बिगुल पुस्तिका – 9 : संशोधनवाद के बारे में
सर्वहारा क्रान्ति की तैयारी से लेकर समाजवादी संक्रमण की लम्बी अवधि के दौरान संशोधनवाद नये-नये रूपों में लगातार क्रान्तिकारी मज़दूर आन्दोलन में घुसपैठ करता रहता है। मज़दूर आन्दोलन में बुर्जुआ विचारधारा और राजनीति की यह घुसपैठ स्वाभाविक है। दुश्मन सामने से लड़कर जो काम नहीं कर पाता, वह घुसपैठियों और भितरघातियों के ज़रिये अंजाम देता है। संशोधनवाद के प्रभाव के विरुद्ध सतत संघर्ष करने और उस पर जीत हासिल किये बिना सर्वहारा क्रान्ति की सफलता असम्भव है। इसलिए संशोधनवादी राजनीति की पहचान बेहद ज़रूरी है। इस विषय पर लेनिन, स्तालिन और माओ ने काफ़ी कुछ लिखा है। इस पुस्तिका में मोटे तौर पर, एकदम संक्षेप में और एकदम सरल ढंग से संशोधनवादी राजनीति और संशोधनवादी पार्टियों के चरित्र के लक्षणों एवं विशेषताओं को खोलकर रखने की कोशिश की गयी है। साथ ही, भारत में संशोधनवादी राजनीति का एक संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है।