हथियार और पूँजीवाद

वी आई लेनिन

बिगुल के जून-जुलाई 1999 अक में हमने विशेष सम्पादकीय अग्रलेख लिखा था, ‘युद्धोन्मादी अंधराष्ट्रवाद का विरोध करो।”

कारगिल-द्रास-बटालिक में तोप अभी भी पूरी तरह शान्त नहीं हुई है। युद्ध खतम होने के बाद भी सीमा पर तनाव बना रहेगा ताकि सीमा पर खड़े दुश्मन को दिखा- दिखाकर विस्फोटक होती जा रही बुनियादी समस्याओं से दोनों देशों की जनता का ध्यान हटाया जा सके। सीमा पर लगातार बढ़ते तनाव के चलते हथियारों की होड़ तीखी होती जायेगी, रक्षा बजट बढ़ता जायेगा जिसकी कीमत चुकाने के लिए जनता को पेट पर पट्टी बांधने के लिए कहा जायेगा। देशभक्ति के जुनून में जनता ठगी जायेगी और हथियार बनाने-बेचने वाले अन्तरराष्ट्रीय इजारेदारों की खूब चांदी कटेगी तथा देशी शस्त्र निर्माण उद्योग भी खूब मुनाफा कमायेगा। इसतरह देशी-विदेशी पूँजी मन्दी और गतिरोध के संकट से भी फौरी तौर पर कुछ राहत पाती रहेगी।

हमारी पक्की राय है कि कारगिल समस्या दोनों देशों के शासक वर्ग की जरूरतों से पैदा की गई है। युद्ध का खरबों का खर्च जनता ही चुकायेगी। दोनों देशों की मेहनतकश जनता को इस बात को समझना होगा।

इस सन्दर्भ में हम लेनिन द्वारा 86 वषों पूर्व लिखी गई एक टिप्पणी ‘हथियार और पूँजीवाद’ प्रकाशित कर रहे है। हथियार-निर्माण सबसे बड़े अन्तरराष्ट्रीय उद्योगों में से एक है। हथियार बेचकर मुनाफा कमाने के लिए सभी पूँजीपति जनता को मूंडने का काम करते हैं। अन्य पहलुओं के अतिरिक्त, कारगिल प्रश्न पर सोचते समय हमें इस पहलू को भी ध्यान में रखना होगा। –सम्पादक

 

ब्रिटेन संसार के सबसे धनी, स्वतंत्र और उन्नत देशों में से एक है। ब्रिटिश “समाज” और सरकार भी हथियारों के बुखार से अरसे से उसी तरह ग्रस्त हैं, जिस तरह कि फ्रांसीसी, जर्मन तथा अन्य सरकारें।

और अब ब्रिटिश समाचार पत्र, विशेषकर मजदूरों के समाचारपत्र बहुत ही दिलचस्प आंकड़े प्रकाशित कर रहे हैं, जो हथियारों के उत्पादन के विलक्षण पूंजीवादी ढंग को प्रकट करते हैं। ब्रिटेन के नौसैनिक हथियार खासकर जबरदस्त हैं। ब्रिटेन के जहाज बनाने के कारखाने (वाइकर्स, आर्मस्ट्रांग, ब्राउन तथा अन्य) विश्वविख्यात हैं। ब्रिटेन तथा अन्य देशों द्वारा लाखों-करोड़ों रूबल युद्ध की तैयारियों पर खर्च किये जाते हैं, और यह सब निस्संदेह केवल शांति के हितों में, संस्कृति के संरक्षण के लिए, देश, सभ्यता, आदि के हितों में ही किया जा रहा है।

और हम पाते हैं कि ऐडमिरल और दोनों ही पार्टियों—कंजरवेटिव तथा लिबरल के प्रमुख राजनेता जहाज निर्माण कारखानों के, बारूद, डाइनामाइट, तोपें बनाने वाले तथा अन्य कारखानों के अंशधारी और निदेशक हैं। उन बुर्जुआ राजनीतिज्ञों की जेबों में सोने की सीधी झड़ी लगी हुई हैं, जो राष्ट्रों में हथियारों की दौड़ को भड़काने और इन विश्वासी, नासमझ, मतिमंद और दब्बू राष्ट्रों की मुंडाई करने में लगे एक अनन्य अंतरराष्ट्रीय गिरोह में इकट्ठे हो गये हैं।

हथियारों को एक राष्ट्रीय मामला, देशभक्ति का मामला समझा जाता है; यह माना जाता है। कि हर कोई उनके बारे में अधिकतम गोपनीयता बनाये रखेगा। लेकिन जहाज निर्माण कारखाने, तोपें, डाइनेमाइट और लघु शस्त्र बनाने के कारखाने अन्तरराष्ट्रीय उद्यम हैं, जिनमें विभिन्न देशों के पूंजीपति विभिन्न देशों की जनता को धोखा देने और मुँडने के लिए और इटली के खिलाफ ब्रिटेन के लिए और ब्रिटेन के खिलाफ इटली के लिए समान रूप से जहाज और तोपें बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं।

कैसा विलक्षण पूंजीवादी ढंग है! सभ्यता, कानून और व्यवस्था, संस्कृति, शांति-और करोड़ों-अरबों रूबल जहाज, डाइनेमाइट, आदि बनाने वाले पूंजी के व्यवसाइयों और ठगों द्वारा हड़पे जा रहे हैं।

ब्रिटेन त्रिराष्ट्र संघ का शत्रु है। इटली त्रिराष्ट्र संघ का सदस्य है। विख्यात वाइकर्स फर्म (ब्रिटिश) की इटली में शाखाएं हैं। इस फर्म के अंशधारी और निदेशक(घूसखोर) समाचारपत्रों के जरिये और घूसखोर संसदीय ‘‘मूर्तियों”- कंजरवेटिव और लिबरल, समान रूप से के जरिये) ब्रिटेन को इटली के खिलाफ और इटली को ब्रिटेन के खिलाफ उकसाते हैं; वे मुनाफे ब्रिटेन और इटली के मजदूरों से प्राप्त करते हैं; दोनों ही देशों की जनता की मुंडाई की जाती है। लगभग सभी कंजरवेटिव और लिबरल मंत्रिमंडल-सदस्य और संसदसदस्य इन फर्मों के अंशधारी हैं। उनमें चोली-दामन का साथ है। “महान” लिबरल मंत्री ग्लैडस्टन के सुपुत्र आर्मस्ट्रांग फर्म के एक निदेशक हैं। विख्यात नौसेना-विशेषज्ञ और नौसेना विभाग के एक उच्चाधिकारी रिअर-ऐडमिरल बैकन को 7,000 पौंड (60,000 रूबल से अधिक) के वेतन पर कावेंट्री में तोपें बनाने के एक कारखाने में नियुक्त किया गया है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री का वेतन 5,000 पौंड (लगभग 45,000 रूबल) है।

सभी पूंजीवादी देशों में भी निस्संदेह यही होता है। सरकारें पूंजीपति वर्ग के मामलों का प्रबन्ध करती हैं और प्रबन्धकों को अच्छा पैसा दिया जाता है। प्रबंधक स्वयं अंशधारी ही हैं।

और वे मुंडाई मिलकर करते हैं, “देशभक्ति” के बारे में भाषणों की आड़ में….

लेनिन, संग्रहीत रचनाएं, खण्ड 23 [16 (29) मई 1913 को लिखित]


 

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