गोरखपुर में शराब माफिया के ख़िलाफ़ नौजवान भारत सभा का संघर्ष रंग लाया
छोटे-छोटे काम-धन्धे करके मेहनत-मशक्कत से गुजारा करने वाले लोग जीवन की परेशानियों, तकलीफों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं लेकिन इसी चक्कर वे कब पेशेवर पियक्कड़ बन जाते हैं उन्हें खुद ही पता नहीं चलता है। जब उनकी खुमारी उतरती है तो अपने-आप को पहले से ज्यादा परेशान और जकड़ा हुआ पाते हैं। वे खुद तो तबाह होते ही हैं, उनका पूरा परिवार और बच्चों का भविष्य भी तबाह हो जाता है। सरकार सबकुछ जानकर भी दोगली नीति चलाती है। एक ओर वह करोड़ों रुपये खर्च करके शराबखोरी के खिलाफ प्रचार करती है और दूसरी ओर बस्ती-बस्ती में शराब की दुकानें खोलती है। इस मलिन बस्ती में मुहल्लेवासियों की इच्छा के खिलाफ सरकारी गुण्डई के दम पर दारू का अड्डा खोले रखना क्या साबित करता है? सरकार को आम नागरिकों और उनके परिवारों की फिक्र नहीं है बल्कि शराब की बिक्री से होने वाली अरबों रुपये की कमाई की चिन्ता है। हकीकत तो यह है कि सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, सब यही चाहती हैं कि हम अपने शोषण-अत्याचार, गरीबी-बेरोजगारी, महंगाई-भ्रष्टाचार और रोज-रोज होने वाले अपमान के बारे में न सोचें और नशे में डूबे रहें।