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मारुति-सुजुकी के बेगुनाह मज़दूरों को उम्रक़ैद व अन्य सज़ाओं के खि़लाफ़ लुधियाना में ज़ोरदार प्रदर्शन

एक बहुत बड़ी साजि़श के तहत़ क़त्ल, इरादा क़त्ल जैसे पूरी तरह झूठे केसों में फँसाकर पहले तो 148 मज़दूरों को चार वर्ष से अधिक समय तक, बिना ज़मानत दिये, जेल में बन्द रखा गया और अब गुड़गाँव की अदालत ने नाजायज़ ढंग से 13 मज़दूरों को उम्रक़ैद और चार को 5-5 वर्ष की क़ैद की कठोर सज़ा सुनाई है। 14 अन्य मज़दूरों को चार-चार साल की सज़ा सुनाई गयी है लेकिन चूँकि वे पहले ही लगभग साढे़ चार वर्ष जेल में रह चुके हैं इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया है। 117 मज़दूरों को, जिन्हें बाक़ी मज़दूरों के साथ इतने सालों तक जेलों में ठूँसकर रखा गया, उन्हें बरी करना पड़ा है। सबूत तो बाक़ी मज़दूरों के खि़लाफ़ भी नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें जेल में बन्द रखने का बर्बर हुक्म सुनाया गया है।

ग़रीबों की बस्ती ईडब्ल्यूएस कालोनी (लुधियाना) में बुरी रिहायशी परिस्थितियाँ और सरकारी व्यवस्था बेरुख़ी

दुनिया की ख़ूबसूरत इमारतों का निर्माण करने वाले, अपने हाथों से मिट्टी से अनाज, पत्थरों से हीरे तराशने वाले, बंजर ज़मीन को इंसान के रहने लायक बनाने वाले सृजकों के अपने रहने की जगहों की परिस्थितियाँ बहुत भयानक हैं। दुनिया के किसी भी कोने में देख लीजिए हर जगह मज़दूरों-मेहनतकशों के साथ धक्केशाही होती है। दुनिया की ज़रूरतें पूरी करने के लिए दिन-रात एक करके अपनी जान की बाज़ी लगाकर, ख़तरनाक मशीनों पर अपने हाथ-पैर कटाकर काम करने वाले मज़दूर ख़ुद सभी बुनियादी ज़रूरतों से वंचित रह जाते हैं। जिस जगह वे अपने परिवार के साथ समय बिताने व आराम करने के लिए रहे हैं वहाँ के हालात शब्दों में बयान नहीं किये जा सकते। ऐसी ही हालत लुधियाना की ईडब्ल्यूएस कालोनी (आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों की कालोनी) की है।

अधिक से अधिक मुनाफ़़ेे के लालच में मज़दूरों की ज़िन्दगियों के साथ खिलवाड़ करते कारख़ाना मालिक

पिछले दिनों कुछ औद्योगिक मज़दूरों के साथ मुलाक़ात हुई जिनके काम करते समय हाथों की उँगलियाँ कट गयीं या पूरे-पूरे हाथ ही कट गये। लुधियाना के औद्योगिक इलाक़े में अक्सर ही मज़दूरों के साथ हादसे होते रहते हैं। शरीर के अंग कटने से लेकर मौत तक होना आम बात बन चुकी है। मज़दूर के साथ हादसा होने पर कारख़ाना मालिकों का व्यवहार मामले को रफ़ा-दफ़ा करने वाला ही होता है। बहुत सारे मसलों में तो मालिक मज़दूरों का इलाज तक नहीं करवाते, मुआवज़ा देना तो दूर की बात है।

हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों और पुलिस को जनवादी जनसंगठनों की एकता ने दिया मुँहतोड़ जवाब

पुलिस की हिन्दुत्वी कट्टरपंथियों से मिलीभगत भी एकदम उजागर हो गई। पुलिस ने इन हमलावरों पर कार्रवाई करने की जगह जनचेतना की प्रबन्धक बिन्नी और वहाँ मौजूद टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के प्रधान लखविन्दर, कारखाना मज़दूर यूनियन के नेता गुरजीत (समर) और नौजवान भारत सभा के सक्रिय सदस्य सतबीर को ही हिरासत में ले लिया था और जनचेतना की दुकान को सील कर दिया था। शाम को जन दबाव के बाद इन सब को रिहा कर दिया गया लेकिन 3 जनवरी को दोपहर 12 बजे थाने बुलाया गया था।

लुधियाना में ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की शुरुआत

2 अक्टूबर 2016 को मज़दूर पुस्तकालय, लुधियाना में स्त्रियों की एक मीटिंग हुई। इस मीटिंग में समाज में स्त्रियों की बुरी हालत के बारे में और इस हालत को बदलने के लिए स्त्रियों को जागरूक व संगठित करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की गयी। मज़दूर स्त्रियों की हालत और भी बुरी है। घर और बाहर दोनों जगहों पर स्त्री मज़दूरों को बेहद भयंकर हालातों का सामना करना पड़ता है। मर्दों के बराबर या अधिक काम करने के बावजूद भी उन्हें पुरुष मज़दूरों से कम वेतन मिलता है।

शहीद-ए-आज़म के जन्मदिवस पर लुधियाना में मज़दूर संगठनों द्वारा जातिवाद विरोधी अभियान

शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर इस बार टेक्सटाईल हौजरी कामगार यूनियन व कारखाना मज़दूर यूनियन द्वारा 25 से 28 सितम्बर तक लुधियाना में जातिवाद विरोधी अभियान चलाया गया। इस अभियान के तहत यूनियनों द्वारा एक पर्चा जारी किया गया। विभिन्न इलाकों में नुक्कड़ सभाएँ व पैदल मार्च आयोजित किए गये। 28 सितम्बर को मज़दूर पुस्तकालय, ताजपुर रोड, लुधियाना पर जातिवाद के बारे में मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित फिल्म ‘सदगति’ दिखायी गयी और विचार-चर्चा आयोजित की गयी।

कारख़ाने में हादसे में मारे गये मज़दूर को मुआवज़ा दिलाने के लिए टेक्सटाईल-हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में संघर्ष

कई कारखानों के मज़दूर हड़ताल करके धरने-प्रदर्शन में शामिल हुए। लुधियाना में किसी कारखाने में हादसा होने पर मज़दूर के मारे जाने पर आम तौर पर मालिक पुलिस व श्रम विभाग के अफसरों से मिलीभगत से, दलालों की मदद से पीड़ित परिवारों को 20-25 हज़ार देकर मामला रफा दफा करने में कामयाब हो जाते हैं। लेकिन जब मज़दूर एकजुट होकर लड़ते हैं तो उन्हें अधिक मुआवजा देना पड़ता है। इस मामले में भी मालिक ने यही कोशिश की। लेकिन टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में एकजुट हुए मज़दूरों ने पुलिस और मालिक को एक हद तक झुकने के लिए मज़बूर कर दिया। पुलिस को मालिक को हिरासत में लेने पर मज़बूर होना पड़ा। मालिक को पीड़ित परिवार को दो लाख रुपये मुआवजा देना पड़ा।

‘मज़दूर बिगुल’ के बारे में मज़दूर परिवार की एक बच्ची के विचार

यह मज़दूरों का अखबार है। यह चन्दा इकठ्ठा करके छपता है। इस अखबार में कुछ भी छिपाया नहीं जाता। इसमें कोई भी बात छिपाई नहीं जाती। इसमें यह छपता है कि मज़दूर अपना घर कैसे चलाता है।

कारखानों में श्रम कानून लागू करवाने के लिए लुधियाना में ज़ोरदार रोष प्रदर्शन

पहले तीखी धूप और फिर घण्टों तक भारी बारिश के बावजूद मज़दूर कारखानों में हड़ताल करके डी.सी. कार्यालय पहुँचे। डी.सी. कार्यालय के गेट तक पहुँचने पर लगाए गए अवरोध मज़दूरों के आक्रोश के सामने टिक नहीं पाए। मज़दूरों ने गगनभेदी नारों के साथ भरत नगर चौक से डी.सी. कार्यालय तक पैदल मार्च किया। डी.सी. कार्यालय के गेट पर भारी बारिश के बीच मज़दूर धरने पर डटे रहे, ज़ोरदार नारे बुलन्द करते रहे, मज़दूर नेताओं का भाषण ध्यान से सुनते रहे। उन्होंने माँग की कि कारखानों में हादसों से मज़दूरों की सुरक्षा के पुख्‍़ता इंतज़ाम किए जाएँ, हादसा होने पर पीड़ितों को जायज़ मुआवज़ा मिले, दोषी मालिकों को सख़्त सज़ाएँ हों, मज़दूरों की उज़रतों में 25 प्रतिशत बढ़ोतरी की जाए, न्यूनतम वेतन 15000 हो, ई.एस.आई., ई.पी.एफ., बोनस, पहचान पत्र, हाजिरी कार्ड, लागू हो, मज़दूरों से कारखानों में बदसलूकी बन्द हो, स्त्री मज़दूरों के साथ छेड़छाड़, व भेदभाव बन्द हो, उन्हें समान काम का पुरुषों के समान वेतन दिया जाए।

लुधियाना के मज़दूर संघर्ष की राह पर

पहले से ही भयानक ग़रीबी-बदहाली का जीवन जीने पर मज़बूर मज़दूरों का बढ़ी महँगाई ने और भी बुरा हाल कर दिया है। मालिक मंदी का बहाना बनाकर मज़दूरों के वेतन में वृद्धि करने को तैयार नहीं हैं। श्रम क़ानूनों के तहत अन्य अधिकार (बोनस, ई.एस.आई., ई.पी.एफ. आदि) भी जिन मज़दूरों को मिल भी रहे हैं वे भी छीने जा रहे हैं। ऐसे में मज़दूरों में पूँजीपतियों के ख़ि‍लाफ़ रोष का बढ़ना स्वाभाविक है। टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन मज़दूरों के बीच में लगातार यह प्रचार कर रही है कि मंदी का बोझ मज़दूरों पर लादे जाने के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों को लड़ना होगा। मन्दी है तो पूँजीपति अपने मुनाफ़ों में कटौती करें मज़दूरों के वेतन व अन्य न्यायपूर्ण सुविधाओं पर डकैती न डालें।