Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

गोरखपुर में मज़दूर आन्दोलन की शानदार जीत

आज के दौर में जब कदम-कदम पर मज़दूरों को मालिकों और शासन-प्रशासन के गँठजोड़ के सामने हार का सामना करना पड़ रहा है, गोरखपुर के मज़दूरों की यह जीत बहुत महत्वपूर्ण है। इसने दिखा दिया है कि अगर मज़दूर एकजुट रहें, एक जगह लड़ रहे मज़दूरों के समर्थन में मज़दूरों की व्यापक आबादी एकजुटता का सक्रिय प्रदर्शन करे, विश्वासघातियों और दलालों की दाल न गलने दी जाये और एक कुशल नेतृत्व की अगुवाई में साहस तथा सूझबूझ से पूँजीपतियों और प्रशासन की सभी चालों का मुकाबला किया जाये तो इस कठिन समय में भी मज़दूर छोटी-छोटी जीतें हासिल करते हुए बड़ी लड़ाई में उतरने की तैयारी कर सकते हैं। इस आन्दोलन ने देशभर में, विशेषकर मज़दूर संगठनों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है और इससे गोरखपुर ही नहीं, पूरे पूर्वी प्रदेश में मज़दूर आन्दोलन का नया एजेण्डा सेट करने की शुरुआत हो गयी है। इस आन्दोलन के सबकों और इसके दौरान सामने आये कुछ ज़रूरी सवालों पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी।

अक्टूबर क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ पर बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ के अवसर पर 25 अक्टूबर को बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से लुधियाना में ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समराला चौक के पास स्थित इ.डब्ल्यू.एस. कालोनी के निष्काम विद्या मन्दिर स्कूल में आयोजित की गयी इस विचार संगोष्ठी में लगभग 50 मज़दूर शामिल हुए। उन्होंने अक्टूबर क्रान्ति के दौरान शहीद होने वाले हजारों मज़दूर शहीदों की याद में खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा और मज़दूर वर्ग का अन्तरराष्ट्रीय गीत ”इण्टरनेशनल” गाया।

दिल्ली मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की सफल हड़ताल

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने घोषणा की कि जब तक कर्मचारियों की जायज माँगें पूरी नहीं हो जाती तब तक अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी। मेट्रो फीडर की इस हड़ताल को प्रिण्ट व इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कवर किया। मीडिया में खबरें आने के बाद डी.एम.आर.सी. अपनी जान बचाने के लिए कर्मचारियों पर पुलिस प्रशासन से दबाव डलवाने लगा और ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ को लांछित और बदनाम करने की पुरजोर कोशिश करने लगा। परन्तु मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की अटूट एकजुटता और एकता के आगे ये तमाम चालबाजियाँ और हथकण्डे धरे के धरे रह गये।

नये संकल्पों और नयी शुरुआतों के साथ मना शहीदेआजम भगतसिंह का जन्मदिवस

देश का शोषक हुक्मरान वर्ग जनता के सच्चे नायकों की यादों को पत्थर की मूर्तियों में बदल देना चाहता है। ऐसा ही शहीद भगतसिंह की याद के साथ किया जा रहा है। शहीद भगतसिंह के विचारों और जनता के दुश्मन वर्ग आज उनका नाम ग़लत अर्थों में ले रहे हैं। उन्होंने क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास के पन्ने पलटते हुए दिखाया कि शहीद भगतसिंह और उनके साथियों नें भारत में समाजवाद के निर्माण का सपना देखा और इसके लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि भारतीय मेहनतकश जनता की सच्ची आजादी समाजवाद में ही आ सकती है, सिर्फ अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी हासिल कर लेने से जनता की हालत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सुखविन्दर ने कहा कि आज आजाद भारत में भी मेहनतकश ग़रीबी, भुखमरी, बदहाली की जिन्दगी जी रहे हैं। जितने जुल्म अंग्रेजों ने भारतीय मेहनतकश जनता पर किये, उससे कहीं अधिक जुल्म भारतीय हुक्मरानों के शासन में किये गये हैं। उन्होंने कहा कि शहीद भगतसिंह के सपनों के समाज के निर्माण के पथ पर चलना ही शहीद भगतसिंह की कुर्बानी और विचारधारा को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

जब एक हारी हुई लड़ाई ने जगाई मजदूरों में उम्मीद और हौसले की लौ…

इस छोटे से संघर्ष ने ही यह दिखा दिया कि हमारे देश में लोकतन्त्र की असलियत क्या है! मजदूरों को उनके हक से वंचित करने के लिए मिल मालिक ने साम-दाम-दण्ड-भेद की हर चाल चली। पहले ही दिन जब 4 अक्टूबर की शाम को मजदूर आन्दोलन की नोटिस देने के लिए शाहाबाद डेयरी थाने में गये तो मालिक के इशारे पर वहाँ पहले से तैयार पुलिस वालों ने उन पर हमला किया और सभी मजदूरों तथा साथ गये ‘बिगुल मजदूर दस्ता’ के दो साथियों को बुरी तरह पीटा। लेकिन जब मजदूर अपनी बात पर अड़े रहे तो आखिरकार पुलिस को नोटिस स्वीकार करना पड़ा। इसके बाद भी लगभग हर दिन धरना स्थल पर पुलिस के लोग आकर मजदूरों को डराने-धमकाने की कोशिश करते थे, लेकिन मजदूरों की एकजुटता के आगे उनकी एक न चली। मजदूरों ने 5 अक्टूबर को धरने पर बैठने से पहले ही डी.एल.सी. कार्यालय में ज्ञापन देकर सारी स्थिति से उन्हें अवगत करा दिया था लेकिन श्रम विभाग के अधिकारी केवल काग़जी कार्रवाई ही करते रहे। 8 अक्टूबर को उपश्रमायुक्त (डीएलसी) के कार्यालय में मालिक के साथ वार्ता रखी गयी थी, लेकिन मालिक ने चिट्ठी भिजवा दी कि ये मजदूर उसके कर्मचारी ही नहीं हैं, जबकि ये मजदूर 3 से 6 साल तक से उस मालिक के लिए काम रहे हैं। इन मजदूरों की कमरतोड़ मेहनत के दम पर मालिक ने करोड़ों का मुनाफा बटोरा है, लेकिन मजदूरों को उनका थोड़ा-सा जायज हक देने से बचने के लिए उसने एक मिनट में उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया।

रामपुर-चंदौली के पाँच बोरा कारखानों के मजदूरों के आन्दोलन की आंशिक जीत

इलाके का थानेदार सपा शासन में मुलायम सिंह यादव का खास रहा बताया जाता है और एनकाउण्टर स्पेशलिस्ट के रूप में कुख्यात है। 11 अक्टूबर को वह अचानक पुलिस फोर्स के साथ फैक्टरी गेट पर पहुँचा और बिगुल मजदूर दस्ता के साथियों को जीप में बैठाकर कुछ दूर ले गया। उसके बाद उसने फैक्‍ट्री गेट पर मिल मालिकों को बुलाकर आनन-फानन में मजदूरों के सामने समझौते की घोषणा करा दी। इसके अनुसार मजदूरों की मजदूरी 10 प्रतिशत बढ़ायी जायेगी और सभी मजदूरों को कम्पनी का आई-कार्ड दिया जायेगा। तालमेल की कमी और नेताओं की गैर-मौजूदगी से फैले भ्रम तथा पुलिसिया आतंक के कारण अधिकांश मजदूर तो उसी समय फैक्टरी में चले गये लेकिन करीब 60-70 मजदूर डटे रहे। मजबूरन पुलिस को ‘बिगुल’ के साथियों को वापस लेकर आना पड़ा। मजदूरों के बीच यह फैसला किया गया कि फिलहाल यहाँ की स्थिति में इस समझौते को मानकर आन्दोलन समाप्त करने के सिवा कोई चारा नहीं है। अब पूरी तैयारी के बाद संगठित तरीके से संघर्ष छेड़ना होगा। मालिकान साम-दाम-दण्ड-भेद से किसी तरह मजदूरों को झुकाने में कामयाब हो गये लेकिन इस हार से मिले सबकों से सीखकर मजदूरों ने भविष्य की निर्णायक लड़ाई के लिए कमर कसकर तैयारी शुरू कर दी है।

गोरखपुर में मजदूरों की एकजुटता के आगे झुके मिल मालिक

इस आन्दोलन ने दिखा दिया कि अगर मजदूर एकजुट रहें तो पूँजीपति-प्रशासन-नेताशाही की मिली-जुली ताकत भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। उल्टे इन शक्तियों का जनविरोधी चेहरा बेनकाब हो गया। प्रशासन ने मजदूरों को धमकाने और आतंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एल.आई.यू. और एस.ओ.जी. के लोग फैक्टरी इलाके में जाकर लगातार पूछताछ करते थे – तुम्हारे ये अगुवा नेता कहाँ से आये हैं। पुलिस अधिकारियों द्वारा लगातार धमकी देना कि मजदूरों को भड़काना बनद करो और जिला छोड़कर चले जाओ वरना एनकाउण्टर या जिलाबदर करने में देर नहीं लगेगी। मालिक ने भी बदहवासी में बहुत कुछ योजनाएँ बनायीं, लेकिन मजदूरों को एकजुट देखकर कुछ करने की हिम्मत नहीं पड़ी। कम्पनी के एक ठेकेदार की पत्नी ने कुछ महिला मजदूरों को बताया कि अपने नेता लोगों को सावधन कर दो कि सूरज डूबने के बाद बरगदवा चौराहा की ओर मत आयें, उसने अपने पति के मुँह से सुना था कि आज नेताओं का ”इन्तजाम” कर दिया जायेगा। ऐसी हर कोशिश के साथ मजदूरों की एकता और मजबूत होती गयी। मॉडर्न उद्योग के 51 दिन चले आन्दोलन के दौरान अंकुर उद्योग लि., वी.एन. डायर्स धगा व कपड़ा मिल तथा जालानजी पॉलीटेक्स के मजदूर लगातार साथ में जमे रहे। अंकुर उद्योग के मजदूरों ने आटा इकट्ठा करके दिया तो सारी फैक्टरियों के मजदूरों ने चन्दा लगाकर सहयोग दिया। जब 10 बजे रात को अन्य कम्पनियों की शिफ्ट छूटती थी तो रात को ही 500 से ज्यादा मजदूरों की मीटिंग होती थी, मजदूरों की वर्ग एकता जिन्दाबाद का नारा लगता था।

दिन-ब-दिन बिगड़ती लुधियाना के पावरलूम मज़दूरों की हालत

पावरलूम मज़दूरों की हालत दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है। उनमें एकता का अभाव चिन्ता पैदा करता है। पूँजीपति मज़दूरों में एकता न होने का पूरा-पूरा फ़ायदा उठा रहे हैं। पावरलूम मज़दूरों को अपनी परिस्थितियों को सुधारने के लिए एकता बनाने की तरफ़ क़दम उठाने ही होंगे। आज नहीं तो कल उन्हें इस बारे में सोचना ही होगा।

दिल्ली के समयपुर व बादली औद्योगिक क्षेत्र की ख़ूनी फ़ैक्ट्रियों के ख़िलाफ़ बिगुल मज़दूर दस्ता की मुहिम

बादली औद्योगिक क्षेत्र की फ़ैक्ट्रियाँ मज़दूरों के लिए मौत के कारख़ाने बन चुकी हैं! इन फ़ैक्ट्रियों को मज़दूरों के ख़ून का स्वाद लग चुका है। यही ख़ून मुनाफ़े में बदल कर मालिकों की तिजोरी में चला जाता है और इस ख़ून का निश्चित हिस्सा थाने-पुलिस- नेता-अफ़सरों तक भी नियमित रूप से पहुँचता रहता है। इसी वजह से लगातार हो रही मज़दूरों की मौतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है! ख़ूनी कारख़ाना चलता रहता है, हत्यारे मालिक का मुनाफ़ा पैदा होता रहता है, पूँजी की देवी के खप्पर में मज़दूरों की बलि चढ़ती रहती है!

कारख़ाना मालिकों की मुनाफ़े की हवस ने किया एक और शिकार

यह मसला एक नीलू की मौत का नहीं है। मसला है मालिकों द्वारा श्रम क़ानूनों और सुरक्षा मानदण्डों की धज्जियाँ उड़ाने का। मालिकों और श्रम विभाग के अधिकारियों के नापाक गठबन्धन के कारण मज़दूर आज पिस रहे हैं। लेकिन यह सोचना होगा कि कब तक मज़दूर नीलू की तरह मालिकों के मुनाफ़े की हवस की भेंट चढ़ते रहेंगे, कब तक अपनी हडि्डयाँ उनके महलों में ईंटों की जगह चिनते रहेंगे, कब तक खुद के घर के दिये बुझाकर उनके महलों को रोशन करते रहेंगे?