Category Archives: स्‍त्री विरोधी अपराध

लगातार बढ़ता जा रहा है स्त्रियों और बच्चों की तस्करी का घिनौना कारोबार

मुनाफ़े पर टिके आर्थिक- सामाजिक-राजनीतिक ढाँचे ने मानवता को कितना अमानवीय बना दिया है इसकी एक भयंकर तस्वीर मनुष्यों की तस्करी के रूप में देखी जा सकती है। विश्व स्तर पर यह व्यापार विश्व में तीसरा स्थान हासिल कर चुका है। यह तस्करी वेश्यावृत्ति, शारीरिक शोषण, जबरन विवाह, बन्धुआ मज़दूरी, अंगों की तस्करी आदि के लिए की जाती है। अस्सी फ़ीसदी की तस्करी तो सेक्स व्यापार के लिए ही की जाती है। मनुष्य की तस्करी का सबसे अधिक शिकार बच्चे हो रहे हैं और उनमें से भी बच्चियों को इसका सबसे अधिक शिकार होना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के एक आँकड़े के मुताबिक विश्व स्तर पर हर वर्ष 12 लाख बच्चों की ख़रीद-फरोख्त होती है। इन बच्चों में आधों की उम्र 11 से 14 वर्ष के बीच होती है।

अमेरिकाः दुनिया का सबसे रुग्ण और अपराधग्रस्त समाज

अमेरिका में 22 लाख लोग जेलों में बंद हैं। कैदियों की संख्या के मामले में अमेरिका दुनिया में पहले स्थान पर है। आबादी में कैदियों के प्रतिशत अनुपात के हिसाब से भी यह दुनिया में पहले स्थान पर है। अमेरिका में दुनिया की 5 प्रतिशत आबादी रहती है, पर दुनिया के 25 प्रतिशत सज़ायाफ्ता कैदी सिर्फ अमेरिकी जेलों में रहते हैं। वहाँ की प्रति एक लाख आबादी में से 730 जेल हैं।

क्यों बढ़ रहे हैं ऐसे जघन्य अपराध और प्रतिरोध का रास्ता क्या है?

स्त्री-विरोधी बढ़ती बर्बरता केवल पूँजीवादी उत्पादन और विनिमय प्रणाली की स्वतःस्फूर्त परिणति मात्र नहीं है। पूँजीवादी लोभ-लाभ की प्रवृत्ति इसे बढ़ावा देने का काम भी कर रही है। जो भी बिक सके, उसे बेचकर मुनाफा कमाना पूँजीवाद की आम प्रवृत्ति है। पूँजीवादी समाज के श्रम-विभाजन जनित अलगाव ने समाज में जो ऐन्द्रिक सुखभोगवाद, रुग्ण- स्वच्छन्द यौनाचार और बर्बर स्त्री-उत्पीड़क यौन फन्तासियों की ज़मीन तैयार की है, उसे पूँजीपति वर्ग ने एक भूमण्डलीय सेक्स बाज़ार की प्रचुर सम्भावना के रूप में देखा है। सेक्स खिलौनों, सेक्स पर्यटन, वेश्यावृत्ति के नये-नये विविध रूपों, विकृत सेक्स, बाल वेश्यावृत्ति, पोर्न फिल्मों, विज्ञापनों आदि-आदि का कई हज़ार खरब डालर का एक भूमण्डलीय बाज़ार तैयार हुआ है। टी.वी., डी.वी.डी., कम्प्यूटर, इन्टरनेट, मोबाइल, डिजिटल सिनेमा आदि के ज़रिए इलेक्ट्रानिक संचार-माध्यमों ने सांस्कृतिक रुग्णता के इस भूमण्डलीय बाज़ार के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभायी है। खाये-अघाये धनपशु तो स्त्री-विरोधी अपराधों और अय्याशियों में पहले से ही बड़ी संख्या में लिप्त रहते रहे हैं, भले ही उनके कुकर्म पाँच सितारा ऐशगाहों की दीवारों के पीछे छिपे होते हों या पैसे और रसूख के बूते दबा दिये जाते हों। अब सामान्य मध्यवर्गीय घरों के किशोरों और युवाओं तक भी नशीली दवाओं, पोर्न फिल्मों, पोर्न वेबसाइटों आदि की ऐसी पहुँच बन गयी है, जिसे रोक पाना सम्भव नहीं रह गया है। यही नहीं, मज़दूर बस्तियों में भी पोर्न फिल्मों की सी.डी. का एक बड़ा बाज़ार तैयार हुआ है। वहाँ मोबाइल रीचार्जिंग की दुकानों पर मुख्य काम अश्लील वीडियो और एम.एम.एस. क्लिप्स बेचने का होता है।

आख़िर कब खोलोगे अन्धी आस्था की पट्टी अपनी आँखों से?

ज़ाहिर है कि हम इन स्त्री-विरोधी, रूढ़िवादी, प्रतिक्रियावादी, तानाशाहाना, और बर्बर ताक़तों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे स्त्री के अधिकारों का सम्मान करेंगी, स्त्रियों को समानता का हक़ देंगी, उनकी सुरक्षा के इन्तज़ाम करेंगी, या उन्हें समाज में पुरुषों के समान मानेंगी! यही तो वे ताक़तें हैं जो स्त्री की गुलामी के लिए ज़िम्मेदार हैं, यही तो वे लोग हैं जो स्त्री-विरोधी अपराधों के लिए जवाबदेह हैं और अक्सर स्वयं उन्हें अंजाम देते हैं, यही तो वे लोग हैं जो स्त्रियों को पुरुषों की दासी समझते हैं और उन्हें पैर की जूती बनाकर रखना चाहते हैं! इनसे भला क्या उम्मीद की जा सकती है? कुछ भी नहीं! हम एक ही चीज़ कर सकते हैं: इस समाज के सभी विद्रोही, संवेदनशील और न्यायप्रिय युवा और युवतियाँ, मेहनतकश और आम मध्यवर्गीय नागरिक सदियों पुरानी रूढ़ियों, कूपमण्डूकताओं, पाखण्ड और ढकोसलेपंथ के इन अपराधी ठेकेदारों की बन्दिशों को उखाड़ कर फेंक दें, इन्हें तबाह कर दें, नेस्तनाबूद कर दें! ये हमारे देश और समाज को पीछे ले जाने वाले प्रतिक्रियावादी हैं, राष्ट्रवादी या देशभक्त नहीं! आगे अगर हम ऐसे धार्मिक कट्टरपंथियों, बाबाओं, स्त्री-विरोधियों की कोई भी बात या प्रवचन सुनते हैं, तो हममें और भेड़ों की रेवड़ों में कोई फ़र्क नहीं रह जायेगा! अगर हम इन अन्धकार की ताक़तों के ख़िलाफ़ उठ नहीं खड़े होते तो सोचना पड़ेगा कि हम ज़िन्दा भी रह गये हैं या नहीं!

आज की दुनिया में स्त्रियों की हालत को बयान करते आँकड़े

  • विश्व में किए जाने वाले कुल श्रम (घण्टों में) का 67 प्रतिशत हिस्सा स्त्रियों के हिस्से आता है, जबकि आमदनी में उनका हिस्सा सिर्फ़ 10 प्रतिशत है और विश्व की सम्पत्ति में उनका हिस्सा सिर्फ़ 1 प्रतिशत है।
  • विश्वभर में स्त्रियाँ को पुरुषों से औसतन 30-40 प्रतिशत कम वेतन दिया जाता है।
  • विकासशील देशों में 60-80 प्रतिशत भोजन स्त्रियों द्वारा तैयार किया जाता है।
  • प्रबन्धन और प्रशासनिक नौकरियों में स्त्रियों का हिस्सा सिर्फ़ 10-20 प्रतिशत है।
  • विश्वभर में स्कूल न जाने वाले 6-11 वर्ष की उम्र के 13 करोड़ बच्चों में से 60 प्रतिशत लड़कियाँ हैं।
  • विश्व के 80 करोड़ 75 लाख अनपढ़ बालिगों में अन्दाज़न 67 प्रतिशत स्त्रियाँ हैं।

देश की राजधानी में कामगार महिलाएँ सुरक्षित नहीं

कामगार महिलाओं की सुरक्षा के बारे में सरकार ने कम्पनियों को कहा है कि रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं को सुरक्षित घर छोड़ने की जिम्मेदारी कम्पनी की होगी व इसके लिए कुछ सुझाव भी दिये गये हैं जैसेकि महिला कर्मचारी को घर के दरवाजे तक छोड़ना होगा, आदि। पर मालिकों का कहना है कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इससे उनकी प्रचालन लागत (वचमतंजपवदंस बवेज) बढ़ जाती है! अब पूँजीपति वर्ग अपना मुनाफा बचाये या महिला कामगारों को? इन कम्पनियों ने अपनी प्राथमिकता साफ कर दी है कि वे महिलाओं को घर छोड़ने की लागत नहीं उठा सकतीं। जिन्हें काम करना हो करें और अपनी सुरक्षा की व्यवस्था भी करें। यानी, पहले काम पर अपनी मेहनत की लूट झेलें और फिर रास्ते में पूँजीपतियों के अपराधी लौण्डों के हाथों अपनी इज्जत पर भी ख़तरा झेलें।

नोएडा में ग़रीब मेहनतकशों के बच्चों की नृशंस हत्या

निठारी गाँव की बर्बर घटना पूँजीवादी समाज की मनोरोगी संस्कृति का एक प्रतिनिधि उदाहरण है। धनपशुओं का जो समाज मेहनतकशों की हड्डियों का पाउडर बनाकर भी बेच सकता है और मुनाफ़ा कमा सकता है, वह आज बर्बर विलासी मनोरोगियों का एक वहशी गिरोह बन चुका है। उस समाज में मोहिंदर जैसे नरभक्षियों की मौजूदगी कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है। यह घटना पूँजीवादी समाज की रुग्णता को उजागर करने वाली एक प्रतीक घटना है।