐसा ही हो सकता है। उसकी परिणति पूँजीवादी व्यवस्था के संकट बढ़ने के साथ ही निरंकुशता में होती है। क्योंकि यह अल्पसंख्यक शोषकों के लिए जनवाद है और बहुसंख्यक आम मेहनतकश जनता के लिए तानाशाही। जब तक पूँजीवाद रहेगा तब तक किसी किस्म के निष्कलंक और पूर्ण जनवाद की आकांक्षा करना बचकानापन है।

लूटो-भकोसो और झूठन आम जनता के ”हित” में दान कर दो

इन अरबपतियों की व्यक्तिगत सम्पत्ति का इनके लिए कोई विशेष महत्त्‍व नहीं होता है। क्योंकि वास्तविक सम्पत्ति वित्तीय एकाधिकारी पूँजीवाद के इस दौर में शेयरों और हिस्सेदारियों में निहित होती है। इसलिए वे अपनी पूरी व्यक्तिगत सम्पत्ति भी दान कर दें तो इससे उनका परमार्थ नहीं झलकता है। यह रहस्य छिपा रहे इसीलिए 2009 में जिस बैठक में गेट्स और बुफे ने इस चैरिटी का प्रस्ताव रखा, उसे पूरी तरह से गुप्त रखा गया। साफ है, ये वे अरबपति हैं जो विश्व पूँजीवाद के शीर्ष पर बैठे कारपोरेशनों के मालिक हैं और दुनिया की दुर्गति के लिए वे ही ज़िम्मेदार हैं। यह दुर्गति उन्होंने अनजाने में नहीं की है कि ईसा मसीह की तरह बोला जा सके, ‘हे पिता! इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।’ ये लुटेरे अच्छी तरह से जानते हैं कि इस दुनिया के मेहनतकश अवाम के साथ वे क्या करते रहे हैं और अब अगर उनके दिल में चैरिटी माता प्रकट हो गयी हैं तो भी समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों है।

इराकी जनता को तबाह करने के बाद अब इराक से वापसी का अमेरिकी ड्रामा

यह साम्राज्यवादी अन्धेरगर्दी, लफ्फाज़ी और बेशर्मी की इन्तहाँ है कि अमेरिका का राष्ट्रपति मंच से बोलता है कि इराकी जनता को मुक्त कर दिया गया है और वहाँ लोकतन्त्र की बहाली कर दी गयी है। यह अपना गन्दा और घायल चेहरा छिपाने के लिए दिया गया कथन मालूम पड़ता है। इराकी जनता ने भारी कुर्बानियों के बावजूद साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक नायकत्वपूर्ण संघर्ष किया और अमेरिकी सैन्य गुण्डागर्दी के सामने घुटने नहीं टेके। और अन्तत: उन्होंने अमेरिकियों को अपने नापाक इरादे पूरे किये बग़ैर अपने देश से भगाने में सफलता हासिल करनी भी शुरू कर दी है। यह सच है कि इस थोपे गये साम्राज्यवादी युद्ध ने इराक को तबाह करके रख दिया है। इराक आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से बिखरी हुई स्थिति में है और अतीत में कई वर्ष पीछे चला गया है। लेकिन इराकी जनता ने यह साबित कर दिया है कि साम्राज्यवादी शक्ति के समक्ष कोई क्रान्तिकारी विकल्प न होने की सूरत में अगर जनता जीत नहीं सकती तो वह साम्राज्यवादी शक्तियों से हार भी नहीं मानती है। लेकिन साथ में इसका नकारात्मक सबक यह भी है कि आज साम्राज्यवादी हमले और कब्ज़े को उखाड़ फेंकने और उसे हरा देने की ताकत मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट शक्तियों के नेतृत्व में ही हो सकता है।