लुधियाना की सड़कों पर हज़ारों मज़दूरों के गुस्से का लावा फूटा
4 दिसम्बर को लुधियाना की सड़कों पर हज़ारों मज़दूरों का प्रदर्शन और पुलिस द्वारा उनके दमन की घटना सारे देश के अख़बारों और ख़बरिया टीवी चैनलों की सुर्खियों में रही। लेकिन मज़दूरों के इस आन्दोलन और उनके दमन की सही-सही तस्वीर किसी ने पेश नहीं की। किसी ने प्रदर्शनकारी मज़दूरों को उप्रदवी कहा तो किसी ने उत्पाति। एक मशहूर पंजाबी अख़बार ने मज़दूरों को दंगाकारियों का नाम दिया। एक अख़बार ने मज़दूरों के प्रदर्शन को बवालियों द्वारा की गयी हिंसा और तोड़-फोड़ कहा। एक अंग्रेज़ी अख़बार ने लुधियाना की इन घटनाओं को प्रवासी मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच की हिंसा कहकर ग़लत प्रचार किया। उन पूँजीवादी अख़बारों ने, जो मज़दूरों के पक्ष में लिखने वाले महसूस भी हुए, यूपी-बिहार के क्षेत्रीय नज़रिये से ही लिखा और घटनाक्रम को इस तरह पेश किया जैसे यह यू.पी.-बिहार के नागरिकों और पंजाब के नागरिकों के बीच की लड़ाई हो। इस घटनाक्रम का सही-सही ब्योरा और उसके पीछे के असल कारण इन पूँजीवादी अख़बारों और टी.वी. चैनलों से लगभग ग़ायब रहे; और इन्होंने कुल मिलाकर लोगों को ग़लत जानकारी मुहैया कराकर मज़दूरों के इस विरोध प्रदर्शन को बदनाम किया, इसके बारे में देश की जनता को गुमराह और भ्रमित किया।