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टेक्सटाइल-होज़री मज़दूरों की हड़तालों ने अड़ियल मालिकों को झुकने के लिए मजबूर किया

मौजूदा समय में जब कारख़ाना इलाक़ों में मालिकों का एक किस्म का जंगल राज क़ायम है, मज़दूरों के अधिकारों को बर्बरता पूर्वक कुचला जा रहा है, जब सरकार, पुलिस-प्रशासन, श्रम विभाग आदि सब सरेआम मालिकों का पक्ष लेते हैं, जब मज़दूरों में एकता का बड़े पैमाने पर अभाव है और दलाल ट्रेड यूनियन व नेताओं का बोलबाला है, ऐसे समय में छोटे पैमाने पर ही सही मज़दूरों द्वारा एकजुटता बनाकर लड़ना और एक हद तक जीत हासिल करना महत्वपूर्ण बात है।

कारख़ानों में सुरक्षा के पुख्ता प्रबंधों के लिए मज़दूरों का डी.सी. कार्यालय पर ज़ोरदार प्रदर्शन

लुधियाना ही नहीं बल्कि देश के सभी कारख़ानों में रोजाना भयानक हादसे होते हैं जिनमें मज़दूरों की मौते होती हैं और वे अपाहिज होते हैं। मालिकों को सिर्फ अपने मुनाफे़ की चिन्ता है। मज़दूर तो उनके के लिए सिर्फ मशीनों के पुर्जे बनकर रह गये हैं। सारे देश में पूँजीपति सुरक्षा सम्बन्धी नियम-क़ानूनों सहित तमाम श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं।

मालिकों की नज़र में मज़दूर मशीनों के पुर्जे हैं

मालिक और मैनेजमैंट के ही कहने पर प्रेस मशीनों से सैंसर आदि हटा दिये जाते हैं या खराब होने पर ठीक नहीं करवाये जाते। कारख़ाने में माहौल ऐसा बना दिया जाता है कि मशीनों में बहुत सी गड़बड़ियों को ठीक करने का मतलब समय और पैसा खराब करना होगा। मज़दूरों की शिकायतों को कामचोरी मान लिया जाता है।

मुनाफे की खातिर मज़दूरों की हत्याएँ आखिर कब रुकेंगी ?

मज़दूरों की दर्दनाक मौत का कसूरवार स्पष्ट तौर पर मालिक ही है। कारखाने में आग लगने से बचाव के कोई साधन नहीं हैं। आग लगने पर बुझाने के कोई साधन नहीं हैं। रात के समय जब मज़दूर काम पर कारखाने के अन्दर होते हैं तो बाहर से ताला लगा दिया जाता है। उस रात भी ताला लगा था। जिस हॉल में आग लगी उससे बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जहाँ भयानक लपटें उठ रही थीं। करोड़ों-अरबों का कारोबार करने वाले मालिक के पास क्या मज़दूरों की जिन्दगियाँ बचाने के लिए हादसों से सुरक्षा के इंतज़ाम का पैसा भी नहीं है? मालिक के पास दौलत बेहिसाब है। लेकिन पूँजीपति मज़दूरों को इंसान नहीं समझते। इनके लिए मज़दूर कीड़े-मकोड़े हैं, मशीनों के पुर्जे हैं। यह कहना जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है कि ये महज हादसे में हुई मौतें नहीं है बल्कि मुनाफे की खातिर की गयी हत्याएँ हैं।

पावर प्रेस मज़दूर की उँगली कटी, मालिक बोला मज़दूर ने जानबूझ कर कटवाई है!

उसका दायाँ हाथ अभी प्रेस के बीच में ही था कि ढीला क्लच दब गया। अँगूठे के साथ वाली एक उँगली कट गयी। मालिक उसे उठाकर एक निजी अस्पताल ले गया। मालिक ने कहा कि वह पुलिस के पास न जाए। पूरा इलाज करवाने, हमेशां के लिए काम पर रखने, मुआवजा देने आदि का भरोसा दिया। गजेंदर मालिक की बातों में आ गया। पन्द्रह दिन भी नहीं बीते थे कि उसे काम से निकाल दिया गया। मालिक ने इलाज करवाना बन्द कर दिया और अन्य किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद करने करने से भी साफ मुकर गया।

तीन मज़दूरों की दर्दनाक मौतों का जिम्मेदार कौन?

लुधियाना ही नहीं बल्कि देश के तमाम कारखानों में ये हालात बन चुके हैं। कहीं कारखानों की इमारतें गिर रही हैं, कहीं खस्ताहाल ब्वायलर व डाईंग मशीनें फट रही हैं और कहीं कारखानों में आग लगने से मज़दूर जिन्दा झुलस रहें हैं। और सोचने वाली बात है कि कहीं भी मालिक नहीं मरता, हमेशा गरीब मज़दूर मरते हैं। हादसे होने पर सरकार, पुलिस, प्रशासन, श्रम अधिकारियों की मदद से मामले रफा-दफा कर दिए जाते हैं। बहुतेरे मामलों में तो मालिक हादसे का शिकार मज़दूरों को पहचानने से ही इनकार कर देते हैं। मज़दूरों को न तो कोई पहचान पत्र दिया जाता है और न ही पक्का हाजिरी कार्ड दिया जाता है। ई.एस.आई. और ई.पी.एफ. सहूलतों के बारे में तो मज़दूरों के बड़े हिस्से को पता तक नहीं है। इन हालातों में मालिकों के लिए मामला रफा-दफा करना आसान हो जाता है।

तय जगह पर, आज्ञा लेकर व फ़ीस देकर विरोध करो वरना जेल जाओ!

यह फ़ासीवादी फ़रमान पंजाब के ज़िला लुधियाना के प्रशासन ने जारी किया है। डी.सी. लुधियाना ने तय किया है कि धरने शहर के बाहरी हिस्से में सिर्फ़ चण्डीगढ़ रोड पर स्थित गलाडा मैदान (जिसे पुडा मैदान भी कहते हैं) पर ही लगेंगे और वहाँ धरना लगाने के लिए भी पहले से आज्ञा लेनी होगी। इसकी फ़ीस 7500 रुपये होगी। इस फ़रमान की उल्लंघना करने पर पुलिस केस, क़ैद आदि सज़ाएँ देने का ऐलान किया गया है। लुधियाना प्रशासन का धरनों के लिए एक जगह तय करने का फ़रमान घोर जनविरोधी और ग़ैरजनवादी ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है। यह संविधान की धारा 19 की स्पष्ट उल्लंघना है जिसके तहत लोगों को अपने विचारों के प्रचार-प्रसार, संगठित होने व संघर्ष करने की आज़ादी है।
इस सम्बन्ध में डी.सी. ने लुधियाना के पुलिस कमिश्नर को इस आदेश को लागू करने के लिए पत्र भेज दिया है। उधर इस फ़रमान को रद्द करवाने के लिए जनवादी-इंसाफ़पसन्द जनसंगठनों ने भी कमर कस ली है। लुधियाना प्रशासन को माँगपत्र सौंपकर इस फ़ैसले को पूरी तरह रद्द करने की माँग की गयी है।

ढण्डारी अपहरण, बलात्कार व क़त्ल काण्ड की पीड़िता शहनाज़ की पहली बरसी पर श्रद्धांजलि समागम

शहनाज़ को 4 दिसम्बर को एक गुण्डा गिरोह ने मिट्टी का तेल डालकर आग लगाकर जला दिया था। इससे पहले शहनाज़ को 25 अक्टूबर को अगवा करके दो दिन तक सामूहिक बलात्कार किया गया। राजनीतिक सरपरस्ती में पलने वाले इस गुण्डा गिरोह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में पुलिस ने बेहद ढिलाई बरती, पीड़ितों की ढंग से सुनवाई नहीं की गयी, रिपोर्ट लिखने और मेडिकल करवाने में देरी की गयी। बलात्कार व अगवा करने के दोषी 18 दिन बाद जमानत करवाने में कामयाब हो गये। गुण्डा गिरोह ने शहनाज़ और उसके परिवार को केस वापिस लेने के लिए डराया, जान से मारने की धमकियाँ दीं। 4 दिसम्बर को दिन-दिहाड़े सात गुण्डों ने उसे मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। 9 दिसम्बर को उसकी मौत हो गयी। गुण्डा गिरोह के इस अपराध व गुण्डा-सियासी-पुलिस-प्रशासनिक नापाक गठजोड़ के ख़िलाफ़ हज़ारों लोगों द्वारा ‘संघर्ष कमेटी’ के नेतृत्व में विशाल जुझारू संघर्ष लड़ा गया था। जनदबाव के चलते दोषियों को सज़ा की उम्मीद बँधी हुई है। क़त्ल काण्ड के सात दोषी जेल में बन्द हैं। अदालत में केस चल रहा है। पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में की गयी गड़बड़ियों के चलते अगवा व बलात्कार का एक दोषी जमानत पर आज़ाद घूम रहा है। इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की गयी है और उसे भी जेल पहुँचाने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है।

साम्प्रदायिक विरोधी संयुक्त मोर्चे द्वारा फासीवाद के खिलाफ़ ज़ोरदार रोष प्रदर्शन

वक्ताओं ने कहा कि हिन्दु धर्म को खतरा, गाय को खतरा, तथाकथित लव-जेहाद से हिन्दु लडकियों को खतरा, आदि खतरों के हौवे इसलिए खडे किये जा रहे हैं क्योंकि हुक्मरानों को जनाक्रोश से खतरा है। मुट्ठीभर धनाढ्य वर्गों को महँगाई, बेरोजगारी, गरीबी, बदहाली से त्रस्त देश की 85 प्रतिशत आबादी से खतरा है। हुक्मरानों को लोगों की हक, सच, इंसाफ की आवाज उठाने, संगठित होने, संघर्ष करने, लिखने, बोलने, विचार व्यक्त करने के जनवादी अधिकारों से खतरा है। हुक्मरानों को देशी-विदेशी पूँजीपतियों के पक्ष में लागू की जा रही निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ़, सरकारों द्वारा श्रमिक अधिकारों के हनन, जबरन जमीनें हथियाने आदि के खिलाफ़ लोगों के आगे बढ़ रहे संघर्षों से खतरा है।

शहीद भगतसिंह के 108वें जन्मदिवस पर पूँजीवाद और साम्प्रदायिक फासीवाद से लड़ने का संकल्प

विचार-चर्चा में जाति-प्रथा के पैदा होने के कारण, शुरुआती दौर में जाति-प्रथा के स्वरूप, समय के साथ इसमें आये बदलावों, और वर्तमान दौर में जाति-प्रथा को बनाये रखने में पूँजीवादी व्यवस्था की भूमिका पर खुलकर चर्चा हुई। किस तरह आज 21वीं सदी में भी जातिवादी मानसिकता लोगों के दिमागों में जड़ जमाये हुए है और दलित तथा पिछड़ी जातियों को क़दम-क़दम पर मानसिक तथा शारीरिक जाति-आधरित उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है इस पर विस्तार से बात हुई। जनता को धर्म के नाम पर बाँटने की साम्प्रदायिक संगठनों की घृणित चालों पर भी बातचीत हुई। नौभास की ओर से तपीश ने कहा कि जनता को रोजी-रोटी, गरीबी, बेरोज़गारी जैसे उसके असली मुद्दों से भटकाकर उसकी वर्ग-एकजुटता को तोड़ना ही साम्प्रदायिक ताकतों का असली मक़सद होता है। इन साम्प्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए आम घरों के युवाओं तथा नागरिकों को आगे आना होगा।