Category Archives: महान शिक्षकों की क़लम से

लेनिन-धर्म के बारे में मजदूरों की पार्टी का रुख

मार्क्सवाद भौतिकवाद है। इस कारण यह धर्म का उतना ही निर्मम शत्रु है जितना कि अठारहवीं सदी के विश्वकोषवादी पण्डितों का भौतिकवाद या फ़ायरबाख का भौतिकवाद था, इसमें सन्देह की गुंजाइश नहीं है। लेकिन मार्क्स और एंगेल्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद विश्व कोषवादियों और फ़ायरबाख से आगे निकल जाता है, क्योंकि यह भौतिकवादी दर्शन को इतिहास के क्षेत्र में, सामाजिक विज्ञानों के भी क्षेत्र में, लागू करता है। हमें धर्म के विरुद्ध लड़ाई लड़नी चाहिए-यह समस्त भौतिकवाद का क ख ग है, और फ़लस्वरूप मार्क्सवाद का भी। लेकिन मार्क्सवाद ऐसा भौतिकवाद नहीं है, जो क ख ग पर ही रुक गया। वह आगे जाता है। वह कहता हैः हमें यह भी जानना चाहिये कि धर्म के विरुद्ध कैसे लड़ाई लड़ी जाये, और यह करने के लिये जनता के बीच हमें ईश्वर और धर्म के मूल की व्याख्या भी भौतिकवादी पद्धति से करनी होगी।

माओ-सिद्धान्त और व्यवहार के मेल से ही सच्चा ज्ञान हासिल हो सकता है!

जिन्होंने सिर्फ़ किताबी ज्ञान प्राप्त किया है उन्हें सच्चे मायने में बुद्धिजीवी कैसे बनाया जा सकता है इसका सिर्फ़ एक ही तरीका है कि वे व्यावहारिक कार्य में भाग लें और व्यावहारिक कार्यकर्ता बनें तथा जो लोग सैद्धांतिक कार्य में लगे हुए हैं वे महत्वपूर्ण व्यावहारिक समस्याओं का अध्ययन करें। इस प्रकार हम अपने उद्देश्य में सफ़ल होंगे।

“संसदीय रास्ते का खंडन”

क्रान्तिकारी सर्वहारा पार्टी को पूंजीवादी संसद–व्यवस्था में इसलिये हिस्सा लेना चाहिए, ताकि जनता को जगाया जा सके, और यह काम चुनाव के दौरान तथा संसद में अलग–अलग पार्टियों के बीच के संघर्ष के दौरान किया जा सकता है। लेकिन वर्ग–संघर्ष को केवल संसदीय संघर्ष तक ही सीमित रखने, अथवा संसदीय संघर्ष को इतना ऊंचा और निर्णयात्मक रूप देने कि संघर्ष के बाकी सब रूप उसके अधीन हो जाएं, का मतलब वास्तव में पूंजीपति वर्ग के पक्ष में चले जाना और सर्वहारा वर्ग के खिलाफ हो जाना है।

माओ – सच्चा ज्ञान क्या है?

जिन्होंने सिर्फ किताबी ज्ञान प्राप्त किया है उन्हें सच्चे मायने में बुद्धिजीवी कैसे बनाया जा सकता है? इसका सिर्फ एक ही तरीका है कि वे व्यावहारिक कार्य में भाग लें और व्यावहारिक कार्यकर्ता बनें तथा जो लोग सैद्धांतिक कार्य में लगे हुए हैं वे महत्वपूर्ण व्यावहारिक समस्याओं का अध्ययन करें। इस प्रकार हम अपने उद्देश्य में सफल होंगे।…

नई भरती करो / लेनिन

‘व्पेर्योद’ केा रूस पहुँचाने के काम में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का कार्यभार रखना चाहिए। सेंट पीटर्सबर्ग में ग्राहक बढ़ाने के लिए जोरदार प्रचार कीजिए। विद्यार्थी और खास तौर पर मजदूर अपने पतों पर ही दसियों-सैकड़ों प्रतियाँ मँगायें। इन दिनों के माहौल में इससे डरना बेतुका है। सब कुछ तों पुलिस पकड़ नहीं पायेगी। आधो-तिहाई तो पहुँचेंगे ही और यही बहुत है। नौजवानों के हर मण्डल को यह विचार सुझाइये और वे तो विदेश से सम्पर्क बनाने के अपने सैकड़ों रास्ते खोज लेगें। ‘व्पेर्योद’ केा पत्र भेजने के लिए पते अधिक से अधिक लोगों को दीजिये।

स्‍तालिन – मजदूरों का समाजवाद क्या है?

मौजूदा समाज-व्यवस्था पूँजीवादी व्यवस्था है। इसका मतलब यह है कि दुनिया दो विरोधी दलों में बँटी हुई है। एक दल थोड़े से मुट्ठी भर पूँजीपतियों का है। दूसरा दल बहुमत का, यानी मजदूरों का है। मजदूर दिन रात काम करते हैं, परन्तु फिर भी गरीब रहते हैं। पूँजीपति काम कौड़ी का नहीं करते, परन्तु फिर भी मालामाल रहते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि मजदूरों में बुद्धि नहीं है और पूँजीपति अकल के पुतले हैं। ऐसा इसलिए होता है कि पूँजीपति मजदूरों की मेहनत के फल को हड़प लेते है, मजदूरों का शोषण करते हैं। पर इसका क्या कारण है कि मजदूरों की मेहनत से जो कुछ पैदा होता है उस पर पूँजीपति कब्जा कर लेते हैं और वह मजदूरों को नहीं मिलता? इसकी क्या वजह है कि पूँजीपति मजदूरों का शोषण करते हैं और मजदूर पूँजीपतियों का शोषण नहीं करते?

जोसेफ़ स्तालिन की एक दुर्लभ कविता

उसकी पीठ और कमर झुक गई थी
लगातार काम करते करते।
जो कल तक दासता की बेड़ियों में बंद
घुटने टेके हुए था,
वह अपनी आशा के पंखों पर उड़ेगा
सबसे ऊपर, ऊपर उठेगा।
मैं कहता हूँ उसकी ऊंचाई पर
पहाड़ तक
अचरज और ईर्ष्या करेंगे।

मज़दूर नायक : क्रान्तिकारी योद्धा – इवान वसील्येविच बाबुश्किन – बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता

रूस में जिन थोड़े से उन्नत चेतना वाले मज़दूरों ने कम्युनिज़्म के विचारों को सबसे पहले स्वीकार किया और फिर आगे बढ़कर पेशेवर क्रान्तिकारी संगठनकर्ता की भूमिका अपनायी तथा पूरा जीवन पार्टी खड़ी करने और क्रान्ति को आगे बढ़ाने के काम में लगाया उनमें पहला नाम इवान वसील्येविच बाबुश्किन (1873-1906) का आता है। 1894 में बाबुश्किन जब कम्युनिस्ट बना तो उसकी उम्र महज़ 21 वर्ष थी।

मज़दूर नायक : क्रान्तिकारी योद्धा – रॉबर्ट शा: विश्व सर्वहारा क्रान्ति के इतिहास के मील के पत्थरों में से एक

रॉबर्ट शा उन राजनीतिक चेतनासम्पन्न मज़दूरों में से एक थे जिन्होंने पहले इण्टरनेशनल के निर्माण के पहले ही ब्रिटिश सुधारवादी ट्रेड यूनियनवादी नेताओं के प्रभाव एवं वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया था। रॉबर्ट शा उन थोड़े से ब्रिटिश मज़दूर नेताओं में शामिल थे जो चार्टिस्ट या समाजवादी विचार रखते थे और महज़ अपने-अपने कारखानों में वेतन और सुधार की माँग के लिए लड़ने के बजाय मज़दूरों की अन्तरराष्ट्रीय एकजुटता और व्यापक वर्गीय हितों के लिए साझा संघर्ष की वकालत करते थे। इन नेताओं ने जर्मन और फ़्रांसीसी मज़दूरों और पोलिश आप्रवासियों के साथ सम्पर्क स्थापित किये। यह पहले इण्टरनेशनल की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम था।

लेनिन – हथियार और पूँजीवाद

हथियारों को एक राष्ट्रीय मामला, देशभक्ति का मामला समझा जाता है; यह माना जाता है। कि हर कोई उनके बारे में अधिकतम गोपनीयता बनाये रखेगा। लेकिन जहाज निर्माण कारखाने, तोपें, डाइनेमाइट और लघु शस्त्र बनाने के कारखाने अन्तरराष्ट्रीय उद्यम हैं, जिनमें विभिन्न देशों के पूंजीपति विभिन्न देशों की जनता को धोखा देने और मुँडने के लिए और इटली के खिलाफ ब्रिटेन के लिए और ब्रिटेन के खिलाफ इटली के लिए समान रूप से जहाज और तोपें बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं।