Category Archives: महान शिक्षकों की क़लम से

लेनिन – मज़दूर अख़बार – किस मज़दूर के लिए

और अन्त में, औसत मज़दूरों के संस्तर के बाद वह व्यापक जनसमूह आता है जो सर्वहारा वर्ग का अपेक्षतया निचला संस्तर होता है। बहुत मुमकिन है कि एक समाजवादी अख़बार पूरी तरह या तक़रीबन पूरी तरह उनकी समझ से परे हो (आख़िरकार पश्चिमी यूरोप में भी तो सामाजिक जनवादी मतदाताओं की संख्या सामाजिक जनवादी अख़बारों के पाठकों की संख्या से कहीं काफ़ी ज्‍़यादा है), लेकिन इससे यह नतीजा निकालना बेतुका होगा कि सामाजिक जनवादियों के अख़बार को, अपने को मज़दूरों के निम्नतम सम्भव स्तर के अनुरूप ढाल लेना चाहिए। इससे सिर्फ़ यह नतीजा निकलता है कि ऐसे संस्तरों पर राजनीतिक प्रचार और आन्दोलनपरक प्रचार के दूसरे साधनों से प्रभाव डालना चाहिए – अधिक लोकप्रिय भाषा में लिखी गयी पुस्तिकाओं, मौखिक प्रचार तथा मुख्यत: स्थानीय घटनाओं पर तैयार किये गये परचों के द्वारा।

स्तालिन – जनता से जुड़ाव ही क्रान्तिकारियों को अजेय बनाता है!

जनता के साथ संपर्क, इन संपर्कों को सुदृढ़ बनाना, जनता की आवाज सुनने के लिए तत्पर रहना, इसी में बोल्‍शेविक (कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी – सं.) नेतृत्व की शक्ति और अजेयता रहती है। इसे एक नियम के रूप में माना जा सकता है कि जब तक बोल्‍शेविक व्यापक जनता के साथ सम्पर्क रखते हैं, तब तक वे अजेय बने रहेंगे। और इसके विपरीत, बोल्‍शेविकों के लिए बस इतना ही काफी है कि वे जनता से दूर हो जायें, जनता के साथ उनका रिश्ता टूट जाये तो फिर उनमें नौकरशाहियत का जंग लग जायेगा, उनकी सारी शक्ति जाती रहेगी और वे नगण्य हो जायेंगे।

बिगुल पुस्तिका – 1 : कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा

यह पुस्तिका लेनिन द्वारा प्रतिपादित बुनियादी सांगठनिक उसूलों को सरल रूप में और साथ ही सूत्रवत् प्रस्तुत करती है। दरअसल इसे 1921 में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की तीसरी कांग्रेस में ‘कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन पर प्रस्ताव’ शीर्षक से दस्तावेज़ के रूप में प्रस्तुत किया गया था और पारित किया गया था। इसका मसविदा स्वयं लेनिन ने तैयार किया था। आज यह दुर्लभ दस्तावेज़ विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन की धरोहर बन चुका है। इसका महत्त्व न सिर्फ़ ऐतिहासिक है बल्कि मज़दूर वर्ग के लिए तथा कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के लिए आज भी यह एक बेहद ज़रूरी किताब है। वे तमाम मज़दूर साथी और कार्यकर्ता कॉमरेडगण जो आज नये सिरे से एक क्रान्तिकारी पार्टी बनाने के बारे में संजीदगी के साथ सोचते हैं, उनसे हमारी पुरज़ोर सिफ़ारिश है कि इस पुस्तिका को ज़रूर पढ़ें और कई बार पढ़ें और इसे आज अपने देश की परिस्थितियों से जोड़कर देखें।

लेनिन – मेहनतकश वर्ग के चेतना की दुनिया में प्रवेश करने का जश्न

एक तरफ खड़े हैं ख़ून चूसने वाले मुट्ठी भर अमीरो-उमरा, उन्होंने फैक्टरियाँ और मिलें, औज़ार और मशीनें हथिया रखे हैं, उन्होंने करोड़ों एकड़ ज़मीन और दौलत के पहाड़ों को अपनी निजी जायदाद बना लिया है, उन्होंने सरकार और फौज को अपना ख़िदमतगार, लूट-खसोट से इकट्ठा की हुई अपनी दौलत की रखवाली करने वाला वफादार कुत्ता बना लिया है। दूसरी तरफ खड़े हैं उनकी लूट के शिकार करोड़ों ग़रीब। वे मेहनत-मज़दूरी के लिए भी उन धन्‍ना सेठों के सामने हाथ फैलाने पर मजबूर हैं। इनकी मेहनत के बल से ही सारी दौलत पैदा होती है। लेकिन रोटी के एक टुकड़े के लिए उन्हें तमाम उम्र एड़ियाँ रगड़नी पड़ती हैं। काम पाने के लिए भी गिड़गिड़ाना पड़ता है, कमरतोड़ श्रम में अपने ख़ून की आख़िरी बूँद तक झोंक देने के बाद भी गाँव की अँधेरी कोठरियों और शहरों की सड़ती, गन्दी बस्तियों में भूखे पेट ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ती है। लेकिन अब उन ग़रीब मेहनतकशों ने दौलतमन्दों और शोषकों के ख़िलाफ जंग का ऐलान कर दिया है। तमाम देशों के मज़दूर श्रम को पैसे की ग़ुलामी, ग़रीबी और अभाव से मुक्त कराने के लिए लड़ रहे हैं जिसमें साझी मेहनत से पैदा हुई दौलत से मुट्ठी भर अमीरों को नहीं बल्कि सब मेहनत करने वालों को फायदा होगा। वे ज़मीन, फैक्टरियों, मिलों और मशीनों को तमाम मेहनतकशों की साझी मिल्कियत बनाना चाहते हैं। वे अमीर-ग़रीब के अन्तर को ख़त्म करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मेहनत का फल मेहनतकश को ही मिले, इन्सानी दिमाग़ की हर उपज काम करने के तरीक़ों मे आया हर सुधार मेहनत करने वालों के जीवन स्तर में सुधार लायें उसके दमन का साधन न बनें।