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लखनऊ मेट्रो की जगमग के पीछे मज़दूरों की अँधेरी ज़िन्दगी‍

जिन टीन के घरों में मज़दूर रहते हैं, वहाँ गर्मी के दिनों में रहना तो नरक से भी बदतर होता है, फिर भी मज़दूर चार साल से रह रहे हैं। यहाँ पानी 24 घण्टों में एक बार आता है, उसी में मज़दूरों को काम चलाना पड़ता है। इन मज़दूरों के रहने की जगह को देखकर मन में यह ख़याल आता है कि इससे अच्छी जगह तो लोग जानवरों को रखते हैं। एक 10 बार्इ 10 की झुग्गी में 5-8 लोग रहते हैं। कई झुग्गियों में तो 12-17 लोग रहते हैं।

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के ठेका मज़दूरों के लम्बे संघर्ष की एक बड़ी जीत!

डीएमआरसी के ठेका मज़दूर लम्बे समय से स्थायी नौकरी, न्यूनतम मज़दूरी, ई.एस.आई., पी.एफ. आदि जैसे अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में ठेका कर्मियों ने कई जीतें भी हासिल की जैसे कि टॉम ऑपरेटरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी को लागू करवाना, तमाम रिकॉल मज़दूरों के मुकदमों को सफलतापूर्वक लेबर कोर्ट में लड़ना। इस संघर्ष के साथ ही यूनियन पंजीकरण के लिए भी मज़दूर लगातार प्रयास कर रहे थे।

मुख्यमंत्री केजरीवाल से मिलने गये मेट्रो मज़दूरों पर बरसी पुलिस की लाठी

डीएमआरसी में सभी टॉम ऑपरेटर, हाउसकीपर, सिक्योरिटी गार्ड, एयरपोर्ट लाइन का तकनीकी स्टाफ, ट्रैक ब्वॉय आदि नियमित प्रकृति का कार्य करने के बावजूद ठेके पर रखे जाते हैं। दिल्ली ही नहीं बल्कि भारत की शान मानी जानेवाली दिल्ली मेट्रो इन ठेका कर्मचारियों को अपना कर्मचारी न मानकर ठेका कम्पनियों जेएमडी, ट्रिग, एटूजेड, बेदी एण्ड बेदी, एनसीईएस आदि का कर्मचारी बताती है, जबकि भारत का श्रम कानून स्पष्ट तौर पर यह बताता है कि प्रधान नियोक्‍ता स्वयं डीएमआरसी है। ठेका कम्पनियाँ भर्ती के समय सिक्योरिटी राशि के नाम पर वर्कर्स से 20-30 हजार रुपये वसूलती हैं और ‘रिकॉल’ के नाम पर मनमाने तरीके से काम से निकाल दिया जाता है। ज़्यादातर वर्कर्स को न्यूनतम मज़दूरी, ईएसआई, पीएफ की सुविधाएँ नहीं मिलती हैं। यहाँ श्रम कानूनों का सरेआम उल्लंघन किया जाता है।

दिल्ली मेट्रो रेल के टॉम ऑपरेटरों की 5 घण्टे की चेतावनी हड़ताल

यूँ कहने को आज दिल्ली मेट्रो रेल ज़रूर दिल्ली-एनसीआर की लाइफ़लाइन बन चुकी है, रोज़ाना 20 लाख से ज़्यादा यात्री मेट्रो में सफ़र करते हैं, दुनियाभर में दिल्ली मेट्रो रेल को हम ठेका मज़दूरों और कर्मचारियों ने नम्बर 1 मेट्रो रेल बना दिया। मगर इस चमचमती मेट्रो रेल को चलाने वाले हज़ारों ठेका मज़दूर (टॉम ऑपरेटर, सफ़ाईकर्मी और सिक्योरिटी गार्ड) की ज़िन्दगी में अँधेरा ही है। लगभग 5 हज़ार से ज़्यादा ठेका मज़दूर दिन-रात मेट्रो रेल के बेहतर परिचालन के लिए कमर-तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन बदले में डीएमआरसी और ठेका कम्पनियाँ बुनियादी श्रम-क़ानून जैसे न्यूनतम वेतन, ईएसआई, पीएफ़ या बोनस के क़ानून भी लागू नहीं करती हैं। यूँ तो प्रत्येक मेट्रो स्टेशन पर न्यूनतम मज़दूरी क़ानून के बोर्ड लगे हुए हैं लेकिन हम मज़दूर जानते हैं कि ये क़ानून सिर्फ़ बोर्ड या काग़ज़ों पर शोभा बढ़ाते हैं, असल में डीएमआरसी और ठेका कम्पनियाँ खुलेआम श्रम-क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं, जिसके खि़लाफ़ यूनियन ने कई दफ़ा डीएमआरसी और ठेका कम्पनियों को श्रम विभाग में दोषी भी साबित किया है। लेकिन श्रम विभाग की मिलीभगत से मज़दूरों को उनका जायज़ हक़ नहीं मिलता।

मेट्रो मज़दूर उमाशंकर – हादसे का शिकार या मुनाफ़े की हवस का

ठेका कम्पनियों के प्रति डी.एम.आर.सी. की वफ़ादारी जगजाहिर है तभी इन कम्पनियों द्वारा खुलेआम श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के बावजूद इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। वैसे भी ठेका कम्पनियों का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना है, सामाजिक ज़िम्मेदारी से इनका कोई सरोकार नहीं है। यही वजह है कि मेट्रो की कार्य संस्कृति भी सामाजिक सरोकारों से बहुत दूर है। तभी तो मज़दूर के शरीर पर लांचर गिरे, पुल टूटकर मज़दूर को दफनाये या ज़िन्दा मजदूर मिट्टी में दफन हो जाये, लेकिन मेट्रो निर्माण में लगी कम्पनियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

मेट्रो के ठेका कर्मचारियों ने प्रदर्शन कर डी.एम.आर.सी. प्रशासन का पुतला फूंका!

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरर्पोरेशन व ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम क़ानूनों के ग़म्भीर उल्लंघन के ख़िलाफ़ दिल्ली मेट्रो रेल कामगार यूनियन के बैनर तले सैंकड़ों मेट्रो कर्मियों ने जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन किया और डी.एम.आर.सी. प्रशासन का पुतला भी फूँका। मेट्रो कर्मियों ने बताया कि मेट्रो प्रशासन और अनुबन्धित ठेका कम्पनियों की मिलीभगत के कारण ही यहाँ श्रम-क़ानूनों का पालन नहीं किया जाता; जिसके चलते मेट्रो कर्मियों के हालात बदतर हो रहे है। ज्ञात हो कि मेट्रो प्रबन्धन अगले महीने की पहली तारीख़ को क़ानूनों को ताक़ पर रखते हुए 250 मेट्रो मज़दूरों को काम से निकाल रहा है। दिल्ली मेट्रो रेल प्रबंधन की इस कार्रवाई का विरोध करते हुए दिल्ली मेट्रो रेल कामगार यूनियन की अगुवाई में मेट्रो मज़दूरों ने डी.एम.आर.सी. प्रशासन का पुतला फूँकने के बाद एक ज्ञापन केन्द्रीय श्रम-मंत्री, क्षेत्रिय श्रमायुक्त व मेट्रो प्रबन्धक मंगू सिंह को सौंपा।

डीएमकेयू ने क़ानूनी संघर्ष में एक क़दम आगे बढ़ाया।

जैसा कि आप जानते ही होगें कि दिल्ली मेट्रो रेल में क़रीब 70 फ़ीसदी आबादी ठेका मज़दूरों की है जिसमें मुख्यत: सफ़ाईकर्मी, गार्ड तथा टिकट व मेण्टेनेंस ऑपरेटर हैं। इस मज़दूर आबादी का शोषण चमकते मेट्रो स्टेशनों के पीछे छिपा रहता है। ठेका मज़दूरों को न तो न्यूनतम वेतन, न ही ईएसआई कार्ड और साप्ताहिक अवकाश जैसी बुनियादी सुविधायें ही मिलती हैं जिसके ख़िलाफ़ 2008 में सफ़ाईकर्मियों ने एकजुट होकर ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ का गठन कर अपने हक़-अधिकारों के संघर्ष की शुरुआत की थी। यूनियन ने उस बीच ‘मेट्रो भवन’ के समक्ष कई प्रदर्शन भी किये। इन प्रदर्शन से बौखलाये डीएमआरसी और सरकारी प्रशासन का तानाशाही पूर्ण रवैया भी खुलकर सामने आया जिसके तहत 5 मई के प्रदर्शन में क़ानूनी जायज़ माँगों का ज्ञापन देने गये 46 मज़दूरों को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। लेकिन इस दमनपूर्ण कार्रवाई के बावजूद मज़दूरों ने संघर्ष जारी रखा।

हड़ताल: मेट्रो के सफ़ाईकर्मियों ने शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द की

नई दिल्ली में दिलशाद गार्डन स्टेशन पर 30 अगस्त को ए टू ज़ेड ठेका कम्पनी के सफ़ाईकर्मियों ने श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ हड़ताल की जिसका नेतृत्व दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन ने किया। इसमें दिलशाद गार्डन, मानसरोवर तथा झिलमिल मेट्रो स्टेशन के 60 सफ़ाईकर्मी शामिल थे। मेट्रो सफ़ाईकर्मियों का आरोप है कि ठेका कम्पनी तथा मेट्रो प्रशासन श्रम कानूनों को ताक पर रख कर मज़दूरों का शोषण कर रहे हैं जिससे परेशान होकर सफ़ाईकर्मियों ने हड़ताल पर जाने का रास्ता अपनाया। सफ़ाईकर्मी अखिलेश ने बताया कि देश में महँगाई चरम पर है और ऐसे में कर्मचारियों को अगर न्यूनतम वेतन भी न मिले तो क्या हम भूखे रहकर काम करते रहें? जीने के हक़ की माँग करना क्या ग़ैर क़ानूनी है? आज जब दाल 80 रुपये किलो, तेल 70 रुपये किलो, दूध 40 रुपये किलो पहुँच गया है तो मज़दूर इतनी कम मज़दूरी में परिवार का ख़र्च कैसे चला पायेगा?

दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्व में मेट्रो रेल ठेका कर्मचारियों के संघर्ष के नये दौर की शुरुआत

मेट्रो मज़दूरों का दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के तहत आन्दोलन की शुरुआत महत्वपूर्ण है क्योंकि दिल्ली मेट्रो रेल की पूरी कार्यशक्ति बेहद बिखरी हुई है। टिकट-वेण्डिंग करने वाले आठ-दस लोगों का स्टाफ अलग केबिन में बैठा दिन भर टोकन बनाता रहता है; आठ सफाईकर्मियों की शिफ्ट अलग-अलग अपने काम में लगी रहती है और सिक्योरिटी गार्ड्स भी अलग-अलग गेटों पर डयूटी पर लगे रहते हैं। यह कार्यशक्ति पूरी दिल्ली में बिखरी हुई है। इसे न तो कार्यस्थल पर ही बड़ी संख्या में एक जगह पकड़ा जा सकता है और न ही किसी एक रिहायश की जगह पर। ऊपर से दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन का तानाशाह प्रशासन और ठेका कम्पनियों की गुण्डागर्दी के आतंक! इन सबके बावजूद लम्बी तैयारी, प्रचार, स्टेशन मीटिंगों के बाद यूनियन ने सैकड़ों मज़दूरों को जुटाकर यह प्रदर्शन करके सिद्ध किया कि मेट्रो मज़दूर भी एकजुट होकर लड़ सकते हैं।

राजधानी की चमकती इमारतों के निर्माण में : ठेका मजदूरों का नंगा शोषण

उत्पादन और निर्माण कार्य में ठेकाकरण के चलते, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सी.डब्ल्यू.जी. और अन्य निर्माण कार्य में लगे कितने ही ठेका मजदूर विकास की चमक-दमक के खोखले दिखावे के चलते मौत के शिकार हो चुके हैं। एक अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार (टाइम्स ऑॅफ इण्डिया, 23 अक्टूबर, 2010, ”सी.डब्ल्यू.जी. में मरने वालों की संख्या सरकार को नहीं पता!”) सी.डब्ल्यू.जी. के निर्माण कार्य में लगे 70,500 मजदूरों में से 101 मजदूरों की दुर्घटना से मृत्यु हुई, लेकिन किसी के पास, यहाँ तक कि सरकार के पास भी मजदूरों की मृत्यु से सम्बन्धित ”सही आँकड़े” नहीं हैं।